देश में कोरोना का बढ़ता खतरा / रिपोर्ट में दावा: भारत की स्थिति इटली से एक महीने और अमेरिका से सिर्फ 15 दिन दूर

भारत में दक्षिण कोरिया जैसी जांच होती तो संभवत: बीस गुना अधिक मामले सामने आ सकते थे देश की जीडीपी का केवल 1.6% स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च, भारत में इंटेंसिव केयर यूनिट में एक लाख बिस्तर

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नई दिल्ली. हजारों लोगों की जान लेने वाले कोरोनावायरस के प्रकोप से धरती ठप होने की कगार पर पहुंच गई है। एक बाद एक देशों में लोगों से पूरी गतिविधियां बंद करने के लिए कहा जा रहा है। ढहती अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए सरकारों ने खजाना खोल दिया है। भारत में इस समय वायरस का फैलाव बहुत व्यापक नहीं हुआ है। नियंत्रण न होने की स्थिति में वह इस मामले में इटली से एक महीने और अमेरिका से 15 दिन दूर है। दरअसल, चीन का पड़ोसी होने के बावजूद दोनों विराट एशियाई देशों में लोगों की आवाजाही सीमित है। ईरान, इटली जैसे देशों से भी बहुत लोग आते-जाते नहींं हैं। इन देशों में चीन के बाद बहुत तेजी से वायरस फैला है।

द इकोनॉमिस्ट ने कोरोना से दुनिया पर पड़ रहे आर्थिक प्रभावों का गहरा विश्लेषण किया है। मैगजीन ने लिखा है कि भारत में कम संख्या में लोगों की स्क्रीनिंग होने से सही हालात सामने नहीं आ रहे हैं।

ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत

केंद्र और राज्य सरकारों ने भी तेजी से कदम उठाए हैं। वुहान, तेहरान, मिलान में फंसे सैकड़ों भारतीयों को देश लाया गया है। टेलीविजन चैनलों और 90 करोड़ से अधिक मोबाइल फोन पर कोरोना से सावधानी बरतने के मैसेज लगातार चल रहे हैं। बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं से लैस केरल ने अच्छा उदाहरण पेश किया है। वहां स्वयंसेवक लोगों को मुफ्त खाना पहुंचा रहे हैं। केरल ने 2018 में निपाह वायरस पर काबू पाने में कामयाबी पाई थी। उस वक्त एक परिवार से 1000 लोगों में संक्रमण फैलाने वाले लोगों का पता लगाया था, लेकिन सभी राज्यों में ऐसी स्थिति नहीं है। राज्यों की सीमाओं पर लोगों की स्क्रीनिंग केवल तापमान मापने तक हो रही है। एक डॉक्टर कहते हैं, कोरोना से प्रभावित कोई भी व्यक्ति पैरासिटामॉल से बुखार को नियंत्रित कर आगे जा सकता है। वैसे, स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है, विदेश से आने वाले लोगों की जांच कर वायरस के प्रसार को सीमित किया है।

भारत में कम सुविधाएं चिंताजनक

कई लोग देश में टेस्टिंग किट की कमी का जिक्र करते हैं। भारत में 18 मार्च तक 12 हजार से अधिक लोगों की टेस्टिंग हुई थी। भारत की तुलना में बहुत कम आबादी के दक्षिण कोरिया में दो लाख 70 हजार व्यक्तियों की जांच हो चुकी है। प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी के रमनन लक्ष्मीनारायण कहते हैं- ‘मेरा संदेह है, यदि हमारे यहां 20 गुना अधिक टेस्ट होते तो 20 गुना से अधिक मामले सामने आ सकते थे। अगर वायरस भारत में आगे बढ़ गया तो उसकी स्थिति अन्य देशों से अलग होगी। ऐसी स्थिति में भारत अमेरिका से दो सप्ताह और इटली से एक माह पीछे रहेगा। देश की अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं को देखते हुए यह चिंताजनक होगा।’ बीते सालों में देश की जीडीपी का केवल 1.6% स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च हो रहा है। भारत में इंटेंसिव केयर यूनिट में एक लाख बिस्तर हैं। इनमें सालभर में 50 लाख लोग भर्ती होते हैं। संकट की स्थिति में हर महीने इतने लोगों के लिए इस सुविधा की जरूरत पड़ेगी।

ज्यादातर लोग काम छोड़ने या वर्क फ्रॉम होम की स्थिति में नहीं

फेफड़ों को प्रभावित करने वाली इस बीमारी से निपटने के लिए जनता भी तैयार नहीं है। वायु प्रदूषण और दवा प्रतिरोधी टीबी से बड़ी संख्या में लोगों के पीड़ित होने के कारण स्थितियां ठीक नहीं हैं। दुनिया के 49% डायबिटीज पीड़ित भारत में हैं। गरीबी की वजह से बहुत लोग काम छोड़ने या घर से काम करने की स्थिति में नहीं हैं। यहां तक कि 16 करोड़ भारतीयों को साफ पानी मयस्सर नहीं है। लोग उम्मीद करते हैं कि भीषण गर्मी से कोरोना पस्त पड़ जाएगा। कुछ बीमारियों के लिए तो ऐसा कहा जा सकता है पर कोरोना के लिए नहीं।

जनवरी-फरवरी में चीन की जीडीपी पहले से 10 से 20%घटी

यह साफ हो चुका है कि विश्लेषकों ने जैसी आशांका जताई थी, विश्व की अर्थव्यवस्था उससे बहुत अधिक बदतर हालत की तरफ बढ़ चुकी है। एक साल पहले की तुलना में चीन की विकास दर (जीडीपी) जनवरी, फरवरी में 10 से 20% कम हो गई। वायरस का प्रकोप चलता रहा तो अमेरिका, यूरोप की भी ऐसी स्थिति हो सकती है। चीन में औद्योगिक उत्पादन 13.5% घट गया है। रिटेल बिक्री 20.5% कम हुई है। मशीनरी, इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश 24% कम हुआ है। यह गिरावट पूर्वानुमान से 6 गुना ज्यादा है।

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