दुनियाभर में डिप्रेशन और घबराहट के मरीज बढ़ रहे, 12% भारतीयों को भी कोरोना के डर से नींद नहीं आती: रिपोर्ट

एशियन जर्नल ऑफ सायकाइट्री में छपी एक रिसर्च के मुताबिक, 40% भारतीय महामारी के बारे में सोचते हैं तो उनका दिमाग अस्थिर हो जाता है अमेरिका में केजर फैमिली फाउंडेशन के सर्वे में 45% लोगों ने माना था कि उनकी मानसिक स्थिति को नुकसान हुआ है ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी ऑफ शेफील्ड और अल्सटर यूनिवर्सिटी की स्टडी के मुताबिक, लॉकडाउन के बाद 38% लोग डिप्रेशन में चले गए

नई दिल्ली. संतोष कौर (65) पंजाब के फगवाड़ा की रहने वाली थीं। 4 अप्रैल को उन्होंने सुसाइड कर लिया। पुलिस का कहना है कि उनके दिमाग में कोरोना संक्रमित होने का डर बैठ गया था। संतोष की बेटी बलजीत कौर ने भी बताया कि न्यूज चैनल देख-देख कर उन्होंने दिमाग में बैठा लिया था कि मुझे भी कोरोना हो गया है।

यह महज एक मामला है। पिछले 2-3 महीनों में ऐसे कई मामले भारत और बाकी कोरोना प्रभावित देशों से आते रहे हैं। सुसाइड के मामले इतने ज्यादा तो नहीं हैं, लेकिन तनाव, घबराहट के मामले इतने आ रहे हैं कि इन्हें गिना नहीं जा सकता। कहीं कोराना संक्रमित होने के डर से लोगों में घबराहट और अवसाद बढ़ रहा है तो कहीं लॉकडाउन के कारण लोगों की मानसिक हालत बिगड़ रही है। जिन लोगों को होम क्वारैंटाइन या क्वारैंटाइन सेंटरों में रखा गया है, वहां तो हालात और ज्यादा खराब है।

कोरोना के इस दौर में लोगों को नींद नहीं आ रही है, वे डरे हुए हैं, उदास हैं और कहीं-कहीं गुस्से में भी हैं। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट, अलग-अलग यूनिवर्सिटी की स्टडी और मेडिकल जर्नल में यह सामने आया है कि कोरोना और लॉकडाउन के चलते लोग अवसाद में जा रहे हैं। इससे निपटने के लिए अलग-अलग तरह की सलाहें भी दी जा रही हैं। डब्ल्यूएचओ ने तो लोगों को यह तक सलाह दे दी थी कि चिंता और घबराहट बढ़ाने वाली खबरों को देखना और पढ़ना बंद कर दें।

भारत में कोरोना के 30 हजार मामले हैं। अन्य देशों के मुकाबले यहां मौतों का आंकड़ा (900) कम है। लेकिन लोगों में घबराहट बनी हुई है। एशियन जर्नल ऑफ सायकाइट्री में छपी एक स्टडी में भारतीय लोगों में डिप्रेशन की रिपोर्ट सामने आई थी। अप्रैल के पहले हफ्ते में 18 से ज्यादा उम्र के 662 लोगों पर हुई स्टडी में 12% लोगों का कहना था कि कोरोना के डर के कारण उन्हें नींद नहीं आती। 40% का कहना था कि महामारी के बारे में सोचते हैं तो दिमाग अस्थिर हो जाता है। 72% ने यह माना था कि उन्हें इस महामारी के दौर में खुद की और परिवार की बहुत ज्यादा चिंता होती है। 41% का कहना ये भी था कि जब ग्रुप में कोई बीमार होता है तो हमारी घबराहट बढ़ जाती है।

लॉकडाउन के पांचवे दिन (29 मार्च) स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि कोरोनावायरस के डर और लॉकडाउन के चलते लोगों के मानसिक और व्यवहारिक तौर-तरीकों में बदलाव की खबरें मिल रही हैं। इसे देखते हुए नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस (निमहान्स) ने हेल्पलाइन नम्बर (08046110007) जारी किया है। अगर किसी को तनाव या घबराहट हो रही है तो इस टोलफ्री नम्बर पर कॉल कर आप डॉक्टरों से सुझाव ले सकते हैं।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 7.5% भारतीयों को किसी न किसी तरह का मानसिक रोग है और इनमें से 70% को ही इलाज मिल पाता है। इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि 2020 में भारत की 20% जनसंख्या का मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं होगा। महज 4000 विशेषज्ञों के लिए यह संख्या बहुत ज्यादा होगी।

केरल में लॉकडाउन के 100 घंटे के अंदर 7 सुसाइड हुए थे। शराब न मिलने के कारण लोग सुसाइड कर रहे थे। इसके बाद राज्य सरकार ने शराब के आदी लोगों के लिए डॉक्टर से पर्ची लाकर शराब खरीदने की मंजूरी दी थी।

 

अमेरिका में कोरोनावायरस से 55 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। यहां एक सर्वे के मुताबिक, 45% लोगों को महसूस हो रहा है कि कोरोना के कारण उनकी मानसिक स्थिति को नुकसान हुआ है। केजर फैमिली फाउंडेशन का यह सर्वे 25 से 30 मार्च के बीच हुआ था। इसी तरह वॉशिंगटन पोस्ट और एबीसी न्यूज पोल के के सर्वे में 77% अमेरिकी महिलाओं और 61% पुरुषों ने संक्रमण के डर से तनाव और घबराहट की बात कही थी। अमेरिका ने भी ऐसे मामलों की संख्या बढ़ने पर हेल्पलाइन नम्बर के साथ-साथ बच्चों, वयस्कों और बुजुर्गों के लिए अलग-अलग एक्टिविटीज कराने की एडवाइजरी जारी की थी।

ब्रिटेन कोरोना से हुई मौतों के मामले में 5वें नम्बर पर है। यहां भी लोगों में डिप्रेशन है लेकिन यह थोड़ा चौंकाने वाला है। यूनिवर्सिटी ऑफ शेफिल्ड और अल्सटर यूनिवर्सिटी की स्टडी के मुताबिक, लॉकडाउन के बाद यहां अचानक डिप्रेशन बढ़ा है। लॉकडाउन के दूसरे दिन 38% लोगों में डिप्रेशन और 36% लोगों में घबराहट की बात सामने आई थी। लॉकडाउन के ऐलान के एक दिन पहले तक ऐसे लोगों का प्रतिशत 16 और 17 था।

 

ब्रिटेन में 23 मार्च से लॉकडाउन है। 2 हजार लोगों पर यह स्टडी हुई थी। इस स्टडी में यह भी पाया गया था कि 35 से कम उम्र के लोगों में अवसाद और घबराहट सबसे ज्यादा था। ये वे लोग थे जिनकी इनकम बहुत कम थी या लॉकडाउन के बाद उनके पास पैसा आना पूरी तरह से बंद हो गया था। ब्रिटेन सरकार ने भी महामारी और लॉकडाउन के कारण मानसिक हालत को हो रहे नुकसान से बचाने के लिए मार्च के आखिरी हफ्ते में ऑनलाइन सपोर्ट और प्रैक्टिकल गाइड लाइन जारी की थी।

चीन के वुहान से कोरोना दुनियाभर में फैल चुका है। ज्यादातर देशों की सरकारों ने इसके लिए लॉकडाउन को ही सबसे बड़ा उपाय माना है। कहीं सख्त लॉकडाउन है तो कहीं बहुत सारी छूट के साथ यह लागू है। एक अनुमान के मुताबिक, दुनिया की एक तिहाई जनसंख्या इन दिनों घरों में कैद है। इन्हें अपनी नौकरी जाने का डर है, खुद और परिवार के लोगों को कोरोना होने का डर है, किसी ने अपनो को खोया है, कोई क्वारैंटाइन में रहकर मानसिक रोगों का शिकार हो रहा है। अलग-अलग देशों की सरकारें लोगों में देखे जा रहे इस मानसिक अवसाद को दूर करने के लिए अपने-अपने स्तर पर कोशिशें कर रही हैं। इस क्रम में सबसे अच्छी कोशिश चीन में ही देखी गई थी। यहां सरकार ने सेल्फ क्वारैंटाइन के पहले फेज में ही वुहान शहर में सॉयकोलॉजिस्ट और सायकायट्रिस्ट की टीम को पहुंचा दिया था।

यूरोपीय देश और अमेरिकी हॉस्पिटल्स में मरीजों और उनके परिवारों को अवसाद से निकालने के लिए गाना-बजाना होता रहता है।

 

पहले की महामारियों के दौरान भी कई स्टडियों में अवसाद और घबराहट को देखा गया था। दुनिया के सबसे पुराने मेडिकल जर्नल “द लॉसेंट” 26 फरवरी को क्वारैंटाइन के सॉयकोलॉजिकल प्रभाव पर एक पेपर पब्लिश हुआ था। इसमें पुरानी महमारियों के रिसर्च पेपरोंं का रिव्यू कर बताया गया था कि अपने किसी खास साथी को खो देना, अपने अधिकारों का सीमित हो जाना, रोग की स्थिति और अनिश्चितिता और जिंदगी में आई उदासी के कारण लोगों में अवसाद, घबराहट और गुस्से के लक्षण आने लगते हैं। कई बार यह सुसाइड का कारण बन जाता है। पिछली महामारियों के दौरान लोगों ने इस तरह के क्वारैंटाइन पर केस भी फाइल किए थे।”

Leave A Reply

Your email address will not be published.