बच्चों के फेवरेट मैथ टीचर से कैसे आतंकी बन गया रियाज नायकू

भारतीय सुरक्षाबलों (Indian security force) के साथ हुए पुलवामा एनकाउंटर ( (pulwama encounter) में कश्मीर में आतंक (terrorism in Kashmir) का पोस्टर बॉय रियाज नायकू (Riyaz Naikoo) 6 मई को मारा गया. कभी गणित का टीचर रह चुका नायकू कश्मीर का मोस्ट वॉन्टेड आतंकी (most wanted terrorist) अचानक से नहीं बन गया, बल्कि इसकी शुरुआत सालों पहले हो चुकी थी.

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काफी संघर्ष के बाद आखिरकार सुरक्षबलों को हिजबुल मुजाहिदीन  के कमांडर रियाज नायकू  के सफाये में सफलता मिली. बुरहान वानी (Burhan Wani) के बाद नायकू ही घाटी के युवाओं के लिए पोस्टर बॉय बना हुआ था. यहां तक कि उसे A++ श्रेणी का आतंकी माना गया था, जिसपर 12 लाख का इनाम था. सालों तक चली लुकाछिपी के बाद पुलवामा (Pulwama) जिले के बेगपोरा में आतंक के इस पर्याय का खात्मा हो सका. जानते हैं, नायकू की पूरी कहानी.

नायकू की पैदाइश साल 1985 में अवंतिपोरा के बेगोपोरा गांव में हुई. ये दक्षिण कश्मीर का हिस्सा है. दर्जी पिता की संतान नायकू ने गणित से ग्रेजुएशन किया और उसके पास स्थानीय स्कूल में पढ़ाने भी लगा. कहा जाता है कि पढ़ाने और बातचीत के अपने तरीके के कारण नायकू जल्द ही स्कूल में काफी लोकप्रिय हो गया. यहां तक कि वो गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाया करता था. लेकिन ये सिलसिला 2012 के 1 जून को एकाएक थम गया. मैथ टीचर गायब हो गया. गायब होने की वजह 2 साल पहले घटी एक घटना थी. दरअसल घाटी में हो रहे एक प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने आंसू गैस का गोला छोड़ा, जिसके कारण 17 साल के एक लड़के तफैल अहमद मट्टो की मौत हो गई. इसके बाद बेगोपोरा में खासा हंगामा हुआ, जिसमें मैथ टीचर भी शामिल था. पुलिस ने दूसरे लोगों के साथ उसे भी गिरफ्तार किया और बाद में छोड़ दिया. लेकिन इस घटना के कारण नायकू पूरी तरह से बदल चुका था.

उसे A++ श्रेणी का आतंकी माना गया था, जिसपर 12 लाख का इनाम था

मई 2012 के आखिर में नायकू ने अपने दर्जी पिता से कुछ पैसे मांगे. उसका कहना था कि वो एक कोर्स में एडमिशन लेने जा रहा था. पैसे लेकर घर से निकला नायकू फिर मासूम टीचर की तरह नहीं लौटा. बाद में पता चला कि वो हिज्बुल मुजाहिदीन में शामिल हो चुका था. संगठन में उसका कद तेजी से बढ़ने लगा और 8 जुलाई 2016 को आतंकी कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद वो कमांडर बन गया. माना जाता है कि एक अन्य प्रमुख आतंकी जाकिर मूसा के हिज्बुल से अलग होने के बाद संगठन को टूटने से बचाने के लिए नायकू ने काफी काम किया था.

कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की नीतियों की जानकारी और खासकर नायकू के बोलने और भाषण देने का अंदाज उसे मिलिटेंट्स में काफी लोकप्रिय बनाने लगा. माना जाता है कि वुहान के जाने के बाद नायकू की वजह से काफी कश्मीरी युवा हिज्बुल से जुड़े. पाकिस्तान में बैठे संगठन के चीफ सैय्यद सलाहुद्दीन (Syed Salah-ud-din) के भी नायकू के काफी अच्छे रिश्ते रहे थे.

उसने कई नई परंपराएं शुरू कीं. जैसे संगठन के किसी आतंकी की मौत पर उसे बंदूकों से सलामी देना

कभी बच्चों को मुफ्त में गणित पढ़ाने वाला 36 साल का ये शख्स इस कदर जहर से भर चुका था कि उसने नए मिलिटेंट्स की भर्ती पर सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरें डलवाता. नायकू ने ही अमरनाथ यात्रा करने वालों को मेहमान बताया था. इसके अलावा उसने कई नई परंपराएं शुरू कीं. जैसे संगठन के किसी आतंकी की मौत पर उसे बंदूकों से सलामी देना. जैसे 2016 में एक आतंकी शारिक अहमद भट की मौत के बाद वो हाथों में क्लाशनिकोव (Kalashnikov) रायफल लेकर वहां पहुंचा और कई गोलियां दागकर उसे सलामी दी. इसके बाद से आतंकियों की मौत पर सलामी देने का रिवाज चल निकला.
संगठन के लिए पैसे उगाही के काम के लिए भी नायकू की खास रणनीति थी. वो अमीर किसानों के अलावा अफीम की खेती करने वालों से भी पैसे लिया करता था ताकि नए लोगों की भर्ती हो सके. यहां तक कि मादक पदार्थों की तस्करी में भी उसका हाथ था, जिससे आए पैसे संगठन को मिलते थे.

एक बार उसने जम्मू कश्मीर पुलिस के एक दर्जन से ज्यादा घरवालों को अगवा करवा लिया

मोहम्मद बिन कासिम (Mohammad Bin Qasim) नाम के साथ काम करने वाले नायकू के खूंखार होने का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि साल 2018 में अपने पिता असदुल्लाह नायकू को हिरासत में लिए जाने के खिलाफ उसने जम्मू कश्मीर पुलिस के एक दर्जन से ज्यादा घरवालों को अगवा करवा लिया. ये सब आधे घंटे के भीतर हो गया. पुलिस के उसके पिता को छोड़ने के बाद ही पुलिसवालों के परिवार के लोग घर लौट सके. इसके बाद से नायकू का खौफ सबके मन में बैठ गया. जो साल 2016 से अब तक चलता रहा.

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