उस वैज्ञानिक के बारे में जानें, नई शिक्षा नीति में जिसका खास योगदान
डॉ के कस्तूरीरंगन (Dr Kasturigangan) उस कमेटी के प्रमुख हैं, जिसने नई शिक्षा नीति (New Education Policy) बनाई, उनकी वैज्ञानिक पृष्ठभूमि इस नई नीति में दिखाई देती है.
वैज्ञानिक के तौर पर ज्यादा जाने जाते हैं डॉ कस्तूरीरंगन
डॉ कृष्णस्वामी कस्तूरीरंगन के लोग इसरो के वैज्ञानिक के तौर पर ज्यादा जानते हैं. उनकी अगुआई में नौ सदस्यीय समिति ने नई शिक्षा नीति का प्रारूप मई के महीने में ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय को सौंपा था. डॉ कस्तूरीरंगन मूलतः एक वैज्ञानिक हैं और नौ साल तक इसरो में चेयरमैन के तौर पर अपनी सेवाएं देने के बाद वे शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं.
तीन बड़े सम्मानों से अलंकृत
पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण तीनों सम्मानों से अलंकृत डॉ कस्तूरीरंगन साल 2003 से 2009 तक राज्यसभा सदस्य रहे. योजना आयोग के सदस्य रह चुके डॉ कस्तूरीरंगन को साल 2017 में देश की नई शिक्षा नीति बनाने के लिए नौ सदस्यीय कमेटी का प्रमुख बनाया गया था.
डॉ कस्तूरीरंगन की शिक्षा नीति में सरकार निजी और डीम्ड सभी तरह की यूनिवर्सिटी पर एक से नियम लागू होंगे. इसके तहत अब यूसीजी और और एआईसीटी दोनों का विलय होगा और उच्च शिक्षा के सभी मामले को एक ही निकाय द्वारा नियंत्रित किया जाएगा. डॉ कस्तूरीरंगन जेएनयू के पूर्व चांसलर और कर्नाटक नॉलेज कमीशन के चेयरमैन भी रह चुके हैं. फिलहाल वे राजस्थान सेंट्रल यूनिवर्सिटी और NIIT यूनिवर्सिटी के चांसलर हैं.
केरल के एर्नाकुलम में 24 अक्टूबर 1940 के जन्मे डॉ कस्तूरीरंगन की शुरुआती पढ़ाई एर्नाकुलम में ही हुई. लेकिन उन्होंने अपने कॉलेज की तालीम मुंबऐई के माटुंगा में रामनारायन रुइया कॉलेज से विज्ञान में ऑनर्स के साथ पूरी की. इसके बाद उन्होंने मुंबई यूनिवर्सटी से अपनी फिजिक्स में मास्टर्स की डिग्री हासिल की. 1971 में उन्होंने एक्सपेरिमेंटल हाई एनर्जी एस्ट्रोनॉमी में अपनी डॉक्टरेट हासिल की. एस्ट्रोनॉमी और स्पेस साइंस में उनके 244 शोधपत्र प्रकाशित हुए.
भारतीय अंतरिक्ष अभियानों से शुरू से ही जुड़ाव
डॉ कस्तूरीरंगन भारत के पहले दो प्रयोगात्मक अर्थ ऑबजरवेशन सैटेलाइट, भास्कर 1 और भास्कर 2 के प्रोजेक्ट डायरेक्टर भी रह चुके हैं. उन्होंने इसरो सैटेलाइट सेंटर के निदेशक के तौर पर भी काम किया है. जिसके तहत इनसैट2, IRS1A, और 1B, को विकसित होने का काम हुआ.
डॉ कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में ही भारत के बहुत से सैटेलाइट अभीयानों ने सफलता पाई है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
SLV की सफलताएं
उन्ही के नेतृत्व में ही भारत ने सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल्स के सफल ऑपरेशन किए जिसमें पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) और जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) शामिल हैं. उन्हीं के मार्गनिर्देशन में ही रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट, इनसैट कम्यूनिकेशन सैटेलाइट जैसे सफल अभीयानों को अंजाम दिया गया.
पश्चिमी वैज्ञानिक शिक्षा का प्रभाव
डॉ कस्तूरीरंगन की अनुशंसित शिक्षा नीति में अमेरिका और यूरोपीय शिक्षा प्रणाली का भी प्रभाव है. इस नीति में बहुस्तरीय प्रवेश और निकास की व्यवस्था विकसित करने की कोशिश की गई है. इससे छात्र अपने स्नातक शिक्षा को बीच में ही छोड़ कर एक ब्रेक ले सकेंगे और बाद में उसे पूरा भी कर सकेंगे.
क्यों अब Fail शब्द का इस्तेमाल नहीं करेगी CBSE
हाल ही में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल (Central Board of Secondary Education, CBSE) ने बारहवीं (Twelfth class) और फिर दसवीं कक्षा (Tenth class) के नतीजे घोषित किए हैं. हर साल की तरह इस साल भी लोगों में यह चिंता है कि कहीं अनुत्तीर्ण छात्र बहुत ज्यादा निराश न हो जाएं. इससे बचने की दिशा में सीबीएसई ने एक अहम कदम उठाया है. अब बोर्ड की मार्कशीट में फेल (Fail) शब्द दिखाई नहीं देगा. अब वह फेल की जगह दूसरा बेहतर शब्द उपयोग में ला रहा है.
सीबीएसई ने खुद किया ऐलान
जब सीबीएसई ने बारहवीं कक्षा के नतीजों का ऐलान किया तो उसने इनके साथ ही नतीजों में फेल लिखना बंद करने की नीति अपना ली है. बोर्ड ने फेल शब्द का उपयोग मार्कशीट और अन्य दस्तावेजों में बंद करने की घोषणा करते हुए कहा कि अब उसने तय किया है कि वह फेल शब्द की जगह ‘असेंशियल रिपीट’ (Essential Repeat) शब्द का उपयोग करेगी. देश के कई शिक्षा बोर्ड, यूनिवर्सिटी और शैक्षणिक संस्थान लंबे समय से किसी परीक्षा या विषय में पास होने के जरूरी अंक हासिल न करने पर मार्कशीट में फेल शब्द का प्रयोग कर रहे हैं.
क्या फर्क पड़ेगा नतीजे पर
वैसे फेल शब्द की जगह असेंशियल रीपीट शब्द के उपयोग से छात्र की मार्कशीट में परिणाम पर कोई बदलाव नहीं आएगा. अगर कोई छात्र उत्तीर्ण या पास नहीं हो सका है तो उसे वह परीक्षा फिर से देनी होगी. वहीं साल रीपीट करने की शर्तों में भी कोई बदलाव नहीं किया है. बोर्ड का मानना है कि फेल शब्द की जगह इस नए शब्द का उपयोग छात्रों पर नकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव नहीं डालेगा.
इसे हटाना कितना अच्छा कदम है?
कई शिक्षकों और विशेषज्ञों का मानना है कि फेल शब्द हतोत्साहित करने वाला है और वह एक महत्वहीनता का भाव लाता है. वह हमेशा के लिए एक ठप्पा लगने जैसा लगता है. इस कदम का कई लोगों ने स्वागत किया है. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार एक सेकेंड्री स्कूल की प्रिंसपल का कहना है कि जब अब फेल या फेलियर शब्द का उपयोग करते हैं, आप उसके प्रयासों को बेकार साबित करने की कोशिश करते हैं. चाहे नतीजा कुछ भी कोई भी छात्र जीवन में फेल नहीं होता.
बहुत बुरा असर होता है इस शब्द का
उन्होंने कहा, “जब कोई छात्र अपनी मार्कशीट में फेल या F अक्षर देखता है तो इसका उप पर गहरा असर होता है. उसे लगता है कि वह अब कोशिश नहीं कर सकता और कभी सफल नहीं हो सकता. जब हम काउंसलिंग करते हैं तब हमें पता चला है कि इस शब्द का बोझ क्या होता है. क्या होता है जब कोई उन्हें फेलियर कहता है. परीक्षा में फेल होना जीवन में फेल होना नहीं है. लेकिन जब आप यह कागज पर लिख कर उन्हें देते हैं तो यह उनके साथ जीवनभर रहता है.”
क्या वाकई फर्क पड़ेगा इससे
बोर्ड के इस कदम से उम्मीद की जा रही है कि अब छात्रों पर दबाव घटेगा और उससे हो सकता है कि नतीजों से निराश होकर आत्महत्या करने वाले छात्रों कीं की संख्या में कमी आए और उनपर मातापिता की ओर से दबाव भी कम हो. वैसे तो कम्पार्टमेट या सप्लीमेंट्री, कक्षा को रीपीट करने के नियमों में कोई बदलाव तो नहीं हुआ है. लेकिन फिर भी कई विशेषज्ञों का मानना है कि असेंशियल रीपीट शब्द सकारात्मकता दर्शाता है और छात्रों को दोबारा सफल होने के प्रेरित करने वाला हो सकता है. यह छात्रों का नई शुरुआत करने के लिए प्रेरित करेगा और वे इसे एक नए अनुभव की तरह महसूस कर सकेंगे.