इस देश ने बनाई कोरोना की वैक्सीन, बंदरों पर परीक्षण सफल, इंसानों पर ट्रायल जारी
चीन की राजधानी बीजिंग में मौजूद दवा निर्माता कंपनी साइनोवैक बायोटेक (Sinovac Biotech) ने दावा किया है कि उसने 8 बंदरों को अपनी नई वैक्सीन की अलग-अलग डोज दी थी. तीन हफ्ते बाद उन्होंने बंदरों की वापस जांच की.
पहली बार ऐसा हुआ है कि कोरोना वायरस को लेकर बनाई जा रही कई वैक्सीन ने बंदर को कोरोना के संक्रमण से बचाया है. यह सफलता हासिल की है चीन की एक दवा बनाने वाली कंपनी ने. इस कंपनी ने रीसस मकाउ बंदर यानी सामान्य लाल मुंह वाले बंदरों को वैक्सीन दी थी. उसके बाद जांच की तो पता चला कि इन बंदरों में अब कोरोना वायरस नहीं हो सकता. कंपनी ने 16 अप्रैल से इंसानों पर इस वैक्सीन का ट्रायल शुरू कर दिया है.
For the first time, one of the many #COVID19 vaccines in development has protected an animal, rhesus macaques, from infection by the new coronavirus, scientists report. https://t.co/AzFfTHLfWt @pulitzercenter
— News from Science (@NewsfromScience) April 23, 2020
चीन की राजधानी बीजिंग में मौजूद दवा निर्माता कंपनी साइनोवैक बायोटेक (Sinovac Biotech) ने दावा किया है कि उसने 8 बंदरों को अपनी नई वैक्सीन की अलग-अलग डोज दी थी. तीन हफ्ते बाद उन्होंने बंदरों की वापस जांच की.
जांच में जो नतीजे आए, वो हैरतअंगेज थे. बंदरों के फेफड़ों में ट्यूब के जरिए वैक्सीन के रूप में कोरोना वायरस ही डाला गया था. तीन हफ्ते बाद जांच में पता चला कि आठों में से एक भी बंदर को कोरोना वायरस का संक्रमण नहीं है.
साइनोवैक के सीनियर डायरेक्टर मेंग विनिंग ने बताया कि जिस बंदर को सबसे ज्यादा डो़ज दी गई थी, सात दिन बाद ही उसके फेफड़ों में या शरीर में कहीं भी कोरोना वायरस के कोई लक्षण या सबूत नहीं दिखाई दे रहे थे. कुछ बंदरों में हल्का सा असर दिखाई दिया लेकिन उन्होंने उसे नियंत्रित कर लिया.
साइनोवैक ने बंदरों पर किए गए परीक्षण के बाद वैक्सीन की रिपोर्ट 19 अप्रैल को bioRxiv वेबसाइट पर प्रकाशित की है. बंदरों पर आए हैरतअंगेज नतीजों के बाद मेंग विनिंग ने कहा कि हमें पूरा भरोसा है कि यह वैक्सीन इंसानों पर भी अच्छा असर करेगी.
मेंग विनिंग ने कहा कि हमने पुराना तरीका अपनाया है वैक्सीन को विकसित करने का. पहले कोरोनावायरस से बंदर को संक्रमित किया. फिर उसके खून से वैक्सीन बना लिया. उसे दूसरे बंदर में डाल दिया. इस तरीके से गरीब देशों को महंगी वैक्सीन की जरूरत नहीं पड़ेगी.
माउंट सिनाई में स्थित इकान स्कूल ऑफ मेडिसिन के वायरोलॉजिस्ट फ्लोरियन क्रेमर ने कहा कि मुझे वैक्सीन बनाने का ये तरीका पसंद आया. ये पुराना है लेकिन बेहद कारगर है. वहीं, पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी के डगलस रीड ने कहा कि तरीका अच्छा है लेकिन बंदरों की संख्या कम थी. इसलिए परिणामों पर तब तक पूरा भरोसा नहीं कर सकते जबतक यह बड़े पैमाने पर जांचा नहीं जाता.
साइनोवैक के वैज्ञानिकों का कहना है कि सवाल सही उठ रहे हैं लेकिन हमने उन बंदरों को भी कोरोना वायरस से संक्रमित कराया जिन्हें वैक्सीन नहीं दिया गया था. उनके अंदर कोरोना वायरस के संक्रमण के लक्षण स्पष्ट तौर पर दिखाई दिए.
साइनोवैक के वैज्ञानिकों ने फिर दावा किया कि हमने अपनी वैक्सीन में बंदर और चूहे के शरीर से ली गई एंटीबॉडीज को मिलाया है. इसके बाद इस वैक्सीन का ट्रायल हमने चीन, इटली, स्विट्जरलैंड, स्पेन और यूके के कोरोना मरीजों पर किया है. वैक्सीन में मौजूद एंटीबॉडीज ने कोरोना वायरस के स्ट्रेन को निष्क्रिय करने में सफलता पाई है.