देश की वो कंपनी जो तैयार कर रही है कोरोना की दवा, सरकार ने दिया है पैसा

कोरोना वायरस (coronavirus) से जान बचाने वाली दवाओं और टीके पर पूरे जोरों से रिसर्च चल रही है. इस बीच सरकार ने महाराष्ट्र की एक कंपनी को फंड किया है, ताकि वो कोरोना वायरस की वैक्सीन पर औपचारिक ढंग से काम कर सके. बता दें कि अब तक मौजूदा दवाओं से ही कोरोना का इलाज हो रहा है.

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दुनियाभर में कोरोना पॉजिटिव मरीजों (corona positive) की संख्या 17 लाख 80 हजार से ऊपर जा चुकी है. भारत में लॉकडाउन (lockdwon) के बावजूद लगातार नए मरीजों को पुष्टि हो रही है. ऐसे में कोरोना की वैक्सीन (coronavirus vaccine) पर औपचारिक तौर पर काम के लिए सरकार ने देश के ही एक स्टार्टअप Seagull BioSolutions को इसका जिम्मा दिया है. इस तरह से ये कंपनी देश की पहली कंपनी बन चुकी है, जिसे कोविड- 19 (Covid-19) का टीका खोजने के लिए Department of Science & Technology (DST) की ओर से ग्रीन सिग्नल मिला है.

क्या करती है कंपनी
पुणे की ये स्टार्टअप कंपनी बायोलॉजिकल तकनीक पर काम करती है. Seagull Bio ने Active Virosome (AV) प्लेटफॉर्म तैयार किया है. ये वो प्लेटफॉर्म है, जिसकी मदद से पैथोजन से लड़ने के लिए एंटीजन यानी दवाएं तैयार की जा सकती हैं. उम्मीद है कि इसी प्लेटफॉर्म के जरिए कोरोना वायरस के खात्मे के लिए प्रभावी टीका बनाया जा सकता है, साथ ही साथ इससे ELISA kit भी तैयार की जा सकती है. यानी वो किट जो शरीर में किसी एंटीबॉडी या फिर पैथोजन के होने की जांच कर सके. कंपनी को इसी AV प्लेटफॉर्म के आधार पर सरकार ने इसे COVID-19 के लिए वैक्सीन और इम्युनोलॉजिकल किट तैयार करने को कहा है.

इसमें मूल तौर पर नैनो मॉलिक्यूल होंगे जो किसी भी प्रोटीन की तरह क्रिया कर सकते हैं

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी के एमडी Vishwas D Joshi ने कहा कि यह देशी तरीके से बनी एक तकनीक है, जिसमें मूल तौर पर नैनो मॉलिक्यूल होंगे जो किसी भी प्रोटीन की तरह क्रिया कर सकते हैं. इससे पहले भी दूसरे वायरसों पर इस तकनीक ने काम किया है और अब SARS-CoV-2 पर यही तकनीक आजमाई जा रही है.

इस तरह हो रहा है टीके पर काम
कंपनी फिलहाल 2 तरह के AV एजेंट बना रही है- इनमें से एक कोविड-19 के लिए है जिसे S-प्रोटीन कहते हैं और दूसरा वायरस के प्रोटीन को बताया है, जिसे AV-SP नाम दिया गया है. एक खास तरह के जंगली चूहों पर 5mg डोज के साथ इन एजेंट्स की जांच हो रही है और देखा जा रहा है कि एंटीजन के आने पर उनके शरीर में डाली गई एंटीबॉडी कैसी प्रतिक्रिया करती हैं. एक बार इस जांच के नतीजे सकारात्मक मिलने के बाद दूसरी तरह के चूहों में ये प्रयोग किया जा सकेगा, जो सार्स बीमारियों के लिए मॉडल की तरह काम करते हैं. इसी बीच वैक्सीन तैयार किया जा सकेगा. शुरुआती सफलता के बाद लगभग 1 लाख वैक्सीन डोज तैयार किए जा सकते हैं.

इतना वक्त लग सकता है
वैक्सीन के फायदे-नुकसान और साइकोकाइनेटिक गुणों की अच्छी तरह से स्टडी के बाद चूहों के अलावा बंदरों पर भी इसका ट्रायल होगा और इसके बाद AV वैक्सीन अपने पहले चरण के क्लिनिकल ट्रायल के लिए तैयार माना जाएगा. काम में पूरी तेजी के बाद भी पहला कंसेप्ट तैयार होने में लगभग 80 दिन लग जाएंगे और फिर प्री क्लिनिकल ट्रायल होगा. माना जा रहा है कि पहले् ह्यूमन क्लिनिकल ट्रायल तक पहुंचने में 18 से 20 महीने लग सकते हैं.

तैयार हो रही टेस्ट किट भी
कंपनी वैक्सीन के साथ ही साथ कोविड-19 की जांच के लिए किट तैयार करने की कोशिश में भी है. ये किट खासतौर पर कोरोना के उन मरीजों के लिए तैयार की जा रही है, जिनमें बीमारी के कोई लक्षण नहीं दिखते हैं. S-प्रोटीन को इसमें एक एंटीजन की तरह तैयार किया जाएगा. आमतौर पर एंटीजन शरीर के बाहर के रोगाणुओं को कहते हैं. मुख्य तौर पर 3 तरह की टेस्ट किट तैयार की जा रही हैं. एक किट जिसे LFA टेस्ट किट कहते हैं, वो इस तरह बनाने की कोशिश है कि लोग खुद ही अपना टेस्ट कर सकें.

पहले् ह्यूमन क्लिनिकल ट्रायल तक पहुंचने में 18 से 20 महीने लग सकते हैं

फिलहाल देश में कोरोना की जांच के लिए जो किट हैं, उन्हें polymerase chain reaction (PCR) किट कहते हैं. ये तेजी से जांच के नतीजे तो बता पाती हैं लेकिन बिना लक्षणों वाले मरीज की जांच के नतीजे इसमें संदिग्ध होते हैं. रिकवर हो चुके लेकिन तब भी वायरस फैला रहे लोगों की जांच भी इससे सही तरह से नहीं हो पाती है. माना जा रहा है कि नई immunodiagnostic किट कोरोना के हर तरह के मरीजों की जांच कर सकेगी. फिलहाल इस किट पर काम चल रहा है और अगस्त 2020 तक ये फील्ड ट्रायल के लिए आ जाएगी. सफलता दिखने पर इसे अप्रूव होने में 10 से 11 महीने लग सकते हैं.

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