एतिहासिक घड़ी-सुप्रीम कोर्ट, अदालत नंबर-एक, समय 10.30 बजे, अयोध्या विवाद में फैसला कल

16 अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले पर सुनवाई पूरी कर ली थी. 6 अगस्त से लगातार 40 दिनों तक इसपर सुनवाई हुई. कल इस मामले पर फैसले के लिए कोर्ट नंबर 1 खोला जाएगा.

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नई दिल्ली: कल यानी शनिवार को अयोध्या विवाद पर फैसला आएगा. कल सुबह 10:30 बजे सुप्रीम कोर्ट इसपर फैसला सुनाएगा. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच इसपर फैसला सुनाएगी. इस बेंच में पांच जज शामिल हैं. फैसले के लिए कल 1-नंबर कोर्ट खुलेगा. कोर्ट में सिर्फ मामले से जुड़े लोगों को आने की अनुमति मिलेगी. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस धनंजय वाई चन्द्रचूड़ , जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पांच सदस्यीय संविधान पीठ शनिवार की सुबह साढ़े दस बजे यह फैसला सुनाएगी. 16 अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले पर सुनवाई पूरी कर ली थी. 6 अगस्त से लगातार 40 दिनों तक इसपर सुनवाई हुई थी.

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आज सीजेआई ने की थी यूपी के मुख्य सचिव और डीजीपी से मुलाकात

 

बता दें कि आज ही चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और डीजीपी से मुलाकात की. इस मुलाकात में चीफ जस्टिस के साथ अयोध्या मामले पर सुनवाई करने वाले अन्य जज भी शामिल थे. जजों ने इस दौरान यूपी में सुरक्षा इंतजाम की जानकारी ली. साथ ही अधिकारियों से पूछा कि कानून व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के लिए क्या उन्हें कोर्ट से किसी सहयोग की जरूरत है?

 

अयोध्या के रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद का घटनाक्रम

 

1528: मुगल शासक बाबर के कमांडर मीर बाकी ने बाबरी मस्जिद बनायी.

 

1885: महंत रघुवर दास ने विवादास्पद रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के बाहर मंडप बनाने की अनुमति मांगते हुए फैजाबाद जिला अदालत से अनुमति मांगी. अदालत ने अर्जी खारिज कर दी.

 

1949: विवादास्पद ढांचे के बाहर मध्य गुबंद के नीचे रामलला की मूर्तियां रखी गयीं.

 

1950: गोपाल शिमला विशारद ने रामलला की मूर्तियों की पूजा करने का अधिकार हासिल करने के लिए फैजाबाद जिला अदालत में मुकदमा दायर किया. परमहंस रामचंद्र दास ने पूजा की निरंतरता और मूर्तियां रखे रहने के लिए अर्जी दायर की.

 

1959: निर्मोही अखाड़े ने संबंधित जमीन पर कब्जे की मांग करते हुए वाद दायर किया.

 

1981: उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी जमीन पर कब्जे की मांग करते हुए वाद दायर किया.

 

1 फरवरी, 1986: स्थानीय अदालत ने हिंदू श्रद्धालुओं के लिए उस स्थान को खोलने का सरकार को आदेश दिया.

 

14 अगस्त, 1989: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादस्पद ढांचे के संदर्भ में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया.

 

6 दिसंबर, 1992: रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवादास्पद ढांचे को ढहा दिया गया.

 

3 अप्रैल, 1993: विवादास्पद क्षेत्र में केंद्र द्वारा जमीन के अधिग्रहण के लिए ‘अयोध्या में खास क्षेत्र अधिग्रहण विधेयक’पारित कराया गया. इस कानून के विभिन्न पहलुओं को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में कई रिट याचिकाएं दायर की गयी और उनमें से एक याचिका इस्माइल फारूकी ने दायर की. सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 139 ए के तहत अपने क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल करते हुए रिट याचिकाएं स्थानांतरित कर दी जो हाई कोर्ट में लंबित थीं.

 

24 अक्टूबर, 1994: सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक इस्माइल फारूकी मामले में कहा कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है.

 

अप्रैल, 2002: हाई कोर्ट ने यह तय करने के लिए सुनवाई शुरू की कि विवादास्पद स्थल का मालिक कौन है.

 

13 मार्च, 2003: सुप्रीम कोर्ट ने असलम उर्फ भूरे मामले में कहा कि अधिग्रहीत जमीन पर किसी भी तरह की धार्मिक गतिविधि की इजाजत नहीं दी जा सकती.

 

30 सितंबर, 2010: हाई कोर्ट ने एक के मुकाबले दो के मत से विवादास्पद जमीन का सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाडे और रामलला के बीच तीन हिस्से में बांटने का फैसला सुनाया.

 

9 मई, 2011: सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या जमीन विवाद पर हाई कोर्ट के फैसले पर स्थगन लगाया.

 

21 मार्च, 2017: प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे एस खेहड़ ने सभी पक्षों को अदालत के बाहर विवाद सुलझाने का सुझाव दिया.

 

8 फरवरी,2018: सुप्रीम कोर्ट ने दीवानी अपीलों की सुनवाई शुरू की.

 

20 जुलाई, 2018 : सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा.

 

17 सितंबर, 2018: सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजने से इनकार कर दिया. इस मामले की सुनवाई 29 अक्टूबर से तीन न्यायाधीशों की नयी पीठ के समक्ष निर्धारित की गयी.

 

29 अक्टूबर,2018: सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी के पहले हफ्ते में उपयुक्त पीठ के समक्ष इस मामले को निर्धारित किया जो सुनवाई का कार्यक्रम तय करेगी.

 

24 दिसंबर, 2018: सुप्रीम कोर्ट ने चार जनवरी, 2019 को इस मामले से जुड़ी याचिकाओं को सुनवाई के लिए हाथ में लेने का फैसला किया.

 

4 जनवरी, 2019: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसके द्वारा गठित उपयुक्त पीठ 10 जुलाई को मालिकाना मामले की सुनवाइ की तारीख तय करने पर आदेश जारी करेगा.

 

8 जनवरी, 2019: सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई में न्यायमूर्ति एस ए बोबड़े, न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की सदस्यता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ का गठन किया.

 

10 जनवरी, 2019 : न्यायमूर्ति यू यू ललित ने इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट को 29 जनवरी से नयी पीठ के सामने सुनवाई का नया कार्यक्रम तय करना पड़ा.

 

25 जनवरी, 2019: सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ बनायी. नयी पीठ में प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबड़े, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस एस नजीर थे.

 

29 जनवरी, 2019: केंद्र विवादित स्थल के आसपास की 67 एकड़ अधिग्रहीत जमीन मूल मालिकों को लौटाने की अनुमति मांगते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा.

 

26 फरवरी, 2019: उच्चतम न्यायलाय ने मध्यस्थता की वकालत की और यह तय करने के लिए पांच मार्च की तारीख तय की कि इस मामले को शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त मध्यस्थ के पास भेजा जाए या नहीं.

 

8 मार्च, 2019: सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद को शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश एफ एम आई कल्लीफुल्ला की अगुवाई में एक समिति के पास मध्स्थता के लिए भेजा.

 

9 अप्रैल, 2019: निर्मोही अखाड़े ने अयोध्या के विवादित स्थल के आसपास की अधिग्रहीत जमीन मालिकों को लौटाने की केंद्र की अर्जी का सुप्रीम कोर्ट में विरोध किया.

 

9 मई, 2019 : तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी अंतरिम रिपोर्ट सौंपी.

 

10 मई, 2019: सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्ता प्रक्रिया को पूरा करने की समय सीमा 15 अगस्त तक के लिए बढ़ायी.

 

11 जुलाई, 2019 : सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता की प्रगति रिपोर्ट मांगी.

 

15 जुलाई, 2019: विशेष न्यायाधीश ने लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और अन्य की संलिप्तता वाले मामले की सुनवाई को पूरा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से और छह महीने का समय देने का अनुरोध किया.

 

18 जुलाई, 2019: सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता प्रक्रिया को जारी रखने की अनुमति दी और एक अगस्त तक नतीजा रिपोर्ट मांगी.

 

19 जुलाई, 2019: सुप्रीम कोर्ट ने विशेष न्यायाधीश से नौ महीने के अंदर फैसला सुनाने को कहा.

 

1 अगस्त, 2019: मध्यस्थता रिपोर्ट सीलंबद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट में पेश की गयी.

 

2 अग्स्त, 2019 : सुप्रीम कोर्ट ने मध्स्थता प्रक्रिया के विफल रहने पर छह अगस्त से रोजाना सुनवाई करने का निर्णय लिया.

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