Covid-19 के नए मरीजों में ऑक्सीजन स्तर गिरने के बाद भी पता नहीं चल रहा, आराम से बातचीत करते मौत के करीब जा रहे

कोरोना वायरस (coronavirus) का नया लक्षण डॉक्टरों से लेकर वैज्ञानिकों तक को डरा रहा है. कई ऐसे मरीज आ रहे हैं, जिनमें तनाव या सांस फूलना जैसे कोई संकेत नहीं लेकिन जांच करने पर उनका ऑक्सीजन लेवल इतना कम (low oxygen level) मिलता है कि उनकी मौत भी हो सकती है. वैज्ञानिक इसे हैप्पी हाइपॉक्जिया (Happy hypoxia) कह रहे हैं.

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कोरोना संकट (corona crisis) लगभग पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले चुका है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक 35 लाख 60 हजार से ज्यादा लोग इससे संक्रमित हैं, जबकि 2 लाख 40 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं. इधर कारगर दवा या वैक्सीन (corona vaccine) की खोज में लगे वैज्ञानिकों को वायरस के नए-नए लक्षण (symptoms of coronavirus) दिख रहे हैं. जैसे हाल ही में आए कई मामलों में कोरोना मरीज एकदम निश्चिंत दिख रहा है लेकिन भीतर ही भीतर वायरल लोड इतना हो चुका होता है कि मरीज का ऑक्सीजन स्तर (oxygen level deterioration) बुरी तरह से गिर रहा होता है. सबसे खतरनाक ये है कि मरीज या उसके आसपास या फिर डॉक्टरों तक को इसकी भनक तक नहीं लगती, जब तक कि पूरी जांच न हो जाए.

ऑक्सीजन लेवल गिरने पर आमतौर पर मरीज सांस लेने में तकलीफ महसूस करते हैं, पसीना-पसीना हो जाते हैं, बोलने में स्पष्टता चली जाती है और बेहोश हो सकते हैं. तुरंत उपचार न मिले तो मौत पक्की है. लेकिन Covid-19 के नए मरीजों में ऑक्सीजन स्तर गिरने के बाद भी उन्हें इसका पता नहीं चल रहा है. वे आराम से बातचीत करते होते हैं और मौत के करीब जा रहे होते हैं. इसे happy hypoxia कहा जा रहा है.

क्या है हाइपॉक्जिया

बता दें कि हाइपॉक्जिया वो स्थिति है, जिसमें पूरा शरीर या शरीर के किसी अंग तक ऑक्सीजन पहुंचना खतरनाक ढंग से कम हो जाता है. आमतौर पर ऊंचे पहाड़ों में जहां ऑक्सीजन कम होती है, वहां जाने पर हाइपॉक्जिया के हल्के-फुल्के लक्षण दिखते हैं, जो नीचे उतरते ही चले जाते हैं. ज्यादा ऊंचाई पर जाने के लिए पर्वतारोही ऑक्सीजन मास्क का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन इन मामलों में पर्वतारोही को अंदाजा होता है कि उसके शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो रही है. शिशु के वक्त से पहले जन्म (Preterm birth) में भी हाइपॉक्जिया दिखता है क्योंकि उनके फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं.

अब कोरोना के मामले में मरीजों को इस खतरे की भनक तक न लगने के कारण इसे silent hypoxia भी कहा जा रहा है. अब वैज्ञानिक नए सिरे से समझने की कोशिश कर रहे हैं कि वायरस फेफड़ों पर आखिर किस तरह से हमला कर रहा है.

क्या कहते हैं वैज्ञानिक
गंभीर स्तर पर पहुंच चुके कोरोना मरीजों के इस नए लक्षण पर Manchester Royal Infirmary के क्रिटिकल केयर और एनेस्थीशिया के डॉक्टर Jonathan Bannard-Smith के मुताबिक ये मामले काफी पेचीदा हैं. इन मरीजों में ऑक्सीजन का सैच्युरेशन लेवल काफी कम है और उनमें इसका कोई ऊपरी संकेत नहीं है. बता दें कि सामान्य हालातों में ऑक्सीजन का सैच्युरेशन लेवल 95 से 98% तक होता है. इससे कम या इससे ज्यादा बहुत खतरनाक है. वहीं कोरोना के इन मरीजों में ये स्तर 70% भी दिख रहा है और कुछ मामलों में 50% भी. Dr Jonathan के अनुसार ये अबतक निमोनिया या श्वसन तंत्र से जुड़ी किसी बीमारी में नहीं दिखा.

कोरोना के मामले में मरीजों को इस खतरे की भनक तक न लगने के कारण इसे silent hypoxia भी कहा जा रहा है

लगभग हमेशा ही हाइपॉक्जिया यानी शरीर में ऑक्सीजन का स्तर कम होने पर आने वाले मरीज काफी ज्यादा बीमार दिखते हैं. वे सामान्य बातचीत नहीं कर पाते हैं. वैज्ञानिकों का एक तबका ये भी मानने लगा है कि हो सकता है कोरोना वायरस शरीर पर ऐसे हमला कर रहा हो और किसी ऐसे तरीके से ऑर्गन डैमेज कर रहा हो जिसका कोई बाहरी लक्षण न हो और मरीज की मौत हो जाए.

क्यों हैं ये लक्षण खतरनाक
मैनचेस्टर के एक अस्पताल में सीनियर डॉक्टर Mike Charlesworth खुद मार्च में कोरोना संक्रमित हो चुके हैं. द गार्डियन को दिए एक इंटरव्यू में वे बताते हैं कि ऑक्सीजन का स्तर गिरने पर किस तरह से उनके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था. जबकि नए आ रहे मरीजों हाइपॉक्जिया के शिकार होने के बाद भी ठीक से बोलचाल रहे हैं. अब तक ये माना जाता रहा कि ऑक्सीजन सैक्युरेशन 75% तक पहुंचते-पहुंचते मरीज होश खो बैठता है और उपचार न मिले तो कार्डियक अरेस्ट से मौत हो सकती है. ऑक्सीजन सैच्युरेशन असंतुलित होने के बीच ही मरीज के फेफड़ों में कार्बन डाइऑक्साइज बढ़ने लगती है और शरीर इसका भी संकेत देने लगता है. कोरोना के नए मामलों में ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा.

हाइपॉक्जिया यानी शरीर में ऑक्सीजन का स्तर कम होने पर आने वाले मरीज काफी ज्यादा बीमार दिखते हैं

महाराष्ट्र में भी हैप्पी हाइपॉक्जिया के मरीज
देश में अब तक कोरोना के दर्ज 42,456 मामलों के बीच महाराष्ट्र कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित नजर आ रहा है. यहां संक्रमितों का आंकड़ा 13 हजार के करीब जा चुका है. सिर्फ रविवार को ही यहां कोरोना के 678 नए मामले सामने आए, जिनमें से 441 मामले अकेले मुंबई से हैं. महाराष्ट्र में मौत की दर भी दूसरे राज्यों की अपेक्षा ज्यादा है. कुछ हद तक इसका जिम्मेदार Happy hypoxia को माना जा रहा है. यही देखते हुए यहां मरीजों के लक्षणों की सूची बनाई जा रही है. इसी दौरान दिखा कि बहुत से मरीजों में कोई खास संकेत नहीं होता लेकिन असर में उनका ऑक्सीजन लेवल खतरनाक ढंग से घट चुका होता है. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में स्टेट चीफ सेक्रेटरी के तकनीकी सलाहकार Dr Subhash Salunkhe कहते हैं पुणे में कई मामले आए, जिनमें मरीज हंस-बोल रहे थे और अगले कुछ ही घंटों में उनकी मौत हो गई.

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