अपनी ‘किताब द टाटा ग्रुप: फ्रॉम टॉर्चबियरर्स टू ट्रेलब्लेजर्स’ में लेखक शशांक शाह ने लिखा है कि जेआरडी टाटा एयर इंडिया के परिचालन के मामले में इतने सूक्ष्म स्तर पर निगाह रखते थे कि एक बार उन्होंने क्रू मेंबर्स के साथ टॉयलेट भी साफ किया था.
किताब में शशांक शाह लिखते हैं-अगर वो एयर इंडिया के काउंटर पर धूल देख लेते तो तुरंत अपने हाथों से साफ करने में भी नहीं हिचकिचाते थे. वो हर चीज पर निगाह रखते थे. चाहे वो प्लेन के भीतर का डेकोरेशन हो या एयर होस्टेस की साड़ी का रंग या फिर एयर इंडिया की होर्डिंग, सब पर अपनी निगाह रखते थे.
जेआरडी टाटा, एक ऐसा नाम जो मात्र उद्योगपति नहीं थे, बल्कि उन्होंने विज्ञान, स्वास्थ्य और उड़ान जगत के पुरोधा के रूप में अपनी पहचान बनाई थी. 22वर्ष की उम्र में 1926 में जेआरडी टाटा अपने पिता की मौत के बाद टाटा सन्स के डायरेक्टर बने. उसके 12 वर्ष बाद चेयरमैन बने. 25 मार्च 1991 तक वे उस पद पर बने रहे। इन सालों में पहले से ही देश के सबसे बडे औद्योगिक घराने को नई बुलंदियों तक पहुंचाया.
(तस्वीर टाटा संस की वेबसाइट से साभार)
पेरिस में पैदा हुए थे, वहीं रहते थे
जेआरडी (जहांगीर रतन जी दादाभाई) टाटा का जन्म 29 जुलाई 1904 को पेरिस में हुआ था. वे टाटा स्टील के संस्थापक जेएन टाटा के भतीजे रतन जी दादाभाई टाटा और उनकी फ्रांसीसी पत्नी सूनी के सबसे बड़े बेटे थे.
फ्रांस में पले बढ़े जेआरडी टाटा का कभी कभार छुट्टियों में मुंबई (तब बबंई) आना होता था. आगे चलकर 1924 के बाद व्यवसाय संभालने के लिए उन्हें मुंबई बुला लिया गया. उन्होंने बाॅम्बे हाऊस में टाटा स्टील के प्रभारी निदेशक जाॅन पीटरसन के अधीन कार्य शुरू किया.
टाटा की कंपनियों को 14 से 90 तक पहुंचाया
जेआरडी टाटा के रूप में टाटा घराने को एक ऐसा नेतृत्व मिला, जिन्होंने कंपनी में न्याय, समदृष्टि, कार्यस्थल पर नैतिकता समेत अन्य मानकों के सिद्धांत इस तरह स्थापित किए कि सालों तक यहां औद्योगिक शांति रही. एक बार उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि टाटा घराना चाहता तो अपनी मौजूदा स्थिति से कई गुना बड़ा होता, पर सवाल ही नहीं उठता कि वे अपने प्रिय सिद्धांतों को त्याग दे. जब जेआरडी टाटा ने कमान संभाली तब टाटा घराने की 14 कंपनियां थीं.
उनके कार्यकाल में ये संख्या बढ़कर 90 पर पहुंच गई. जेआरडी टाटा ने चेयरमैन बनते ही सभी कंपनियों को स्वायत्तता प्रदान की, लेकिन नैतिकता के सिद्धांतों के पालन में कड़े बने रहे. उनका मानना था कि मनुष्य का महत्व मशीनों से बढ़कर नहीं, तो समान जरूर है. श्रमिक हित के मद्देनजर उनके कार्यकाल में पर्सनल विभाग की स्थापना हुई. समाज कल्याण की योजनाएं शुरू हुईं. और आगे चलकर 1956 में संयुक्त परामर्श की प्रणाली लागू की गई.
परिवार नियोजन कार्यक्रम टाटा की देन थी
टाटा स्टील ने परिवार नियोजन कार्यक्रम में देश में एक मिसाल कायम की है, जो जेआरडी की ही देन है. इसके लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने उनको जनसंख्या पुरस्कार से सम्मानित किया. उन्होंने विज्ञान और कला के विकास में खूब योगदान दिया.
टाटा एयरलाइंस स्थापित की खुद भी थे अच्छे पायलट
उन्होंने देश में वायु परिवहन के यूग के सूत्रपात में योगदान दिया. 1953 से लेकर 1978 तक राष्ट्रीयकृत एयर इंडिया के चेयरमैन रहे. साथ ही वे भारत के पहले कमर्शियल पायलट थे. उन्होंने 1932 में टाटा एयर लाइंस की स्थापना की. जिसका नाम बाद में एयर इंडिया हुआ, जो देश की पहली नेशनल एयरलाइंस थी.
टाटा ने खुद कराची से बंबई की उड़ान भरी थी. उसके पचास साल बाद 78 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी सोलो उड़ान को फिर दुहराया ताकि युवा पीढ़ी में साहस की भावना का संचार हो सके.
जेआरडी टाटा पर भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया था.
अपनी उदारता के लिए हमेशा याद किए जाएंगे
1955 में जेआरडी पद्मविभूषण से नवाजे गए. सम्मानों और अवार्डों की फेहरिश्त काफी लंबी है. 1991में उन्होंने टाटा सन्स के चेयरमैन का पद त्याग दिया. 1992 में भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न की उपाधि दी. पहली बार ये सम्मान किसी उद्योगपति को मिला. 89 वर्ष की उम्र में 29 नवंबर 1993 को स्विटजरलैंड के जिनेवा में जेआरडी टाटा का देहांत हो गया.
जेआरडी टाटा अपनी सभ्यता, खुलेपन और उदारता के लिए हमेशा याद किए जाते रहेंगे. वे सत्ता के संपर्क में रहे, लेकिन कभी उससे प्रभावित नहीं हुए. चेयरमैनशिप के अपने चालीस सालों के दौरान उन्होंने जमशेदपुर को विकसित शहर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
वे कहते थे ‘मेरी याद में स्मारक बनाने की चिंता क्यों करते हो बस अपने चारों तरफ देखो’. वे कहते थे ‘कोई भी सफलता अथवा उपलब्धि सार्थक नहीं है जब तक वह देश तथा उसकी जनता के हित और जरूरत को पूरा नहीं करती है’