जल्द मंजूरी की राह पर कोवीशील्ड वैक्सीन, जानिए कमेटी की सिफारिशों के बाद अब आगे क्या होगा?

इमरजेंसी अप्रूवल मांगने वाली दूसरी वैक्सीन, कोवैक्सिन स्वदेशी है। इसे हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) ने मिलकर बनाया है। इस पर अभी कमेटी ने कोई फैसला नहीं लिया है।

कोरोना के खिलाफ जंग में नए साल के पहले ही दिन बड़ी खबर आई है। सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) की सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी ने कोवीशील्ड वैक्सीन को सशर्त मंजूरी की सिफारिश की है। इससे उम्मीद बढ़ गई है कि जनवरी में ही भारत में बड़े स्तर पर वैक्सीनेशन शुरू हो जाएगा। आइए, जानते हैं कि यहां से आगे वैक्सीन का सफर कैसा रहने वाला है-

सबसे पहले, इमरजेंसी अप्रूवल किन कंपनियों ने मांगा था?

  • कोवीशील्ड या AZD1222 को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने ब्रिटिश फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर बनाया है। अदार पूनावाला का सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII) इसके भारत में ट्रायल्स कर रहा है। इसे ही एक्सपर्ट कमेटी ने सशर्त मंजूरी की सिफारिश की है।
  • इमरजेंसी अप्रूवल मांगने वाली दूसरी वैक्सीन, कोवैक्सिन स्वदेशी है। इसे हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) ने मिलकर बनाया है। इस पर अभी कमेटी ने कोई फैसला नहीं लिया है।
  • इन दोनों ही वैक्सीन के साथ इमरजेंसी अप्रूवल मांगने वाली तीसरी वैक्सीन अमेरिकी कंपनी फाइजर की थी, जिसे उसने बायोएनटेक के साथ मिलकर विकसित किया है। फाइजर की वैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने पूरी दुनिया के लिए इमरजेंसी यूज के लिए अप्रूवल दिया है। इसके बाद भी फिलहाल भारत की SEC ने उस पर कोई फैसला नहीं लिया है। वजह यह है कि फाइजर की वैक्सीन से एलर्जी की शिकायतें मिल रही हैं। इसी तरह इसके ट्रायल्स में भारतीय मूल के लोग शामिल नहीं रहे थे। इस वजह से कंपनी ने SEC के सामने डेटा पेश करने के लिए और वक्त मांगा है।

SEC की सिफारिश के बाद क्या होगा?

  • अमेरिका समेत कई देशों में दवाओं और वैक्सीन को इमरजेंसी यूज ऑथराइजेशन (EUA) यानी आपात मंजूरी के सख्त नियम हैं। इसके लिए गाइडलाइन भी तय है। पर भारत में ऐसा कुछ नहीं है। इसका मतलब यह नहीं है कि रेगुलेटर यहां बिना ट्रायल्स पूरे किए दवा या वैक्सीन अप्रूव नहीं करता। कोरोना के खिलाफ दवाओं को जल्द अप्रूवल दिया गया। जून में रेमडेसिविर को और जुलाई में आइटोलिजुमाब को ऐसे ही इमरजेंसी अप्रूवल दिए गए हैं।
  • भारत की टॉप वैक्सीन साइंटिस्ट और वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर डॉ. गगनदीप कांग के मुताबिक, पिछले साल ही भारत में नए क्लिनिकल ट्रायल्स के नियम बने हैं। इसमें रेगुलेटर को आपात परिस्थितियों में बिना ट्रायल के भी दवा या वैक्सीन को इमरजेंसी यूज के लिए मंजूरी देने का अधिकार दिया है।
  • डॉ. कांग के मुताबिक, इमरजेंसी यूज की परमिशन देने के बाद भी मॉनिटरिंग क्लिनिकल ट्रायल्स जैसी ही होती है। हर पेशेंट के डिटेल्स जरूरी होते हैं। उन पर नजर रखी जाती है। जिस कंपनी को अपने प्रोडक्ट के लिए कहीं और लाइसेंस मिला है, उसे प्री-क्लिनिकल और क्लिनिकल ट्रायल्स का पूरा डेटा रेगुलेटर को सबमिट करना होता है।
  • जब कंपनी इमरजेंसी रिस्ट्रिक्टेड यूज की परमिशन मांगती है, तो रेगुलेटर के स्तर पर दो स्टेज में वह प्रोसेस होती है। सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी उस एप्लिकेशन पर विचार करती है। उसके अप्रूवल के बाद मामला अपेक्स कमेटी के पास जाता है। इस कमेटी में स्वास्थ्य मंत्रालय से जुड़े विभागों के सचिव भी होते हैं।
  • फिलहाल कोवीशील्ड वैक्सीन को सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी की सशर्त मंजूरी मिल गई है। इस बीच, अपेक्स कमेटी उस पर विचार करेगी। उसके बाद ड्रग रेगुलेटर इसे मंजूरी देगा। वैसे, सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी की बैठकों में डेटा का पूरा आकलन कर ही फैसला होता है। लिहाजा, लगता नहीं कि अपेक्स कमेटी की मंजूरी में कोई दिक्कत आने वाली है।

इमरजेंसी अप्रूवल में क्या खतरा रहता है?

  • यह अलग-अलग दवा और वैक्सीन पर निर्भर करता है। हो सकता है कि आगे चलकर इमरजेंसी अप्रूवल हटा दिया जाए और पूरा प्रोजेक्ट ही बंद कर दिया जाए। कोरोना के इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और रेमडेसिविर के साथ ऐसा ही हुआ। WHO ने भी पहले जिन दवाओं को कोरोना में कारगर बताया, बाद में उन्हें वापस ले लिया।
  • इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के महाराष्ट्र चैप्टर के प्रेसिडेंट डॉ. अविनाश भोंडवे का कहना है कि इमरजेंसी अप्रूवल अधपके खाने जैसा है। बेहतर होगा कि जब खाना पूरी तरह पक जाए, तभी उसे खाया जाए। दुर्घटना से देर भली ही होती है।
  • FDA के मुताबिक, लोगों को ऐसी दवा, वैक्सीन या मेडिकल प्रोडक्ट के बारे में बताना आवश्यक है कि उसे इमरजेंसी अप्रूवल मिला है और अब तक उसकी सेफ्टी और इफेक्टिवनेस पूरी तरह से साबित नहीं हुई है। इसी तरह की प्रक्रिया का पालन भारत समेत सभी देशों में किया जा रहा है।

वैक्सीन कब तक उपलब्ध हो सकेगी?

  • कोवीशील्ड को बना रही SII की तैयारी पूरी है। कंपनी ने वैक्सीन को कसौली में सेंट्रल ड्रग्स लैबोरेटरी में टेस्टिंग के लिए भेज दिया है। यह एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया होती है, जिसमें लैबोरेटरी में बनी वैक्सीन नहीं बल्कि मैन्युफैक्चरिंग फेसिलिटी में बनी वैक्सीन को जांच के लिए भेजा जाता है।
  • सीरम के अदार पूनावाला का कहना है कि उन्होंने अपने रिस्क पर 5-6 करोड़ डोज बनाकर रखे हैं। जैसे ही औपचारिक प्रक्रिया पूरी होगी, वैक्सीन की डिलीवरी की प्रोसेस शुरू हो जाएगी।
  • सरकार ने 2 जनवरी को पूरे देश में वैक्सीनेशन का ड्राई रन रखा है। इससे पहले सरकार ने चार राज्यों के दो-दो जिलों में इस तरह का ड्राई रन किया था। उसमें हर सेंटर पर 25-25 हेल्थ वर्कर्स सिलेक्ट किए थे। कोविन प्लेटफॉर्म पर रजिस्ट्रेशन से लेकर हेल्थ वर्कर्स के वैक्सीनेशन साइट तक पहुंचने और साथ ही कोल्ड चेन साइट से वैक्सीनेशन साइट तक वैक्सीन पहुंचाने की प्रक्रिया को परखा गया था। पूरे देश में इसी तरह तैयारी का जायजा लिया जा रहा है।
  • सभी कुछ ठीक रहा तो दो हफ्ते के भीतर वैक्सीनेशन शुरू हो जाएगा। यानी इस साल मकर संक्रांति पर सूर्य के उत्तरायण होते ही वैक्सीनेशन शुरू हो सकता है। सीरम इंस्टीट्यूट की तैयारी मार्च तक 10 करोड़ डोज उपलब्ध कराने की है। भारत में पहले फेज में प्रायरिटी ग्रुप्स में शामिल 30 करोड़ लोगों को वैक्सीनेट किया जाना है।

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