कोरोना में मंदिर बन गए अस्पताल:जैन मंदिर ने भवन की पांचों इमारतें कोविड अस्पताल में बदल दीं, स्वामी नारायण ने इलाज के साथ ही खाना-दवाइयां भी फ्री दीं

कोरोना जब कहर बरपा रहा था, तब देश के तमाम धार्मिक संस्थान मदद के लिए आगे आए, आज तीसरी रिपोर्ट मुंबई और वड़ोदरा से

मुंबई/ वड़ोदरा. कोरोना महामारी में देश के तमाम धार्मिक स्थल पीड़ितों की मदद का केंद्र बने। मुंबई में तो जैन मंदिर को कोविड हॉस्पिटल में ही बदल दिया गया। हम ऐसे ही धार्मिक स्थलों की कहानी ला रहे हैं। इस कड़ी में आज तीसरी रिपोर्ट मुंबई के पावन धाम जैन मंदिर और वड़ोदरा के स्वामी नारायण मंदिर की…।

अप्रैल-2020 में कोरोना महाराष्ट्र में कहर बरपा रहा था। अस्पतालों में बेड फुल हो चुके थे। ऑक्सीजन की कमी से मरीज मर रहे थे। लाखों रुपए जमा करने के बाद भी एक बेड का जुगाड़ मुश्किल हो गया था।

ऐसे में महाराष्ट्र सरकार ने नारा दिया था कि, ‘ऐसे धार्मिक संस्थान किस काम के जो मानवता के काम न आएं।’ सरकार का यह नारा कई धार्मिक संस्थाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बना।

इसके बाद जैन कम्यूनिटी ने 50 हजार स्क्वायर फीट में फैले अपने पांच मंजिला पावन धाम जैन मंदिर को कोविड अस्पताल में बदलने का निर्णय लिया।

सेवक प्रदीप मेहता कहते हैं, ‘साल 2009 में पावन धाम का भवन बना था। कोरोना से लोग मर रहे थे तो हमने निर्णय लिया कि, मंदिर की जो भी पूजा-आराधना होना है, वो बाहर से होगी और भवन का इस्तेमाल मरीजों के इलाज के लिए किया जाएगा। हमने पांचों फ्लोर कोरोना मरीजों के लिए आरक्षित कर दिए।’

ये मुंबई का पावन धाम जैन मंदिर है, जिसे कोविड हॉस्पिटल में बदल दिया गया था।

एक हजार रुपए प्रतिदिन के मामूली शुल्क पर मरीजों को नाश्ता, भोजन से लेकर जांच और इलाज तक की सुविधा दी गई। बाकी का जो खर्चा आ रहा था वो दानदाताओं की मदद से पूरा किया जा रहा था।

पहली लहर के वक्त दो महीने यह सेंटर चला। अप्रैल 2021 में दूसरी लहर आने पर 19 अप्रैल से फिर मंदिर की दो फ्लोर को कोविड केयर सेंटर में बदला गया। इस बार 75 बेड मरीजों के लिए उपलब्ध थे।

किसी भी जाति, धर्म, संप्रदाय के मरीज यहां आकर इलाज करवा सकते थे। एक फ्लोर सिर्फ पुलिसकर्मियों के लिए रिजर्व किया गया था और उनका इलाज पूरी तरह से मुफ्त किया गया।

प्रदीप ने बताया, ‘राष्ट्र संत नम्र मुनि महाराज साहेब की प्रेरणा से हुई इस सेवा के जरिए हमने 1400 से ज्यादा मरीजों को ठीक किया। मरीजों की संख्या कम होने और अस्पतालों में बेड खाली होने के बाद अब सेंटर बंद कर दिया गया है।’

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बीएपीएस ने अपने परिसर में कोविड मरीजों के लिए ऐसा इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया था।

दूसरी कहानी, वड़ोदरा के स्वामी नारायण मंदिर की…

बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (बीएपीएस) ने अपने परिसर में नॉन मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया था। यहां से 1100 से ज्यादा मरीज ठीक हुए हैं। इसके साथ ही बीएपीएस के ही निरामयी हॉस्पिटल में 30 वेंटिलेटर बेड अवेलेबल करवाए गए थे। जहां से 360 मरीजों की जान बची।

संस्थान ने अपने बालक छात्रावास को आइसोलेशन सेंटर में तब्दील कर दिया था। यह सुविधा उन लोगों के लिए थी जिन्हें घर में आइसोलेशन में रहने की सुविधा नहीं मिल पा रही थी। यहां से 242 मरीज ठीक होकर लौटे।

स्वामीनारायण मंदिर के ज्ञान वत्सल स्वामी ने बताया कि, ‘हमारी सभी सेवाएं एकदम मुफ्त थीं। हमने मरीजों से एक रुपया भी नहीं लिया। इलाज के साथ ही मरीजों और उनके साथ आए परिजनों को नाश्ता, भोजन दिया जाता था।’

‘देश में ऑक्सीजन की किल्लत हो रही थी इसलिए हमने अबूधाबी से दान प्राप्त कर 440 मैट्रिक टन लिक्विड ऑक्सीजन भारत भेजा। ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, ऑक्सीजन टैंक, क्रायोजेनिक टैंक भी विदेशों में स्थित अपने केंद्रों के जरिए भारत बुलवाए।’

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‘सरकारी अस्पतालों के साथ ही सामाजिक संस्थाओं को भी ऑक्सीजन कंसंट्रेटर दिए गए। हमने पांच लाख पाउंड का दान यूके से जुटाया था, इसे गुजरात सरकार को दिया गया। सरकार ने इस फंड को कोरोना मरीजों के इलाज में लगाया।’

बीएपीएस का बालक छात्रावास। इसे कोविड केयर सेंटर में बदल दिया गया था।

अब स्थितियां कंट्रोल में हैं। 27-28 मरीजों का इलाज हमारे सेंटर पर अब भी चल रहा है। इन सभी एक्टिविटीस के साथ ही वैक्सीनेशन प्रोग्राम में भी हम शामिल हुए हैं।

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