12 साल पहले बनी महामारी से निपटने की योजना लागू ही नहीं होने दी , आज देश को करना पड़ रहा भुगतान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस समय कोरोना वायरस के कारण पैदा हुए हालात में कई मोर्चों पर मुश्किलों का सामना करना पड रहा है. इस समय मेडिकल स्टाफ के लिए सुरक्षा उपकरणों के साथ ही महामारी को लेकर गैर-प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों के कारण हालात को संभालने में ज्यादा मुश्किल पेश आ रही है. अधिकारी ने कहा कि अगर तब एनडीएमए की योजना पर अमल किया गया होता तो आज संक्रमण से मुकाबला आसान हो जाता. नेशनल डिजाजस्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (NDMA) के मुताबिक, देश कोई बडा सरकारी या निजी अस्पताल बायो-टेरेरिज्म (Bio-Terrorism) और महामारी (Epidemic) की स्थिति से निपटने के लिए तैयार नहीं है. देश में किसी अस्पताल के पास कोरोना वायरस (Coronavirus) से निपटने को जरूरी उपकरण तक नहीं हैं.
कोरोना वायरस (Coronavirus) पूरी दुनिया में अब तक 14 लाख से ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में ले चुका है. इनमें 82 हजार से ज्यादा की मौत हो चुकी है. भारत में हर दिन संक्रमित लोगों की संख्या में वृद्धि हो रही है. अब तक भारत में 5,194 लोग संक्रमित हुए हैं, जिनमें 149 की मौत हो चुकी है. लगातार ये कहा जा रहा है कि अचानक आई इस आफत से निपटने के लिए भारत ही नहीं कोई भी देश तैयार नहीं था. हालांकि, तथ्य कुछ और ही हैं. सार्स (SARS) वायरस को झेल चुके हांगकांग, ताइवान, सिंगापुर, वियतनाम जैसे देश इसके लिए पहले से ही तैयार थे. वहीं, भारत में भी 12 साल पहले ऐसी वैश्विक महामारी (Pandemic) या बायो-टेरेरिज्म (Bio-Terrorism) से निपटने की योजना बनाई गई थी, लेकिन लालफीताशाही (Bureaucrats) ने उसे पूरा नहीं होने दिया.
- योजना में सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन की तैयारी भी शामिल थी. एक वरिष्ठ अधिकारी ने Network18 को बताया कि उस समय बायोलॉजिकल आपदा के कारण अचानक होने वाली मौतों से बचने के लिए राज्यस्तर पर क्रिटिकल मेडिकल इक्विपमेंट और प्रोटेक्टिव क्लोदिंग जुटाने की योजना बना ली गई थी. इसमें सभी अस्पतालों में ऐसे हालात से निपटने के लिए पूरी तैयारी सुनिश्चित करने की बात कही गई थी. उन्होंने बताया कि इस योजना को बनाने के लिए एनडीएमए ने विशेषज्ञों की एक टीम बनाई थी. इसका नेतृत्व सशस्त्र बल मेडिकल सेवा के पूर्व डायरेक्टर जनरल लेफ्टिनेंट जनरल जेआर भारद्वाज ने किया था. उन्होंने कारगिल युद्ध में मेडिकल लॉजिस्टिक्स के मसले को शानदार तरीके से संभाला था.
राज्यस्तर पर सभी अस्पतालों में महामारी जैसे हालात से निपटने के लिए पूरी तैयारी सुनिश्चित करने की बात कही गई थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस समय कोरोना वायरस के कारण पैदा हुए हालात में कई मोर्चों पर मुश्किलों का सामना करना पड रहा है. इस समय मेडिकल स्टाफ के लिए सुरक्षा उपकरणों के साथ ही महामारी को लेकर गैर-प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों के कारण हालात को संभालने में ज्यादा मुश्किल पेश आ रही है. अधिकारी ने कहा कि अगर तब एनडीएमए की योजना पर अमल किया गया होता तो आज संक्रमण से मुकाबला आसान हो जाता. योजना का मसौदा बनाने में शामिल रहे एक अधिकारी ने कहा कि तब सुझाए गए समाधानों को बेहतर बनाने के बजाय पूरी योजना को ही लटका दिया गया. हमने मसौदे में साफ कर दिया था कि ऐसी समस्या से निपटने के लिए हमारे पास कितने संसाधन किस जगह मौजूद हैं. अगर उस योजना को पूरा किया होता तो आज कई तरह की समस्याएं सामने ही नहीं आतीं.
पूर्व सेना प्रमुख कहते हैं कि मैं कोई विवाद पैदा नहीं कर रहा हूं. सभी मंत्रालय अच्छा काम कर रहे थे. हालांकि, वास्तिवकता ये है कि काम के दबाव के कारण मंत्रालयों के पास लंबी संमय की योजनाओं और अप्रत्याशित संकटकाल की तैयारियों के लिए बहुत कम समय व ऊर्जा बचती है. लेफ्टिनेंट जनरल भारद्वाज की टीम का गठन 2004 में H1N1 के दुनिया भर में फैलने को ध्यान में रखकर किया गया था. टीम ने एक ऐसा टेम्प्लैट बनाने का सुझाव दिया था, जिससे साफ हो सके कि किसी केंद्र सरकार से लेकर जिलास्तर तक भयंकर आपदा का मुकाबला किस तरह किया जाएगा. एनडीएमए की योजना में सोशल डिस्टेंसिंग, आइसोलेशन अैर क्वारंटीन तकनीक के बारे में विस्तार से जिक्र किया गया था. साथ ही कहा गया था कि समय-समय पर इसका ड्रिल करके लोगों को भी इसके लिए तैयार किया जाए.
रिपोर्ट में कहा गया था कि राज्यस्तर पर दवाई, एंथ्रैक्स जैसी अहम वैक्सीन, पीपीई और डाग्नोस्टिक सुविधाओं की बेहद कमी है.
रिपोर्ट में कहा गया था कि सभी अस्पतालों को जैविक आपदा प्रबंध योजना तैयार रखने और मेडिकल स्टाफ को ऐसे हालात में काम करने का प्रशिक्षण देने का सुझाव दिया जाए. साथ ही राज्यस्तर पर क्रिटिकल इक्विपमेंट इकट्ठा करने का सुझाव भी दिया गया था. रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया था कि राज्यस्तर पर दवाई, एंथ्रैक्स जैसी अहम वैक्सीन, पीपीई और डाग्नोस्टिक सुविधाओं की बेहद कमी है. संकट की स्थिति में लंबी और थकाऊ खरीद प्रक्रिया के कारण ये संसाधन जुटाना मुश्किल हो जाएगा. रिपोर्ट में स्पष्ट कर दिया गया था कि देश का कोई भी सरकारी या निजी अस्पताल बायो-टेरेरिज्म या महामारी के बाद के हालात से निपटने के लिए किसी भी स्तर पर तैयार नहीं है.
आधिकारिेक सूत्रों का कहना है कि गृह मंत्रालय और स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय एनडीएमए से खुश नहीं थे. नेशन डिजाजस्टर मैनेजमेंट फोर्स को दुनिया में अपनी तरह के सबसे अच्छे बल की रेटिंग मिली ह. इन बल गृह मंत्रालय के विरोध के बाद भी अपना काम करने में जुटा है. नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद एनडीएमए के अधिकारों में और कमी कर दी गई. एनडीएमए के उपाध्यक्ष का कैबिनेट मंत्री का दर्जा घटा दिया गया. इस पद को कैबिनेट सचिव के समकक्ष कर दिया गया. साथ ही एनडीएमए के सदस्यों की रैंक राज्यमंत्री से घटाकर भारत सरकार के सचिव के बराबर कर दी गई. हालांकि, संस्था में कुछ क्षेत्रों के विशेषज्ञों को शामिल करा दिया गया. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘एनडीएमए के अध्यक्ष खुद प्रधानमंत्री होते हैं. ऐसे में सोचा गया कि एनडीएमए भी प्रधानमंत्री कार्यालय के नौकरशाहों की तरह काम करेगा. हालांकि, इसके परिणाम बहुत अच्छे नहीं निकले.’