क्या किसानों के बीच सबकुछ ठीक नहीं है?:राकेश टिकैत ने खत्म होते किसान आंदोलन में जान डाली; अब वही मनमुटाव की वजह बन रहे हैं, उन पर आम आदमी पार्टी से नजदीकी का आरोप
भारतीय किसान यूनियन (उगरहां) के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह और गुरनाम चढ़ूनी सहित कई नेताओं ने राकेश टिकैत के कुछ कामों को लेकर नाराजगी जाहिर की है। संयुक्त मोर्चे के नेताओं का कहना कि टिकैत के कार्यक्रम में 'आप' के झंडे नजर आते हैं आंदोलन स्थल पर पक्के निर्माण वाले बयान पर भी किसान मोर्चे के अन्य नेता नाराज
नई दिल्ली। किसान आंदोलन को शुरू हुए चार महीने बीत चुके हैं, लेकिन सरकार और किसानों के बीच बात बनती नहीं दिख रही। उधर, देश के तकरीबन 40 किसान संगठनों को एक छतरी के नीचे लाने के लिए बने संयुक्त किसान मोर्चे के बीच रह-रहकर दरारें दिखने लगी हैं। 26 जनवरी को लाल किले पर हुई ट्रैक्टर परेड और हिंसा के बाद आंदोलन लगभग खत्म होने की कगार पर था, लेकिन 29 जनवरी को ‘राकेश टिकैत’ के आंसू रंग लाए और आंदोलन फिर खड़ा हो गया। टिकैत के आंसुओं ने आंदोलन को खत्म होने से तो बचाया साथ ही उन्हें किसान आंदोलन का चेहरा भी बना दिया।
टिकैत के आंदोलन का चेहरा बनने से संयुक्त मोर्चे में शामिल किसान संगठन बिदकने लगे हैं। राकेश टिकैत के 26 मार्च को आए एक बयान से यह दरारें फिर साफ दिखने लगी हैं। टिकैत ने कहा कि ‘वह दिल्ली-यूपी के गाजीपुर बॉर्डर पर पक्के निर्माण करेंगे।’ संयुक्त मोर्चा पहले भी यह साफ कर चुका है कि धरना स्थल पर पक्के घर बनाने का फैसला उनका नहीं है।
राकेश टिकैत ने धरनास्थल पर किसानों को पक्का घर बनाकर रहने की सलाह एक बार फिर दे दी है। वे कहते हैं कि ‘आंधी, पानी, गर्मी से बचने के लिए किसानों को पक्का घर बनाना पड़ेगा। सरकार अगर हमारी बात नहीं सुनती तो हमें ऐसा करना पड़ेगा। सिंघु बार्डर, टीकरी बार्डर और गाजीपुर में भी पक्के मकान बनने शुरू भी हुए। उधर संयुक्त मोर्चे ने यह तय किया था कि इस तरह का कोई कदम किसान नहीं उठाएंगे।’
भारतीय किसान यूनियन (हरियाणा) के अध्यक्ष गुरनाम चढ़ूनी टिकैत के इस बयान से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। वे साफ कहते हैं कि ‘संयुक्त मोर्चा पक्के घर बनाने का पक्षधर नहीं है। हम यहां किसानों के हित की बात करने के लिए बैठे हैं न कि यहां घर बसाने के लिए। हां, आंदोलन जितना लंबा चाहे सरकार खींच ले, हम हटने वाले नहीं।’ किसान नेता दर्शन पाल सिंह ने भी इस बयान से साफ तौर पर पल्ला झाड़ते हुए कहा, ‘हमें आंदोलन चलाना है न कि बयानबाजी करनी है।’
भारतीय किसान यूनियन (उगरहां) के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह ने भी इस बयान से किनारा कर लिया। उन्होंने कहा कि ‘संयुक्त मोर्चा जैसा कहेगा वैसा किया जाएगा। फिलहाल अभी मोर्चे में पक्के मकान बनाए जाने के बारे में कोई राय नहीं बनी है।’
चुनावी राज्यों में चुनाव प्रचार पर उभरे मतभेद
भारतीय किसान यूनियन (उगरहां) के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह पश्चिम बंगाल में किसानों द्वारा भाजपा के खिलाफ प्रचार करने के खिलाफ थे। वे कहते हैं कि ‘हम किसान संगठन हैं, न कि कोई राजनीतिक दल। हम मतदाताओं से यह कैसे कह सकते हैं कि इस दल को वोट दो और इसको नहीं।’ वे कहते हैं कि अगर हम भाजपा को वोट नहीं देने के लिए कहते हैं तो फिर इसका मतलब है कि दूसरी पार्टी को जिताने के लिए कह रहे हैं।
क्रांतिकारी किसान यूनियन के वरिष्ठ नेता दर्शनपाल और बलवीर सिंह राजेवाल संसद में जाकर फसल बेचने की राकेश टिकैत की हालिया टिप्पणी से नाराज हैं। दरअसल, टिकैत ने कहा था कि हम अपनी फसलों को बेचने के लिए संसद का रुख करेंगे। टिकैत ने कहा कि सरकार कहती है कि आप अपनी फसल कहीं भी बेच सकते हैं तो संसद के भीतर बैठे लोगों से अच्छा खरीददार कौन होगा? दर्शनपाल चुनावी राज्यों में भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत की शिरकत से भी सहमत नहीं हैं।
गुरनाम चढ़ूनी पहले भी राकेश टिकैत पर आरोप लगाते रहें हैं। 3 फरवरी को उनका एक वीडियो वायरल हुआ। इस वीडियो में उन्होंने राकेश टिकैत पर भाजपा की गोद में बैठने का आरोप लगाया। उन्होंने टिकैत पर आंदोलन को बेचने का आरोप भी मढ़ा। चढ़ूनी साफ कहते हैं कि यह आंदोलन किसी एक दल या किसी एक व्यक्ति के निर्णय से नहीं चल रहा है। इस आंदोलन का चेहरा भी कोई नहीं है। यह आंदोलन संयुक्त मोर्चे का है। हालांकि, चढ़ूनी संयुक्त मोर्चे में किसी भी तरह के मतभेद होने की बात से साफ इनकार भी करते हैं।
उधर, उत्तराखंड किसान मंच के अध्यक्ष भोपाल सिंह तो साफ कहते हैं कि ‘टिकैत की रैलियों में जाकर देखिए, वहां आपको आम आदमी पार्टी के बैनर और झंडे दिखेंगे। यह आंदोलन भटक गया है। राकेश टिकैत अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा का शिकार हो गए हैं।’ भोपाल सिंह ने 26 मार्च को देहरादून में हुई राकेश टिकैत की जनसभा का ही बहिष्कार कर दिया।
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीएम सिंह लाल किले पर हुई हिंसा के बाद से ही खुद को अलग कर चुके हैं। उन्होंने हिंसा, ट्रैक्टर रैली और लाल किले पर सिखों के पवित्र झंडे निशान साहिब को फहराने की घटना को गलत बताया था। उन्होंने भी आंदोलन की स्थिति खराब करने का ठीकरा राकेश टिकैत के सिर पर फोड़ा था।
क्या कहता है राकेश टिकैत का संगठन
भारतीय किसान यूनियन के नेता धर्मेंद्र मलिक कहते हैं कि राकेश टिकैत चेहरा नहीं बनना चाहते बल्कि वे किसानों का आंदोलन आगे बढ़ाना चाहते हैं। वे भाकियू नेता टिकैत पर लग रहे राजनीतिक महत्वाकांक्षा के आरोपों पर कहते हैं, ‘टिकैत जी को अगर चुनाव लड़ना था तो उनके पास पहले भी बहुत मौके थे। जब उन्हें लगा लड़ना चाहिए तो वे लड़े भी।’ क्या आगे टिकैत चुनाव लड़ने के बारे में सोच सकते हैं? धर्मेंद्र कहते हैं, ‘चुनावी राजनीति में जाने की मंशा अभी तो बिल्कुल भी नहीं है। लेकिन अगर वे जाना भी चाहें तो यह उनका निर्णय होगा।’ धर्मेंद मलिक का जवाब यह बताता है कि आंदोलन में सक्रिय रहने के साथ टिकैत के राजनीति में भी आने का रास्ता खुला है।