कोरोना वायरस पर कुष्‍ठ रोग की वैक्‍सीन का क्‍लीनिकल ट्रायल करेगा CSIR

काउंसिल ऑफ साइंस एंड इंडस्‍ट्रीयल रिसर्च (CSIR) कुष्‍ठ रोग की वैक्‍सीन माकोबैक्‍टेरियम डब्‍ल्‍यू (Mw) का COVID-19 वैक्‍सीन के तौर पर क्‍लीनिकल ट्रायल कर ये देखना चाहती है कि इसका कोरोना वायरस (Coronavirus) पर क्‍या असर होगा.

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कोरोना वायरस (Coronavirus) दुनियाभर में 22,51,817 लोगों को अपनी चपेट में ले चुका है. इनमें 1,54,311 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 5,74,398 मरीज स्‍वस्‍थ होकर घर लौटे हैं. वहीं, भारत में अब तक 452 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि पिछले 24 घंटे में 1,076 नए मामले सामने आने से संक्रमितों की सख्‍या 13,835 हो गई है. इस बीच दुनियाभर के वैज्ञानिक और शोधकर्ता इस मुसीबत से निपटने, बचने व इलाज ढूंढने के लिए दिनरात काम कर रहे हैं. अब तक कुछ देशों के वैज्ञानिक कोरोना वायरस की वैक्‍सीन बना लेने का दावा भी कर रहे हैं. वहीं, भारत में काउंसिल ऑफ साइंस एंड इंडस्‍ट्रीयल रिसर्च (CSIR) कोरोना वायरस पर कुष्‍ठ रोग में इस्‍तेमाल होने वाली वैक्‍सीन माइकोवैक्‍टेरियम डब्‍ल्‍यू (Mw) का क्‍लीनिक ट्रायल शुरू करने की तैयारी कर चुका है. वैज्ञानिकों का कहना है कि ट्रायल में हम एमडब्‍ल्‍यू वैक्‍सीन का कोरोना वायरस पर असर का परीक्षण करेंगे.

सीएसआईआर को क्‍लीनिकल ट्रायल की मंजूरी मिली
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) पहले ही घोषणा कर चुकी है कि वो इम्‍यूनिटी बढाने वाली बीसीजी वैक्‍सीन (BCG Vaccine) का कोरोना वायरस पर अध्‍ययन किया जाएगा. इसी बीच सीएसआईआर ने कुष्‍ठ रोग (Leprosy) की वैक्‍सीन के ट्रायल की तैयारी कर चुकी है. सीएसआईआर के महानिदेशक (Director General) डॉ. शेखर सी. मंदे ने बताया कि एमडब्‍ल्‍यू बीसीजी परिवार की ही वैक्‍सीन है. इसका इसतेमाल लेप्रोसी से बचाव के लिए किया जाता है. हम देखना चाहते हैं कि क्‍या एमडब्‍ल्‍यू का इसतेमाल COVID-19 से मुकाबले में किया जाता है. हमने इसके क्‍लीनिकल ट्रायल (Clinical Trial) की डीसीजीआई से मंजूरी ले ली है. हमें क्‍लीनिकल ट्रायल पूरे करने में कुछ महीने का वक्‍त लग जाएगा.

देश के तीन अस्‍पताल क्‍लीनिकल ट्रायल में करेंगे मदद

सीएसआईआर गुजरात की फार्मा कंपनी कैडिला हेल्‍थकेयर लिमिटेड (Cadila Healthcare Ltd) के साथ मिलकर एमडब्‍ल्‍यू वैक्‍सीन का कोरोना वायरस पर क्‍लीनिकल ट्रायल करेगी. इस क्‍लीनिकल ट्रायल में तीन हॉस्पिटल भी योगदान देंगे. इनमें दिल्‍ली का एम्‍स (AIIMS Delhi), भोपाल का एम्‍स (AIIMS Bhopal) और चंडीगढ का पीजीआई (PGI Chandigarh) शामिल हैं. इस क्‍लीनिकल ट्रायल को तीन चरणों (Three Part Ttrial) में पूरा किया जाएगा. इस ट्रायल का मकसद कोविड-19 के मरीज के नियंत्रित इलाज में एमडब्‍ल्‍यू वैक्‍सीन के असर का अध्‍ययन करना है. इस परीक्षण में कोरोना वायरस के गंभीर मरीजों को शामिल नहीं किया जाएगा. इस वैक्‍सीन को भारतीय वैज्ञानिकों ने 1966 में बनाया था. इसका इस्‍तेमाल कुष्‍ठ रोग से बचाव के लिए किया गया. इस वैक्‍सीन को टीबी, कैंसर औ वार्ट में भी उपयोगी पाया गया है.

अब तक इस तरह से डॉक्‍टर्स कर रहे हैं इलाज
कोरोना वायरस के इलाज में फिलहाल दुनियाभर के डॉक्‍टर अलग-अलग दवाओं का इस्‍तेमाल कर रहे हैं. हालांकि, मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्‍सीक्‍लोरोक्‍वीन की दुनियाभर में डिमांड सबसे ज्‍यादा है. भारत कई देशों को इस दवा का निर्यात कर रहा है. इसके अलावा संक्रमित मरीजों में बुखार को कम करने के लिए डॉक्‍टर्स पैरासिटामॉल का इस्‍तेमाल कर रहे हैं. वहीं, भारत समेत कुछ देशों में संक्रमितों के इलाज में प्‍लाज्‍मा थेरेपी का इस्‍तेमाल भी हो रहा है. इस थेरेपी में संक्रमण से उबर चुके मरीज के रक्‍त से प्‍लाज्‍मा निकालकर गंभीर रोगियों को दिया जा रहा है. हालांकि, इसमें रक्‍तदान करने वाले को संक्रमण से उबरे हुए कम से कम 14 दिन हो चुके होना जरूरी है. वहीं, कुछ देशों में डॉक्‍टर्स मलेरिया, फ्लू और एड्स की दवाइयों के कॉम्बिनेशन के जरिये मरीजों को ठीक कर रहे हैं.

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