Coronavirus: रूस और अमेरिका की इन लैब में पाले जाते हैं जानलेवा वायरस
दुनिया में दो ही ऐसी लैब हैं, जिनमें जानलेवा एचआईवी (HIV), इबोला (Ebola) और स्मालपॉक्स (Smallpox) समेत कई घातक वायरस (Viruses) रखे जाते हैं. इनमें एक रूस (Russia) के कोल्टसोवो में 'वेक्टर लैब' तो दूसरी अमेरिका (US) के अटलांटा (Atlanta) में सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) में है.
एक सोवियत भगोड़े ने पश्चिमी इंटेलिजेंस को बताया कि उसने चेचक (Smallpox) को प्रभावी जैविक हथियार (Biological Weapon) के रूप में तैयार करने के लिए चलाए गए एक व्यापक अवैध कार्यक्रम की देखरेख की थी. इस खुलासे से ब्रिटेन (Britain) और अमेरिका (US) चौंक गए थे. दोनों ने रूस के जैविक हथियार इस्तेमाल करने के इरादे की निंदा की. हालांकि, अगर इतिहास पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि ये दोनों देश घातक बीमारियों के वायरस का युद्ध में हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते रहे हैं. मजेदार तथ्य है कि दुनिया में दो ही ऐसी लैब हैं, जिनमें जानलेवा स्मालपॉक्स वायरस रखे जाते हैं. इनमें एक रूस के कोल्टसोवो में ‘वेक्टर’ तो दूसरी अमेरिका के अटलांटा (Atlanta) में सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDCP) में है.
पिछले साल लैब में रखे घातक वायरस फैलने का डर बढ़ा
रूस की वेक्टर लैब पिछले साल उस समय चर्चा में आई थी, जब इसमें मरम्मत के दौरान धमाका होने के बाद आग लग गई थी. इस लैब में स्मॉलपॉक्स, एचआईबी और इबोला जैसी जानलेवा बीमारियों के वायरस गए थे. ये लैब वायरोलॉजी और बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च से जुड़ी है. धमाके के बाद लैब में रखे कई तरह के वायरस के फैलने का डर लोगों पर हावी हुआ. इसके बाद अधिकारियों ने दावा किया कि उस कमरे को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है, जहां वायरस रखे गए हैं. प्रशासन ने दावा किया कि लैब में रखे सभी वायरस सुरक्षित हैं. बता दें कि सोवियत रूस के दौर में इस प्रयोगशाला में बायोलॉजिकल हथियारों पर शोध होता था. आजकल इस प्रयोगशाला में वायरस से होने वाली बीमारियों पर काम किया जाता है.
वेक्टर लैब में हैं एचआईवी, इबोला, बर्ड फ्लू जैसे वायरस
रूस प्रशासन ने आश्वासन दिया है कि प्रयोगशाला में धमाके के बावजूद किसी तरह का कोई खतरा नहीं है. वेक्टर लैब को कोल्ड वार के दौर में बायोलॉजिकल रिसर्च सेंटर के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था. इस लैब को रूस की इंटरफैक्स न्यूज एजेंसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस लैब को 1974 में बैक्टीरिया और बायोलॉजिकल हथियारों से रक्षा की वैक्सीन (Vaccines) पर शोध के लिए स्थापित किया गया था.
वेक्टर लैब में इबोला (Ebola) और एचआईवी (HIV) समेत दुनिया के सबसे ज्यादा वायरस रखे हैं. इनमें स्मॉलपॉक्स, बर्ड फ्लू (Bird Flu) और हेपेटाइटिस (Hepatitis) के वायरस भी शामिल हैं.
वेक्टर लैब में इबोला से महिला वैज्ञानिक की हो गई थी मौत
द गार्जियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2004 में यहां काम करने वाली एक महिला वैज्ञानिक की मौत हो गई थी. उनके बायें हाथ में इबोला वायरस से ग्रस्त एक निडिल चुभ गई थी. रूस के कॉमरसैंट डेली की रिपोर्ट के मुताबिक, उस समय वह एक सुअर (Pig) पर इबोला का परीक्षण कर रही थीं. वह सामान्य सुरक्षा सूट पहने थीं. उन्होंने हाथों में रबड़ के ग्लब्स पहने हुए थे. निडिल चुभने के तुरंत बाद से ही उनका इलाज भी शुरू कर दिया गया था. बावजूद इसके दो सप्ताह बाद उनकी मौत हो गई. इस घटना में लैब के चार अधिकारियों पर कार्रवाई की गई.
ब्रिटेन ने सबसे पहले किया स्मॉलपॉक्स का युद्ध में इस्तेमाल
ब्रिटेन 18वीं शताब्दी में फ्रांस के साथ आज के कनाडा पर कब्जा करने के लिए युद्ध लड़ रहा था. इसमें अमेरिका के मूलनिवासी फ्रांस का साथ दे रहे थे. साल 1763 में पोंटिएक विद्रोह के दौरान उत्तरी अमेरिका में ब्रिटिश फौज के कमांडर-इन-चीफ सर जेफ्री अम्हेर्सट ने कर्नल हेनरी बुके को पत्र लिखकर पूछा कि क्या अमेरिकी मूलनिवासियों के इलाकों में स्मॉलपॉक्स को फैलाने की कोशिश नहीं की जा सकती? हमें उन्हें हराने के लिए हर रणनीति अपनानी चाहिए. इस पर कर्नल हेनरी ने जवाब दिया कि मैं कंबलों में स्मॉलपॉक्स के वायरस डालकर भेजने की कोशिश करूंगा, जो उनके हाथों और शरीर पर पड़ेंगे. चेचक ने अमेरिकी मूल-निवासियों को तबाह कर दिया, जो पहले कभी इस बीमारी के संपर्क में नहीं आए थे. इसलिए उनमें इस बीमारी से लड़ने की क्षमता नहीं थी.
अमेरिकी सैनिकों में फैली महामारी, मोर्चा छोड़कर लौटना पड़ा
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1775-83 के बीच हुए अमेरिकी क्रांतिकारी युद्ध के दौरान भी स्मॉलपॉक्स का हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया गया था. वर्ष 1775-76 की सर्दियों में अमेरिकी फौजें क्यूबेक को अंग्रेजों के कब्जे से छुड़ाने के लिए संघर्ष कर रही थीं. मॉन्ट्रिएल पर कब्जे के बाद ऐसा लगा कि अमेरिका क्यूबेक को भी आजाद करा लेगा. दिसंबर, 1775 में ब्रिटिश कमांडर ने स्मॉलपॉक्स के खिलाफ हो चुके संक्रमित नागरिकों को अमेरिकी सैनिकों के खेमे में भेज दिया. कुछ ही हफ्तों में अमेरिका के 10,000 में आधे से ज्यादा सैनिक महामारी की चपेट में आ गए. इसके बाद अमेरिकी सैनिक अफरातफरी में अपने सैनिकों को दफनाकर वहां से लौट आए.