फायरिंग में घायल दानिश को इलाज के लिए मस्जिद में ले जाया गया, लेकिन तालिबान ने मस्जिद पर हमला कर उनका सिर कुचल डाला: अमेरिकी डिफेंस एक्सपर्ट

लेकिन, अमेरिकी रक्षा मंत्री के पूर्व सलाहकार माइकल रूबिन ने भारतीय और अफगान अधिकारियों से मुहैया कुछ फोटोग्राफ्स के आधार पर ही दावा किया है कि दानिश को तालिबान ने पकड़कर मारा।

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नई दिल्ली. अमेरिकी डिफेंस एक्सपर्ट, पेंटागन के पूर्व अधिकारी और अमेरिकी रक्षा मंत्री के सलाहकार रहे माइकल रूबिन ने दावा किया है कि तालिबान ने भारत के फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी को जिंदा पकड़ने के बाद बेरहमी से मारा था। इससे पहले दैनिक भास्कर से खास बातचीत में तालिबान प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने दानिश की मौत पर माफी मांगने से इनकार करते हुए कहा था कि दानिश युद्ध क्षेत्र में बिना हमारी इजाजत के आए थे और वे किसकी गोली से मारे गए, इसका कुछ पता नहीं है।

इस बाबत दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर में  रूबिन के दावों को तालिबान के सामने रखा तो तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने एक संदेश के जरिए सिर्फ इतना ही कहा कि ‘जो बातें कही जा रही हैं, वह सच नहीं हैं। दानिश युद्ध में मारे गए थे।’

तालिबान ने यह भी कहा था कि पूरे मामले को स्पष्ट करने के लिए वो दानिश सिद्दीकी से जुड़ी तस्वीरें भेजेंगे, लेकिन तालिबान ने ये तस्वीरें अभी तक हमें नहीं भेजी हैं। हमने जब जबीउल्लाह मुजाहिद को उनका तस्वीरें भेजने का वादा याद दिलाया तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। लेकिन, अमेरिकी रक्षा मंत्री के पूर्व सलाहकार माइकल रूबिन ने भारतीय और अफगान अधिकारियों से मुहैया कुछ फोटोग्राफ्स के आधार पर ही दावा किया है कि दानिश को तालिबान ने पकड़कर मारा।

दानिश सिद्दीकी अपनी फोटो पत्रकारिता के लिए दुनिया में मशहूर थे। उन्हें पुलित्जर पुरस्कार से भी नवाजा गया था। 16 जून को अफगानिस्तान में कवरेज के दौरान तालिबान ने उनकी हत्या कर दी थी।
दानिश सिद्दीकी अपनी फोटो पत्रकारिता के लिए दुनिया में मशहूर थे। उन्हें पुलित्जर पुरस्कार से भी नवाजा गया था। 16 जून को अफगानिस्तान में कवरेज के दौरान तालिबान ने उनकी हत्या कर दी थी।

सवाल: आपने दावा किया है कि तालिबान ने दानिश सिद्दीकी को जिंदा पकड़ा और फिर उनकी पहचान करके उन्हें मारा। आप तस्वीरों के आधार पर ऐसा कह रहे हैं या आपने अफगानिस्तान में मौके पर मौजूद लोगों से भी बात की है?
जवाबः दानिश सिद्दीकी अफगानिस्तान की सेना के साथ थे जो स्पिन बोल्दाक में तालिबान पर हमला करने निकली थी। सीमा सुरक्षा चौकी के करीब सेना की इस टुकड़ी पर तालिबान का हमला हुआ और टुकड़ी दो हिस्सों में बंट गई। दानिश सिद्दीकी के साथ तीन अफगान सैनिक बचे, जबकि कमांडर और बाकी जवान अलग हो गए थे।

तालिबान के हमले में दानिश सिद्दीकी घायल हो गए थे। उन्हें छर्रे लगे थे और इलाज के लिए उन्हें एक स्थानीय मस्जिद में ले जाया गया था। उनके मस्जिद में होने की जानकारी तालिबान को हुई तो फिर मस्जिद पर हमला किया गया। स्थानीय अधिकारियों से बातचीत के आधार पर मुझे पता चला कि मस्जिद पर हमला सिर्फ इसलिए ही किया गया था, क्योंकि तालिबान को दानिश की मौजूदगी का पता चल गया था।

दानिश सिद्दीकी को जिंदा पकड़ा गया था और फिर उनकी पहचान करने के बाद तालिबान ने उनकी हत्या की थी। दानिश के साथ पकड़े गए सैनिकों को भी मार दिया गया था। मैं ये दावा उन तस्वीरें के आधार पर कर रहा हूं जो भारतीय अधिकारियों ने मुझे मुहैया कराई हैं। मैंने अफगानिस्तान में इस मामले की जांच करने वालों से भी बात की है और इस घटनाक्रम की पुष्टि की है। तालिबान ने दानिश सिद्दीकी के शरीर को गोलियों से छलनी कर दिया था और उनका सिर कुचल दिया था।

मेरी जानकारी के हिसाब से ये तस्वीरें किसी और ने नहीं देखी हैं और इन्हें सार्वजनिक भी नहीं किया गया है। मैंने भी ये इसी शर्त पर देखी हैं कि मैं इन्हें किसी और से साझा नहीं करूंगा।

सवालः आपको क्या लगता है, तालिबान उनकी हत्या की बात से इनकार क्यों कर रहा है?
जवाबः तालिबान का रिकॉर्ड सच बोलने के मामले में बहुत अच्छा नहीं है। तालिबान ने सितंबर 2011 के हमलों से पहले झूठ बोला था, जब उन्होंने कहा था कि सभी आतंकवादी ट्रेनिंग कैंप बंद कर दिए गए हैं। उन्होंने तब भी झूठ बोला था, जब उन्होंने कहा था कि बिन लादेन को अलग-थलग कर दिया गया है और वे उन्हें पत्रकारों से बात करने की अनुमति नहीं देंगे।

तालिबान ने 29 फरवरी 2020 को अमेरिका के साथ हुए समझौते के बाद भी झूठ बोला कि उन्होंने अल कायदा से संबंध तोड़ लिया है। तालिबान बार-बार झूठ बोलता रहा है। दानिश की मौत की खबर जिस तरह से इंटरनेशनल मीडिया में आई, शायद उससे तालिबान के वरिष्ठ नेता अब इस बात को लेकर शर्मिंदा हैं कि उनके अभियान ने ये क्या कर दिया है, लेकिन उनके शब्दों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।

सवालः अफगानिस्तान के बड़े इलाके पर तालिबान के कब्जे को लेकर आपकी राय क्या है? क्या तालिबान पहले से ताकतवर हो गया है?
जवाब:
 इसके जिम्मेदार बहुत से लोग हैं, लेकिन मैं ट्रम्प और बाइडेन प्रशासन के उठाए गए कदमों से शर्मिंदा हूं। अफगानिस्तान से लौटने का फैसला राजनीतिक है। ये फैसला वॉशिंगटन से लिया गया है, बिना जमीनी हकीकत को समझे। चलिए ये ठीक भी है। यदि हम अफगानिस्तान से लौटने का इरादा ही रखते थे तो हमने ऐसे पहेलीनुमा शांति समझौते को क्यों स्वीकार किया जो व्यवस्थित तरीके से अफगानिस्तान की चुनी हुई सरकार को कमजोर करता है।

वास्तव में, अमेरिका ने अफगानिस्तान से बाहर निकलते समय दरवाजे पर काबुल सरकार को घुटने टिका दिए। सिर्फ हम ही इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं। अमेरिकी विदेश विभाग में अफगानिस्तान मसले की सुलह के लिए तैनात विशेष दूत जलमे खलीलजाद इस कहानी में विलेन ज्यादा हैं।

उन्होंने बार-बार बेईमानी की है। अफगानिस्तान की सरकार ने उन पर कभी भरोसा नहीं किया। अफगानिस्तान सरकार उन्हें ऐसे व्यक्ति के रूप में देखती है जिसकी दोहरी महत्वाकांक्षाएं और हित हैं जिनका विशेष दूत के रूप में उनकी भूमिका से कोई संबंध नहीं हैं, लेकिन सवाल ये है कि भारत कहां था?

कई महीनों तक, खलीलजाद ने भारत सरकार को जानबूझकर तालिबान के साथ अपने शांति प्रस्तावों और बातचीत से दूर रखा, ये भी तब जब इनका सीधा असर भारत और उसकी सुरक्षा पर होना था। अंत में विदेश मंत्रालय को बोलना पड़ा, लेकिन वो बहुत देर से और बहुत नरमी से बोले। ये सब कह देने के बाद एक तथ्य ये भी है कि अब तालिबान के पास एक एजेंसी है। तालिबान को पाकिस्तान का समर्थन है। और अभी उनके पास रफ्तार है, अफगानिस्तान में रफ्तार ही हमेशा से मायने रखती रही है।

सवालः भारत के हित अफगानिस्तान से जुड़े हैं, क्या आपको लगता है कि तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा कर लेने की स्थिति में भारत अपने हितों को सुरक्षित रख सकेगा?
जवाब: 
भारत अपने हितों की रक्षा करने में सक्षम है, लेकिन तालिबान के उदय ने भारत को रणनीतिक नुकसान की स्थिति में पहुंचा दिया है। पाकिस्तान अफगानिस्तान को एक रणनीतिक ताकत के रूप में देखता है। अफगानिस्तान आसानी से भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधियों का गढ़ बन सकता है, जैसा कि 9/11 से पहले हरक उल मुजाहिदीन जैसे संगठनों के अड्डे अफगानिस्तान में थे। बड़ा सवाल ये है कि क्या तालिबान पश्चिमी अफगानिस्तान के इलाकों को अपने नियंत्रण में रख पाएगा जिन तक संभावित तौर पर चाबहार बंदरगाह के जरिए पहुंचा जा सकता है।

सवालः क्या आपको लगता है कि अमेरिका और भारत की सरकार ने दानिश सिद्दीकी की मौत पर सख्त प्रतिक्रिया नहीं दी?
जवाब:
 भारत के लिए तो मैं कुछ नहीं कह सकता, लेकिन अमेरिका हमेशा से अपने हित देखता है। खासकर अब अमेरिका अपने राजनीतिक फैसलों के परिणामों से ध्यान हटाना चाहता है। हम एक ऐसी फंतासी दुनिया में रह रहे हैं, जहां हमारे अपने उस हकीकत से मुंह मोड़ रहे हैं जो तालिबान जमीन पर कर रहा है।

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