लद्दाख में आईटीबीपी का शौर्य:मई-जून में 6 बार ईस्टर्न लद्दाख में चीन का मुकाबला करनेवाले आईटीबीपी के 21 जवानों को गैलेंट्री मेडल

आर्मी के साथ मिलकर बहादुरी से संघर्ष किया और झड़प में घायल हुए सेना के जवानों को सुरक्षित जगहों तक पहुंचाया आईटीबीपी ने कई बार पूरी-पूरी रात पीएलए का सामना किया और 17 से 20 घंटों तक जवाबी कार्रवाई करते हुए चीनी सैनिकों को रोके रखा पैंगॉन्ग से लेकर हॉट स्प्रिंग और गलवान घाटी तक पैट्रोलिंग और चीन की घुसपैठ को रोकने और उनका मुकाबला करने के लिए ये 21 मेडल दिए गए

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आईटीबीपी ने पिछले मई और जून के दो महीनों में 5-6 बार लद्दाख के अलग-अलग इलाकों में चीन का मुकाबला करनेवाले आईटीबीपी के 21 अफसर और जवानों को गैलेंट्री मेडल देने की घोषणा की है। स्वतंत्रता दिवस के ठीक एक दिन पहले आईटीबीपी के डीजी देसवाल ने इसकी घोषणा की है।

आईटीबीपी के बयान के मुताबिक उनके जवानों ने पूर्वी लद्दाख में चीन से हुई झड़पों के दौरान न सिर्फ अपना बचाव किया, बल्कि चीन के सैनिकों की संख्या ज्यादा होने के बावजूद उन्हें रोककर स्थिति संभाले रखी। यही नहीं उन्होंने ये भी कहा है कि आईटीबीपी ने आर्मी के साथ मिलकर बहादुरी से संघर्ष किया और झड़प में घायल हुए सेना के जवानों को सुरक्षित जगहों तक पहुंचाया।

हिमालय की ऊंची चोटियों पर आईटीबीपी के जवान ड्यूटी देते हैं। 24 अक्टूबर 1962 को इसकी स्थापना की गई थी।

गौरतलब है कि अब तक सेना और चीन के सैनिकों के बीच गलवान घाटी में झड़प की ही रिपोर्ट्स सामने आई हैं। गलवान में सेना के साथ हुई झड़प के पहले अलग-अलग जगहों पर आईटीबीपी और चीन के सैनिकों का आमना सामना हुआ है। यही नहीं इस दौरान हाथापाई और पत्थरबाजी भी हुई है। कई बार ये झड़प 17-18 घंटे चली है और पूरी- पूरी रात भी आईटीबीपी के जवानों ने चीन के सैनिकों का मुकाबला किया है। इन झड़पों में चीन के सैनिक घायल भी हुए हैं और कुछ आईटीबीपी सैनिकों को भी चोट आई थीं।

डीजी आईटीबीपी ने 294 जवानों को ईस्टर्न लद्दाख में चीनी सैनिकों का शौर्य और बहादुरी के साथ सामना करने के लिए डीजी प्रशंसा पत्र और प्रतीक चिन्ह भी प्रदान किया है।

आईटीबीपी चीन से सटी सीमा पर फ्रंटलाइन फोर्स है। 3488 किमी लंबी चीन की सीमा पर फर्स्ट लाइन ऑफ डिफेंस है। हर जगह आईटीबीपी के पोस्ट हैं और फोर्स पैट्रोलिंग के जरिए हाई एल्टीट्यूड वाले इन ज्यादातर इलाकों की सुरक्षा करती है। गैलेंट्री मेडल की घोषणा जिन सैनिकों के लिए हुई है उन्होंने पैंगॉन्ग लेक से लेकर गलवान और हॉट स्प्रिंग के बीच ईस्टर्न लद्दाख के कई इलाकों में चीनी सैनिकों का मुकाबला किया है। और इन दोनों के बीच 2 महीनों में कम से कम 6 बार पत्थरबाजी और हाथापाई हुई हैं। हालांकि बेहद गोपनीय होने के चलते इसकी खबरें कभी सामने नहीं आई।

आईटीबीपी के 294 जवानों को स्वतंत्रता दिवस से पहले डीजी प्रशंसा पत्र दिए गए हैं। जिसके बाद ये पहली बार पब्लिक हुआ है कि आईटीबीपी और चीन के सैनिकों का आमना- सामना भी हुआ था। आईटीबीपी के बयान के मुताबिक, आईटीबीपी ने उन 21 कर्मियों के नाम बहादुरी पदक के लिए अनुशंसित किए हैं जिन्होंने पिछले मई और जून, 2020 के महीनों में ईस्टर्न लद्दाख में चीनी सैनिकों का झड़पों के दौरान बहादुरी से डटकर सामना किया था। डीजी आईटीबीपी एस एस देसवाल ने 294 आईटीबीपी जवानों को ईस्टर्न लद्दाख में चीनी सैनिकों का शौर्य और बहादुरी के साथ सामना करने के लिए डी जी प्रशंसा पत्र दिए हैं।

देश का पहला 1000 बिस्तरों का क्वारैंटाइन सेंटर छावला में बनाया था, जिसमें वुहान और बाद में इटली से आए भारतीय नागरिकों को रखा गया था।

क्या लिखा है आईटीबीपी के बयान में…

इसी बयान में कहा गया है कि आईटीबीपी जवानों ने ईस्टर्न लद्दाख में झड़पों के दौरान पत्थरबाजों से निपटने के लिए इस्तेमाल होने वाली शील्ड का प्रभावशाली उपयोग किया और बहुत पराक्रम के साथ संख्या में ज्यादा पीएलए जवानों का सामना करते हुए उन्हें रोके रखा और स्थिति को नियंत्रण में रखा। बहुत आला दर्जे के युद्ध कौशल का परिचय देते हुए आईटीबीपी के जवानों ने कंधे से कंधा मिलकर बहादुरी से संघर्ष किया और कई घायल सेना के जवानों को सुरक्षित स्थानों तक पहुँचाया।

आईटीबीपी ने अपने 318 कर्मियों और 40 अन्य केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के कर्मियों के नाम केंद्रीय गृहमंत्री स्पेशल ऑपरेशन ड्यूटी मेडल के लिए भेजे हैं। इन्होंने कोरोना के प्रसार को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

कई बार आईटीबीपी के जवानों ने पूरी रात पीएलए का सामना किया और 17 से 20 घंटों तक उन्हें जवाबी कार्रवाई करते हुए रोके रखा। आईटीबीपी के मुताबिक इन झड़पों में हाई एल्टीट्यूड में आईटीबीपी जवानों की ट्रेनिंग और उनकी हिमालय में तैनाती की क्षमता से कई सामरिक महत्व के क्षेत्रों को सुरक्षित रखा जा सका।

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