क्या दिल्ली में सबसे ख़तरनाक स्तर पर पहुंच चुका है कोरोना?

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देश में अनलॉक- 1 (unlock 1.0 in India) की शुरुआत के बीच दिल्ली में मामले लगातार बढ़े हैं. ताजा आंकड़े बताते हैं कि यहां 29,943 मामले आ चुके हैं, जिनमें से 17,712 अब भी एक्टिव हैं. खुद दिल्ली के हेल्थ मिनिस्टर सत्येंद्र जैन (Health Minister Satyendar Jain) ने कहा है कि अगले दो हफ्तों में मामलों की संख्या बढ़कर 56,000 हो सकती है. माना जा रहा है कि आज किसी वक्त मंत्रिमंडल की मीटिंग होगी, जिसमें ये समझा जाएगा कि क्या दिल्ली में कम्युनिटी ट्रांसमिशन शुरू हो चुका है. अगर ऐसा हो चुका है तो कोरोना से निपटने की रणनीति बदली जाएगी. इस बीच ये बात उठ रही है कि कम्युनिटी ट्रांसमिशन क्या है और कैसे होता है.

इसके लिए वायरस के विभिन्न चरणों को समझना जरूरी है. World Health Organization (WHO) के अनुसार ये 3 तरीके से होता है. पहला है छिटपुट मामले आना. दूसरा है झुंडों में केस दिखना और तीसरा है सामुदायिक प्रसारण, जिसे कम्युनिटी ट्रांसमिशन कहते हैं.

किन चरणों में बढ़ता है संक्रमण

पहले चरण में थोड़े-बहुत मामले होते हैं, जो बाहर से आए होते हैं. दूसरे चरण में कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ी हुई रहती है. और तीसरा चरण यानी कम्युनिटी ट्रांसमिशन सबसे खतरनाक अवस्था है. ये तब होता है जब वायरस सोसायटी में घुसकर बहुत बड़ी संख्या में लोगों को बीमार करने लगे. कमजोर इम्युनिटी वाले मरीजों की मौत होने लगे. लेकिन साथ ही साथ एक बार बीमार हो चुके लोगों में इसके लिए इम्युनिटी पैदा हो जाए और आखिर में वायरस कुछ न कर सके. इसे प्रतिरक्षा का सिद्धांत कहते हैं. कम्युनिटी ट्रांसमिशन शुरू होते ही ये हालात आते ही हैं. रोग प्रतिरक्षा पैदा होने में कितना वक्त लगता है ये कई बातों पर निर्भर है. जैसे बीमारी कितनी तेजी से फैल रही है. इम्युनिटी पैदा होने में आमतौर पर 6 महीने से लेकर 1 साल का वक्त लगता है. अभी तक SARS-CoV2 के मामले में वैज्ञानिक ये बता नहीं सके हैं.

भारत अभी कहां है?
मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर का मानना है कि देश में अभी कम्युनिटी ट्रांसमिशन के हालात नहीं आए हैं. इसके अनुसार हमारे यहां कहीं बड़े स्तर पर कोरोना फैला हुआ है और कहीं थोड़े-बहुत मामले हैं.

मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर का मानना है कि देश में अभी कम्युनिटी ट्रांसमिशन के हालात नहीं हैं

कैसे तय होगा कि ये कम्युनिटी ट्रांसमिशन है?
अगर कहीं पर बीमारी के स्त्रोत का पता नहीं लग सके तो माना जा सकता है कि कम्युनिटी ट्रांसमिशन शुरू हो चुका है. हालांकि इसके बाद भी अधिकारी इसकी जांच के बाद तय करेंगे कि ये संचार का कौन सा चरण है.

हर स्टेट में स्वास्थ्य विभाग ने हेल्थ वर्कर्स को जिम्मा दिया है कि वे संदिग्ध लोगों तक पहुंचे. अगर कॉस्टैक्ट ट्रेसिंग के बाद भी बीमारी के स्त्रोत का पता न लगे सके, तो इसे कम्युनिटी ट्रांसमिशन की ओर जाता मान सकते हैं. फिलहाल Integrated Disease Surveillance Programme (IDSP) हर राज्य में कोरोना पॉजिटिव आ चुके लोगों की सूची बनाता है, जिसे National Centre for Disease Control से भी शेयर किया जाता है. माना जा रहा है कि राज्य सरकार के पास इस वजह से सही डाटा होगा कि क्या हम कम्युनिटी ट्रांसमिशन के चरण की तरफ जा चुके हैं.

केरल ने की शुरुआत में जांच
केरल जैसी राज्य सरकारों ने सामुदायिक प्रसार का खतरा देखते हुए उसे रोकने के लिए बेहद सख्त तरीके अपनाए. अप्रैल में ही केरल में क्रॉस-सेक्शन से नमूने लिए गए ताकि हालात को समझा जा सके. मई के आखिर में आए नतीजों को देखते हुए ये तय हो गया कि केरल में कम्युनिटी ट्रांसमिशन नहीं हो रहा है.

सामुदायिक प्रसार का खतरा देखते हुए उसे रोकने के लिए केरल में बेहद सख्त तरीके अपनाए गए

आईसीएमआर ने की पहल
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने भी अपने स्तर पर ये समझने की कोशिश की कि क्या भारत में कोरोना के हालात गंभीर हो सकते हैं. इसके लिए मार्च में सांस की गंभीर बीमारी (SARI) से पीड़ित 5,911 मरीजों को लगातार निरीक्षण में रखा गया. इनमें से 104 मरीज कोरोना पॉजिटिव निकले, जबकि इनमें से 40 की विदेश यात्रा की कोई हिस्ट्री नहीं थी और न ही वे किसी कोरोना मरीज के संपर्क में आए थे. ये कम्युनिटी ट्रांसमिशन की तरफ पहला संकेत था लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसे सिरे से नकार दिया.

हो रहा है एंटीबॉडी टेस्ट
इसी बीच मई में सरकार ने सीरो-टेस्ट की शुरुआत की. इसके तहत 67 जिलों में एंटीबॉडी की जांच हो रही है. इससे ये पता लग सकेगा कि क्या लोग अपने-आप ही कोरोना का शिकार होकर ठीक हो चुके हैं. इसके लिए हर राज्य से महीने में 800 सैंपल जमा करने के लिए कहा गया. इसके शुरुआती नतीजे बताते हैं कि कई जिलों में कोरोना का स्तर काफी ऊपर जा चुका है और 30 फीसदी से ज्यादा आबादी में संक्रमण फैल चुका है.

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