रेल मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार कोरोना के मामलों और देश में स्वास्थ्य सेवाओं को देखते हुए शुरुआत में ही ट्रेनों के कोचों में कोविड केयर यूनिट तैयार किए गए थे. ताकि किसी भी आपात स्थिति में इनका इस्तेमाल किया जा सके. हालांकि अभी तक के आंकड़े बताते हैं कि देश में रोजाना करीब एक लाख मामले आने के बाद भी इन डिब्बों ढंग से इस्तेमाल नहीं हुआ है और न ही अब राज्य सरकारें इन कोचों की मांग कर रही हैं.
आंकड़ों के अनुसार केंद्र सरकार ने कुल 5231 गैर वातानुकूलित सवारी डिब्बों को अस्थाई रूप से कोविड 19 आइसोलेशन यूनिट के रूप में तैयार किया था. जिसका मकसद भारत में कोरोना के मामले बढ़ने के दौरान इनका इस्तेमाल आइसोलेशन के लिए करना था. हालांकि छह महीने बीतने के बाद राज्य सरकारों की ओर से मांगने पर इनमें से सिर्फ 813 डिब्बे ही मुहैया कराए गए हैं. बाकी बचे हुए 4418 डिब्बे अभी उसी अवस्था में आइसोलेशन यूनिट के रूप में तैयार रखे हुए हैं. इनका अभी तक कोई उपयोग नहीं हुआ है.
विशेषज्ञ बोले अब तक नहीं हुआ तो आगे भी नहीं होगा इन डिब्बों का इस्तेमाल
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के पूर्व निदेशक एमसी मिश्र कहते हैं कि जब सरकार ने इन डिब्बों को बनाया था तब कोरोना को लेकर डर बहुत ज्यादा था. उस वक्त इ से आइसोलशन का एक विकल्प माना गया था. हालांकि इन डिब्बों में गंदगी, पानी और सीवर की सुविधा न होने, वेंटिलेशन के साथ साथ वातानुकूलित न होने और अन्य समस्याओं के चलते इन्हें न बनाने की सलाह भी कई जगहों से पहुंची थी. अब जबकि देश में कोरोना के रोजाना मामले बढ़ रहे हैं, इसके साथ ही होम आइसोलेशन या होम क्वेरेंटीन का तरीका ज्यादा सफल और सुरक्षित लग रहा है तो लोग इन डिब्बों में बने आइसोलेशन यूनिट में जाना बिल्कुल भी नहीं चाहेंगे. इन डिब्बों में मरीज की देखभाल करना भी बड़ी चुनौती है. ऐसे में अगर अभी तक इनका इस्तेमाल नहीं हुआ तो आगे भी नहीं होगा. फिर भी यह सरकार का एक प्रयास है तो ठीक है.
एक कोच पर इतने पैसे हुए खर्च
ट्रेन के कोच को कोविड आइसोलेशन यूनिट बनाने में काफी पैसा खर्च हुआ है. एक कोच पर अनुमानित दो लाख रुपये खर्च हुए हैं. जिससे इन कोचों में शौचालय, आइसोलेशन बैड, मेडिकल स्टाफ और मेडिकल जरूरतों को पूरा करने वाले उपकरणों, सुरक्षा उपकरणों, मरीजों के लिए कपड़े और भोजन की सुविधा की गई थी. इस पूरे प्रोजेक्ट के लिए केंद्रीय कोविड देखभाल कोष से 620 करोड़ रुपये आवंटित होने की बात कही गई थी. हालांकि इनके बनने के बाद इन कोचों के इस्तेमाल न होने और उपयोग में न होने के पीछे कई समस्याएं सामने आई थीं.