कोवीशील्ड के दो डोज में अंतर को लेकर इतना कन्फ्यूजन क्यों? समझिए क्या है गैप को बार-बार बदलने के पीछे छिपा साइंस
नई दिल्ली। भारत में जब से कोरोनावायरस के खिलाफ टीकाकरण शुरू हुआ है, तब से कोविड-19 वैक्सीन के दो डोज का अंतर कितना होना चाहिए, इसने बहुत कन्फ्यूजन पैदा किया है। केंद्र सरकार कोवीशील्ड को लेकर दो बार नियम बदल चुकी है। पहले 22 मार्च को दो डोज के अंतर को 4-6 हफ्ते से बढ़ाकर 6-8 हफ्ते किया। फिर 13 मई को अंतर बढ़ाकर 12-16 हफ्ते कर दिया। पर कोवैक्सिन के डोज के अंतर में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
नई गाइडलाइन नेशनल टेक्निकल एडवायजरी ग्रुप ऑफ इम्युनाइजेशन (NTAGI) की सिफारिश पर जारी हुई है। इसके दो फायदे हैं- 1. अधिक से अधिक लोगों को इन्फेक्शन से बचाने के लिए वैक्सीन का एक डोज दिया जा सकेगा, और 2. वैक्सीन की इफेक्टिवनेस भी बढ़ेगी। पर क्या दो डोज के बीच का अंतर इतना बढ़ाना आपके लिए सुरक्षित है? अगर आपको दो डोज 6 हफ्ते के भीतर लगे हैं तो क्या आपको चिंता होनी चाहिए? जानिए इसके पीछे छिपा विज्ञान क्या कहता है…
इस फैसले के पीछे सरकार की दलील क्या है?
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के चीफ डॉ. बलराम भार्गव का कहना है कि दो डोज के अंतर को सिर्फ कोवीशील्ड के लिए बढ़ाया है, कोवैक्सिन के लिए नहीं। यह फैसला वैक्सीन के पहले डोज की इफेक्टिवनेस के आधार पर तय किया गया है। उनका कहना है कि कोवीशील्ड के पहले डोज की इफेक्टिवनेस ज्यादा है। ट्रायल्स में पता चला है कि यह 12 हफ्ते तक असरदार रहता है। इस वजह से दूसरा डोज देरी से लगाने का फैसला किया गया है। कोवैक्सिन को लेकर ऐसी कोई स्टडी नहीं हुई है, इस वजह से उसके दो डोज का अंतर नहीं बदला गया है।
डॉ भार्गव कहते हैं कि कोविड-19 की पहली वैक्सीन 15 दिसंबर को आई थी। तब से अब तक कोविड-19 वैक्सीन का साइंस इवॉल्व हो रहा है। हमें नई-नई बातें पता चल रही हैं और उस अनुसार हम अपने वैक्सीनेशन कैम्पेन में बदलाव ला रहे हैं। इसी कड़ी में जब पता चला कि कोवीशील्ड का पहला डोज 12 हफ्ते तक असरदार है तो हमने दो डोज के अंतर को बढ़ाया ताकि वैक्सीन की इफेक्टिवेनस बढ़ाई जा सके।
एक डोज असरदार है तो दूसरा डोज लेने की जरूरत ही क्या है?
सरकार की दलील से लगता है कि एक डोज ही हमें कम से कम तीन महीने तक प्रोटेक्शन देता है। तब दूसरे डोज की जरूरत ही क्या है? इस पर वैक्सीन वैज्ञानिक कहते हैं कि सभी वैक्सीन को खास तरीके से डिजाइन किया जाता है। जॉनसन एंड जॉनसन और स्पुतनिक लाइट वैक्सीन के एक डोज शरीर में पर्याप्त प्रोटेक्शन विकसित करती है। पर बाकी वैक्सीन ऐसी नहीं हैं। उन्हें इफेक्टिवनेस के लिए दो डोज का रखा गया है।
दो डोज वाली वैक्सीन में पहला डोज शरीर के एंटीबॉडी रेस्पांस को जगाता है। यानी उससे शरीर को ट्रेनिंग मिलती है कि वह वायरस या पैथोजन को पहचानें और शरीर के इम्यून सिस्टम को सक्रिय करें। वहीं दूसरा डोज उस इम्यून रेस्पांस को मजबूती देकर एंटीबॉडी को कई गुना बढ़ा देता है। इस वजह से यह सलाह दी जाती है कि अगर वैक्सीन को दो डोज के हिसाब से डिजाइन किया है तो उसके दो डोज लेने जरूरी है।
कोवीशील्ड के दो डोज का अंतर बढ़ाने के पीछे क्या विज्ञान है?
गाइडलाइन में बदलाव कोवीशील्ड के संबंध में कई केस स्टडी और क्लिनिकल डेटा के आधार पर किया गया है। यह बताता है कि पहले डोज के कुछ हफ्तों बाद अगर दूसरा डोज लिया जाए तो वैक्सीन की इफेक्टिवनेस काफी बढ़ जाती है।
शुरुआती सिफारिशों में कहा गया था कि कोवीशील्ड के दो डोज में 4-6 हफ्ते का अंतर रखा जाए। उसके बाद उसे बढ़ाकर 6-8 हफ्ते किया गया। हालांकि, क्लिनिकल रिसर्च बताती है कि अगर 8 हफ्ते से ज्यादा के अंतर से दो डोज दिए जाएं तो उसकी इफेक्टिवनेस 80%-90% हो जाती है।
मेडिकल जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित स्टडी के अनुसार वैक्सीन की इफेक्टिवनेस और शरीर का इम्यून रेस्पॉन्स भी दोनों डोज की देरी से प्रभावित होता है। रिसर्चर्स को पता चला कि कोवीशील्ड के मामले में दो डोज में अंतर जितना अधिक, इफेक्टिवनेस भी उतनी ही अधिक होगी। जब 6 हफ्ते से कम अंतर से दो डोज दिए गए तो इफेक्टिवनेस 50-60% रही, जबकि अंतर बढ़ाकर 12-16 हफ्ते करने पर 81.3% रही।
क्या सिर्फ भारत में दो डोज का अंतर बढ़ाया गया है?
- नहीं। भारत से पहले ब्रिटेन और स्पेन में भी एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के दो डोज के बीच 12 हफ्ते का अंतर रखा गया है। वहां भी क्लिनिकल स्टडीज में जब अंतर बढ़ाने का रेस्पॉन्स अच्छा दिखा तो यह फैसला लिया गया।
- डॉक्टरों का भी कहना है कि अगर दो डोज के बीच का अंतर बढ़ाया जाता है तो कोरोनावायरस के खिलाफ iG एंटीबॉडी रेस्पॉन्स दोगुना तक हो सकता है।