अगस्त में प्लान बना, बड़े नेताओं को किसानों के बीच चौपाल लगाने का टास्क मिला, फीडबैक के बाद झुकी सरकार

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नई दिल्ली। 14 महीने बाद केंद्र सरकार किसानों के सामने झुक गई। प्रधानमंत्री मोदी ने शुक्रवार को कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया। अब सवाल है कि PM मोदी या भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का दिल आखिर क्यों पसीज गया?

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दिग्गज किसान नेता और केंद्र की राजनीति में दखल रखने वाले भाजपा नेता ने इसका जवाब हंसते हुए दिया। वे कहते हैं,’जो विरोधी कहते हैं भाजपा जनता के मन की बात नहीं सुनती, उन्हें अब कहना पड़ेगा PM मोदी अपने मन की बात कहते भी हैं और जनता के मन की बात सुनते भी हैं।’ तो क्या बात इतनी भर है? वे कहते हैं- देखिए राजनीति वे लोग कभी नहीं कर सकते जो हवा के रुख को न समझें।

उन्होंने नाम न लिखने की शर्त पर इस फैसले के पीछे की कहानी कही-‘ तीन महीने पहले अगस्त में किसान आंदोलन को लेकर चर्चा शुरू हुई। 16 से 25 अगस्त तक का पूरा प्लान बना। भाजपा के किसान मोर्चा को किसानों के बीच चौपाल लगाने का काम दिया गया। UP के आंदोलन प्रभावित इलाकों के दिग्गज नेताओं से बैठकों में हिस्सा लेने के लिए कहा गया। भाजपा नेता सुरेश राणा, राज्य कृषि मंत्री सूर्य सिंह शाही, राज्य सभा सदस्य विजय पाल सिंह तोमर समेत कई अन्य दिग्गज नेताओं को उन बैठकों शामिल होने के निर्देश दिए गए।’

वे कहते हैं- ‘तब से लेकर अब तक लगातार भाजपा कार्यकर्ता, किसान नेता और किसान मोर्चा ग्रामीण इलाकों में बैठक और ट्रैक्टर रैली आयोजित कर रहे हैं। इतना ही नहीं, सभी को एक रिपोर्ट भी तैयार करने के लिए कहा गया था।

सूत्रों की मानें तो यह रिपोर्ट भाजपा को किसान आंदोलन के चलते UP में होने वाले नुकसान के आंकलन पर थी। यह रिपोर्ट साफ इशारा कर रही थी कि UP चुनाव पर किसान आंदोलन का नकारात्मक असर दिखाई देगा। यह फीडबैक अक्टूबर के बीच सरकार को दी गई। हालांकि कृषि कानूनों के वापसी का फैसला गुप्त रखा गया। यह फैसला शीर्ष नेतृत्व का है।’

ऐलान के लिए आखिर यही दिन क्यों?
केंद्रीय मंत्रिमंडल टॉप सोर्स के मुताबिक लखीमपुर खीरी में सिखों की अच्छी खासी आबादी थी। वहां पर जो हुआ उसने कहीं न कहीं पार्टी की छवि को डैमेज किया। धार्मिक मौके इस तरह की घोषणाओं के असर को कई गुना बढ़ा देते हैं। करतारपुर कॉरिडोर खोलने और फिर प्रकाश पर्व में यह घोषणा दोनों मिलकर सिखों और किसानों के समुदाय के मन में भाजपा सरकार के लिए आई खटास को कम करने का काम करेंगे।

शुक्रवार का दिन किसानों के लिए खास रहा। प्रधानमंत्री मोदी ने देश के नाम अपने संबोधन में तीनों विवादित कृष कानून वापस ले लिए।
शुक्रवार का दिन किसानों के लिए खास रहा। प्रधानमंत्री मोदी ने देश के नाम अपने संबोधन में तीनों विवादित कृष कानून वापस ले लिए।

हालांकि शीर्ष नेतृत्व ने इस फैसले को लेने के बारे में कोई बड़ी बैठक नहीं की। इसलिए इस दिन को चुनने के बारे में कयास ही लगाया जा सकता है। फिर UP के साथ पंजाब के चुनाव भी हैं, तो वहां पर भी इस फैसले का असर पड़ेगा ही।

भाजपा ने लगाया गणित, 100 से ज्यादा सीटों पर था आंदोलन का असर
भारतीय किसान मोर्चा के सूत्रों के मुताबिक-साल 2012 के चुनाव में BJP ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कुल 38 सीटों पर जीत हासिल की थी। साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में BJP ने 88 सीटों पर जीत हासिल की। यानी 50 सीटों का फायदा हुआ। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी BJP ने अच्छा प्रदर्शन किया।

आगामी चुनाव में पश्चिमी UP की 110 सीटों में से तकरीबन 100 सीटों पर किसान आंदोलन का अच्छा खासा असर दिखाई पड़ रहा था। इसमें मेरठ, बागपत, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, हापुड़, बदायूं, सहारनपुर जैसे इलाके शामिल थे। साथ ही बुंदेलखंड की UP की सात सीटों पर भी नुकसान होता दिख रहा था।

फीडबैक में साफ कहा गया था ‘हम हारेंगे नहीं पर सीटें कम होंगी।’ उधर, पश्चिमी UP में रालोद नेता जयंत चौधरी और सपा का गठबंधन इस नुकसान को और ज्यादा करने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा था। जयंत चौधरी लगातार पश्चिमी UP में बैठकें और सभाएं कर रहे हैं। उनकी सभाओं में हजारों की तादाद में लोग शामिल हो रहे हैं।

सत्ता रहेगी तो इमेज बचेगी
पश्चिमी UP के एक दूसरे दिग्गज नेता जो पिछले तीन महीने से किसानों के साथ सभा और चौपाल में शामिल हैं। वे कहते हैं- ‘विरोधी इसे मोदी सरकार का यू-टर्न कहेंगे, बैकफुट पर आना कहेंगे। इमेज पर डेंट तो होगा, लेकिन सत्ता में रहेंगे तभी तो इमेज भी रहेगी। इमेज बनाने के कई और मौके आएंगे।

सत्ता का आकार भी छोटा हुआ तो विपक्षियों के हौसले बुलंद हो जाएंगे। मैसेज साफ है-विपक्षी की हर चाल हम नाकाम करेंगे।’ तो क्या कांग्रेस की प्रियंका गांधी के दौरों को नाकाम करने की भी यह एक कोशिश है? वे कहते हैं- मैंने कहा, विपक्षी कोई भी हो, भाजपा जनता के हित के लिए कड़े फैसले भी ले सकती है और जरूरत पड़ने पर विपक्ष की चाल को नाकाम करने के लिए राजनीतिक दांव पेच भी खेल सकती है।’

कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान और PM के UP दौरे साथ-साथ

PM मोदी लगातार UP के दौरे पर हैं। वे यूपी के अलग-अलग जिलों में जा रहे हैं और कई योजनाओं का शिलान्यास कर रहे हैं।
PM मोदी लगातार UP के दौरे पर हैं। वे यूपी के अलग-अलग जिलों में जा रहे हैं और कई योजनाओं का शिलान्यास कर रहे हैं।

PM नरेंद्र मोदी 19 नवंबर से लेकर 21 नवंबर तक महोबा, झांसी और मध्य प्रदेश के खजुराहो के तीन दिन के दौरे पर हैं। उन्होंने महोबा में अर्जुन सहायक परियोजना समेत करीब 3250 करोड़ रु. की योजनाओं की शुरुआत की है।

इससे पहले एक्सप्रेस वे का उद्घाटन और उससे पहले सिद्धार्थनगर और गोरखपुर समेत पूर्वांचल के जिलों में 9 मेडिकल कॉलेजों के उद्घाटन को UP के आगामी चुनाव से पहले जनता को मिलने वाले तोहफों के तौर पर देखा जा रहा है। दिवाली से पहले बनारस दौरे में भी PM मोदी ने शिव के डमरू के आकार के मंदिर का शिलान्यास किया।

आम जनता को ई बसों का तोहफे समेत कई और वादे भी किए। कुल मिलाकर चुनाव भले ही UP में हों, लेकिन इसने केंद्र के माथे पर बल डाल दिए हैं। संभावित नुकसान को कम करने के लिए राज्य और केंद्र दोनों मिलकर कर भारी मशक्कत कर रहे हैं।

फैसले से पंजाब में अमरिंदर की राह होगी आसान
भारतीय किसान मोर्चा के एक पदाधिकारी ने बताया, ‘किसानों के पक्ष में केंद्र के फैसले का असर पंजाब में भी पड़ेगा। इसका सीधा फायदा भाजपा को नहीं होगा, लेकिन पूर्व कांग्रेसी कै.अमरिंदर को इसका फायदा मिल सकता है।

उनकी भाजपा से नजदीकी जग जाहिर है। लिहाजा वे लोगों से कहेंगे कि उन्होंने केंद्र को किसानों की मांगें मानने के लिए तैयार किया। भाजपा उन्हें श्रेय लेने देगी और उन्हें राज्य में जीतने का मुद्दा देगी। कै.अमरिंदर को होने वाला फायदा भाजपा को पंजाब में अपनी जमीन तलाशने में मदद करेगा।’

आम आदमी पार्टी के पूर्व दिग्गज नेता सुच्चा सिंह ‘छोटेपुर’ भी कहते हैं, ‘सिखों को मोदी सरकार ने तोहफा दिया। करतारपुर कॉरिडोर खोला और अब कृषि कानून वापस लिए। अब पंजाब की जनता भाजपा के सहयोगी को चुनाव में अपना सहयोग देकर मोदी सरकार को अपना धन्यवाद कहेगी।

सुच्चा सिंह पंजाब में प्रभावी नेता हैं और वे दोबारा किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ने की बात भी कह रहे हैं। वे किस पार्टी से जुड़ेंगे इस सवाल के जवाब में कहते हैं, ‘न तो कांग्रेस और न ही आम आदमी पार्टी।’ उनका इशारा साफ है। उन्होंने बिना बताए ही अपनी च्वाइस बता दी है।

 

 

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