कोरोना के इलाज में मददगार नहीं जानलेवा साबित हो रहा है हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन, स्टडी में खुलासा

अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ और यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया के प्रोफेसरों ने ये स्टडी की है. रिसर्चर्स ने पाया कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (Hydroxychloroquine) दवा से कोरोना मरीज (COVID-19 Patient) की हालत पहले तो कुछ हद कर सुधरती है, लेकिन बाद में इतनी बिगड़ जाती है कि मरीज की मौत हो जाती है.

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नई दिल्ली. दुनियाभर के देश इन दिनों चीन से फैले कोरोना वायरस (Coronavirus) का कहर झेल रहे हैं. इस वायरस का अभी तक न तो कोई इलाज मिल पाया है और न ही कोई वैक्सीन विकसित हो पाई है. एंटी मलेरिया की दवाई हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन  को कोरोना संक्रमितों के इलाज में कुछ हद तक कारगर माना जा रहा था. इसी वजह से ही अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बीते दिनों धमकी भरे लहजे में भारत से इस दवा की सप्लाई की मांग की थी. हालांकि, अब अमेरिका में ही हुई एक नई स्टडी में इस दवा को लेकर हैरान करने वाली जानकारी मिल रही है.
इस स्टडी में दावा किया गया है कि कोरोना के इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन कारगर नहीं, बल्कि घातक साबित हो रही है. ऐसा देखा गया है कि सामान्य इलाज की तुलना में उन मरीजों की मौत ज्यादा हुई, जिन्हें हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा दी गई थी.

अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ और यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया के प्रोफेसरों ने ये स्टडी की है. रिसर्चर्स ने पाया कि इस दवा से कोरोना मरीज की हालत पहले तो कुछ हद कर सुधरती है, लेकिन बाद में इतनी बिगड़ जाती है कि मरीज की मौत हो जाती है. इस स्टडी से पहले कई वैज्ञानिक और तमाम देशों के हेल्थ एक्सपर्ट अब कोरोना वायरस से लड़ाई में इस दवा की भूमिका पर सवाल उठा चुके हैं.

इस स्टडी में दावा किया गया है कि कोरोना के इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन कारगर नहीं, बल्कि घातक साबित हो रही है. ऐसा देखा गया है कि सामान्य इलाज की तुलना में उन मरीजों की मौत ज्यादा हुई, जिन्हें हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा दी गई थी.

अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ और यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया के प्रोफेसरों ने ये स्टडी की है. रिसर्चर्स ने पाया कि इस दवा से कोरोना मरीज की हालत पहले तो कुछ हद कर सुधरती है, लेकिन बाद में इतनी बिगड़ जाती है कि मरीज की मौत हो जाती है. इस स्टडी से पहले कई वैज्ञानिक और तमाम देशों के हेल्थ एक्सपर्ट अब कोरोना वायरस से लड़ाई में इस दवा की भूमिका पर सवाल उठा चुके हैं.

वेटरन हेल्थ एडमिनिस्ट्रेशन (VA) के आंकड़ों के विश्लेषण में पाया गया है कि कोरोना के 97 फीसदी मरीजों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा दी गई, जिनमें से 28 फीसदी कोरोना मरीजों की मौत हो गई. वहीं, अगर सामान्य प्रक्रिया में इलाज होता है, तो मृत्यु दर सिर्फ 11 फीसदी ही रही.

स्टडी में ये भी कहा गया है कि कोरोना संक्रमितों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा अगर एजिथ्रोमाइसिन के साथ मिलाकर भी दी जाए, तब भी उसके बचने की उम्मीद कम रहती है.
इस स्टडी के लिए वैज्ञानिकों और रिसर्च टीम ने अमेरिका के अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती 368 कोरोना मरीजों के इलाज प्रक्रिया की जांच की. जांच में पता चला कि इनमें से 97 मरीजों के इलाज में मलेरिया की दवा का इस्तेमाल हुआ. वहीं, 158 मरीजों का सामान्य तरीके से हुआ. हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा से जिन 97 मरीजों का इलाज किया गया, उनमें से 27.8 मरीजों की मौत हो गई.
मरीजों के नर्वस और गैस्‍ट्रोइंटेस्‍टाइनल सिस्‍टम पर बुरा असर
रिचर्सर्स ने 4 अप्रैल से क्‍लोरोक्‍वीन और हाइड्रॉक्‍सीक्‍लोरोक्‍वीन की डोज के जरिये इलाज किए जा रहे मरीजों में होने वाले बदलावों का अध्‍ययन किया. इस दौरान उन्‍होंने दोनों दवाइयों के वायरल इंफेक्‍शन पर होने वाले असर और मरीजों की सुरक्षा का अध्‍ययन किया. इसके बाद जुटाए गए डाटा का मेटा-एनालिसिस किया. इसके अलावा एनालिसिस में होने वाली खामियों का आकलन करने के लिए ट्रायल सीक्‍वेंशियल एनालिसिस भी किया गया.
वेटरन हेल्थ एडमिनिस्ट्रेशन (VA) के आंकड़ों के विश्लेषण में पाया गया है कि कोरोना के 97 फीसदी मरीजों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा दी गई, जिनमें से 28 फीसदी कोरोना मरीजों की मौत हो गई. वहीं, अगर सामान्य प्रक्रिया में इलाज होता है, तो मृत्यु दर सिर्फ 11 फीसदी ही रही.

स्टडी में ये भी कहा गया है कि कोरोना संक्रमितों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा अगर एजिथ्रोमाइसिन के साथ मिलाकर भी दी जाए, तब भी उसके बचने की उम्मीद कम रहती है.
इस स्टडी के लिए वैज्ञानिकों और रिसर्च टीम ने अमेरिका के अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती 368 कोरोना मरीजों के इलाज प्रक्रिया की जांच की. जांच में पता चला कि इनमें से 97 मरीजों के इलाज में मलेरिया की दवा का इस्तेमाल हुआ. वहीं, 158 मरीजों का सामान्य तरीके से हुआ. हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा से जिन 97 मरीजों का इलाज किया गया, उनमें से 27.8 मरीजों की मौत हो गई.


रिचर्सर्स ने 4 अप्रैल से क्‍लोरोक्‍वीन और हाइड्रॉक्‍सीक्‍लोरोक्‍वीन की डोज के जरिये इलाज किए जा रहे मरीजों में होने वाले बदलावों का अध्‍ययन किया. इस दौरान उन्‍होंने दोनों दवाइयों के वायरल इंफेक्‍शन पर होने वाले असर और मरीजों की सुरक्षा का अध्‍ययन किया. इसके बाद जुटाए गए डाटा का मेटा-एनालिसिस किया. इसके अलावा एनालिसिस में होने वाली खामियों का आकलन करने के लिए ट्रायल सीक्‍वेंशियल एनालिसिस भी किया गया.
MedRxiv की रिपोर्ट के मुताबिक, यहां तक कि कुछ लीगल और मेडिकल ग्रुप्‍स का मानना है कि कोविड-19 के इलाज में इन दोनों दवाइयों के इस्‍तेमाल की वकालत करने वाले स्‍वास्‍थ्‍य अधिकारियों, सरकारों और डॉक्‍टर्स व हॉस्पिटल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए. वहीं, उनका कहना है कि मरीजों को भी अपने अधिकारों का इस्‍तेमाल करते हुए इन दवाइयों के जरिये इलाज कराने से इनकार कर देना चाहिए.
आखिर मौत देने वाली दवा से COVID-19 का इलाज क्यों करना चाहते हैं अमेरिकी डॉक्टर?

चीन (China) से दुनिया भर में फैले कोरोना वायरस (Coronavirus) का संक्रमण अब तक 1.77 लाख लोगों की जान ले चुका है, जबकि 25 लाख से अधिक लोग बीमार हो चुके हैं. कोरोना वायरस के असर को कम करने के लिए दुनियाभर के डॉक्टर नए-नए तरीके अपना रहे हैं. डॉक्टरों की इन्हीं कोशिशों में से एक ने कोरोना वायरस का इलाज कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों की चिंता बढ़ा दी है. दरअसल डॉक्टरों के एक समूह ने COVID-19 के इलाज के लिए मृत्युदंड में दी जाने वाली दवा अमेरिका के सभी राज्यों से मांगी है.सात फार्मासिस्टों, स्वास्थ्य विशेषज्ञों और गंभीर बीमारी का इलाज करने वाले डॉक्टरों के एक समूह ने अमेरिका के सभी राज्यों से पूछा है कि कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों का इलाज करने के लिए क्या वह अपने यहां मृत्युदंड में इस्तेमाल किए जाने वाली दवा उन्हें दे सकते हैं.

अपने पत्र में डॉक्टरों के इस समूह ने लिखा है कि राज्यों के पास रखे स्टॉकपिल से सैकड़ों लोगों की जिंदगी को बचाया जा सकता है. जो कोरोना वायरस से हो रही मौतों का एक छोटा सा ही हिस्सा होगा. हालांकि अभी तक इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है कि क्या राज्यों के पास ऐसी दवाएं हैं या नहीं. इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि इस तरह की दवाओं को रखने के लिए कई तरह के प्रोटोकॉल का इस्तेमाल किया जाता है. यही कारण है कि वायोमिंग को छोड़कर किसी भी राज्य ने इस पत्र का जवाब अभी तक नहीं दिया है.

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डॉक्टरों के समूह में शामिल डॉ. जोएल जिवेट ने कहा, मैं मृत्युदंड दिए जाने के फैसले पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा हूं. मैं अब मरीजों के चिकित्सक के रूप में दवा के बारे में पूछ रहा हूं, कृपया मेरी मदद करिए.

उन्होंने बताया कि ज्यादातर लोगों में कोरोना वायरस के काफी हल्के लक्षण दिखाई देते हैं. बुखार और खांसी जो दो से तीन सप्ताह तक अगर बनी रहे तो ऐसे लोगों के बारे में पहले ही पता चल जाता है, लेकिन कुछ लोगों में यह एक गंभीर बीमारी का रूप ले लेती है. इससे उन्हें सांस लेने में दिक्कत होती है और उन्हें वेंटिलेटर पर रखा जाता है. उन्होंने कहा कि कई दवाओं का इस्तेमाल लोगों को बेहोश करने और वेंटिलेटर पर रखने के लिए किया जाता है. दर्द का इलाज करने के लिए भी उन दवाओं का इस्तेमाल होता है जो कैदियों केा मौत के घाट उतारने में किया जाता है. ऐसी दवाओं की मांग मार्च में 73 प्रतिशत तक बढ़ गई है.
अमेरिका के 25 राज्यों में मृत्युदंड का है प्रावधान
बता दें कि अमेरिका के 25 राज्यों में मृत्युदंड का प्रावधान है जबकि तीन में मृत्युदंड पर रोक है. इन्हीं राज्यों में से एक फ्लोरिडा और अलाबामा से जब इस बारे में जानकारी इकट्ठा की गई तो उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया ज​बकि अरकंसास, टेक्सास और यूटाह ने साफ तौर पर कहा कि उनके पास ऐसी दवाएं हैं ही नहीं.

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