जस्टिस चंद्रचूड़ बोले- संविधान निर्माताओं ने हिंदू भारत या मुस्लिम भारत के विचार को खारिज कर दिया था

अहमदाबाद में एक व्याख्यान देते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने हिंदू भारत या मुस्लिम भारत के विचार को खारिज कर दिया था.

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अहमदाबाद: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि ‘असहमति’ लोकतंत्र का ‘‘सेफ्टी वॉल्व’’ है. उन्होंने कहा कि असहमति को एक सिरे से राष्ट्र-विरोधी और लोकतंत्र-विरोधी बता देना संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण एवं विचार-विमर्श करने वाले लोकतंत्र को बढ़ावा देने के प्रति देश की प्रतिबद्धता के मूल विचार पर चोट करता है.जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने हिंदू भारत या मुस्लिम भारत के विचार को खारिज कर दिया था. उन्होंने सिर्फ भारत गणराज्य को मान्यता दी थी.

 

जस्टिस चंद्रचूड़ ने अहमदाबाद में एक व्याख्यान देते हुए यह भी कहा कि असहमति पर अंकुश लगाने के लिए सरकारी तंत्र का इस्तेमाल डर की भावना पैदा करता है जो कानून का शासन का उल्लंघन करता है. उन्होंने कहा, ‘‘असहमति को एक सिरे से राष्ट्र-विरोधी और लोकतंत्र-विरोधी करार देना संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण और विचार-विमर्श करने वाले लोकतंत्र को बढ़ावा देने के प्रति देश की प्रतिबद्धता की मूल भावना पर चोट करती है.’’

 

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि असहमति का संरक्षण करना यह याद दिलाता है कि लोकतांत्रिक रूप से एक निर्वाचित सरकार हमें विकास एवं सामाजिक समन्वय के लिए एक न्यायोचित औजार प्रदान करती है, वे उन मूल्यों एवं पहचानों पर कभी एकाधिकार का दावा नहीं कर सकती जो हमारी बहुलवादी समाज को परिभाषित करती हैं.

 

उन्होंने यहां आयोजित 15 वें, न्यायमूर्ति पीडी देसाई स्मारक व्याख्यान ‘भारत को निर्मित करने वाले मतों : बहुलता से बहुलवाद तक’’विषय पर बोल रहे थे. उन्होंने कहा, ‘‘असहमति पर अंकुश लगाने के लिए सरकारी मशीनरी को लगाना डर की भावना पैदा करता है और स्वतंत्र शांति पर एक डरावना माहौल पैदा करता है जो कानून के शासन का उल्लंघन करता है और बहुलवादी समाज की संवैधानिक दूरदृष्टि से भटकाता है.’’

 

जस्टिस चंद्रचूड़ की यह टिप्पणी ऐसे वक्त आई है जब संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) ने देश के कई हिस्सों में व्यापक स्तर पर प्रदर्शनों को तूल दिया है. उन्होंने कहा कि सवाल करने की गुंजाइश को खत्म करना और असहमति को दबाना सभी तरह की प्रगति-राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक– की बुनियाद को नष्ट करता है. इस मायने में असहमति लोकतंत्र का एक ‘‘सेफ्टी वॉल्व’’ है.

 

जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि असहमति को खामोश करने और लोगों के मन में भय पैदा होना व्यक्तिगत स्वतंत्रता के हनन और संवैधानिक मूल्य के प्रति प्रतिबद्धता से आगे तक जाता है. गौरतलब है कि जस्टिस चंद्रचूड़ उस पीठ का हिस्सा थे, जिसने उत्तर प्रदेश में सीएए के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों से क्षतिपूर्ति वसूल करने के जिला प्रशासन द्वारा कथित प्रदर्शनकारियों को भेजी गई नोटिसों पर जनवरी में प्रदेश सरकार से जवाब मांगा था.

 

उन्होंने यह विचार प्रकट किया, ‘‘असहमति पर प्रहार संवाद आधारित लोकतांत्रिक समाज के मूल विचार पर चोट करता है और इस तरह किसी सरकार को यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि वह अपनी मशीनरी को कानून के दायरे में वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संरक्षण के लिए तैनात करे तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाने या डर की भावना पैदा करने की किसी भी कोशिश को नाकाम करे.’’

 

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि विचार-विमर्श वाले संवाद का संरक्षण करने की प्रतिबद्धता प्रत्येक लोकतंत्र का, खासतौर पर किसी सफल लोकतंत्र का एक अनिवार्य पहलू है. उन्होंने कहा कि कारण एवं चर्चा के आदर्शों से जुड़ा लोकतंत्र यह सुनिश्चित करता है कि अल्पसंख्यकों के विचारों का गला नहीं घोंटा जाएगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि प्रत्येक नतीजा सिर्फ संख्याबल का परिणाम नहीं होगा, बल्कि एक साझा आमराय होगा.

 

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि लोकतंत्र की ‘‘असली परीक्षा’’ उसकी सृजनता और उन गुंजाइशों को सुनिश्चित करने की उसकी क्षमता है जहां हर व्यक्ति बगैर किसी भय के अपने विचार प्रकट कर सके. उन्होंने कहा कि संविधान में उदार वादे में विचार की बहुलता के प्रति प्रतिबद्धता है. संवाद करने के लिए प्रतिबद्ध एक वैध सरकार राजनीतिक प्रतिवाद पर पाबंदी नहीं लगाएगी, बल्कि उसका स्वागत करेगी.

 

उन्होंने परस्पर आदर और विविध विचारों की गुंजाइश के संरक्षण की अहमियत पर भी जोर दिया. जस्टिस चंद्रचूड़ के मुताबिक बहुलवाद को सबसे बड़ा खतरा विचारों को दबाने से और वैकल्पिक या विपरित विचार देने वाले लोकप्रिय एवं अलोकप्रिय आवाजों को खामोश करने से है.

 

उन्होंने कहा, ‘‘विचारों को दबाना राष्ट्र की अंतरात्मा को दबाना है.’’ उन्होंने यह भी कहा कि कोई भी व्यक्ति या संस्था भारत की परिकल्पना पर एकाधिकार करने का दावा नहीं कर सकता.

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