कोरोना के केस 10 लाख के पार :दुनिया में सबसे सख्त लॉकडाउन भारत में था, लेकिन 4 गलतियों से मामले बढ़े; 6 वो तरीके जिनसे कंट्रोल कर सकते थे
देश में कोरोना का पहला मामला 30 जनवरी को आया, पहले 5 लाख केस 148 दिन में हुए, अगले 5 लाख 20 दिन में ही लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों के पलायन से, स्पेशल ट्रेनों से और शराब की दुकानें खोलने से भी बढ़ी केस की रफ्तार
देश में कोरोना मरीजों की संख्या का आंकड़ा 10 लाख के ऊपर पहुंच गया है। सिर्फ 5 महीने और 16 दिन में भारत में कोरोना मरीजों की संख्या 1 से 10 लाख तक पहुंच गई। पहला मामला 30 जनवरी को आया था। कोरोनावायरस को रोकने के लिए देश में दुनिया का सबसे सख्त लॉकडाउन भी लगा था। ये हम नहीं कह रहे, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का डेटा कह रहा है।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने दुनियाभर में कोरोनावायरस के मामलों की स्टडी करने के लिए ऑक्सफोर्ड कोविड-19 गवर्नमेंट रिस्पॉन्स ट्रैकर बनाया है। इस ट्रैकर में 17 अलग-अलग पहलुओं के आधार पर रेटिंग की गई थी। इसके मुताबिक, भारत में जितना सख्त लॉकडाउन लागू किया था, उतनी सख्ती दुनिया के किसी देश में नहीं दिखाई गई।
समय बीता, लॉकडाउन में ढील मिली, रेटिंग गिरती रही
- कोरोनावायरस को फैलने से रोकने के लिए सबसे पहले 22 मार्च को एक दिन का जनता कर्फ्यू लगाया गया। उसके बाद 25 मार्च से देश में पूरी तरह से लॉकडाउन लग गया। देश में दो महीने में चार बार लॉकडाउन लगाया गया।
- पहला लॉकडाउन तो 25 मार्च से 14 अप्रैल तक लगा। ये सबसे सख्त लॉकडाउन था। इस दौरान ऑक्सफोर्ड के ट्रैकर में भारत के लॉकडाउन को 100 में से 100 पॉइंट मिले थे।
- 15 अप्रैल से 3 मई तक दूसरा लॉकडाउन लगा। हालांकि, 20 अप्रैल के बाद सरकार ने लॉकडाउन में ढील देनी भी शुरू कर दी थी।
- तीसरा लॉकडाउन 4 मई से 17 मई तक और चौथा लॉकडाउन 18 मई से 31 मई तक लगा।
- 1 जून से देश की तालाबंदी को खोला जाने लगा। अनलॉक-1 लागू हो गया।
- लॉकडाउन में ढील मिली, तो कोरोना की रफ्तार भी बढ़ी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा की थी, तब उनका फोकस ‘जान है, तो जहान है’ पर था। उसके बाद जब 14 अप्रैल को दूसरे लॉकडाउन की घोषणा करने आए, तो फोकस ‘जान भी, जहान भी’ पर चला गया। उसके बाद से ही देश में लॉकडाउन तो लगा, लेकिन ढील भी मिलती रही। इसका नतीजा ये हुआ कि देश में कोरोना के मामलों की रफ्तार भी तेजी से बढ़ने लगी। - लॉकडाउन से पहले रिकवरी रेट 7% से भी कम था, अब 63% के पार
लॉकडाउन लगने और लॉकडाउन खुलने के बाद भले ही देश में कोरोना मरीजों की संख्या में जबर्दस्त इजाफा हुआ। लेकिन, अच्छी बात ये भी रही कि ठीक होने वाले मरीजों की संख्या भी तेजी से बढ़ती रही। लॉकडाउन से पहले तक कोरोना मरीजों का रिकवरी रेट सिर्फ 6.86% था, जो अब 63% के पार पहुंच गया है।लॉकडाउन-1 में रिकवरी रेट बढ़कर 11% के ऊपर आ गया। लॉकडाउन-2 में 27% से ऊपर और लॉकडाउन-3 में 38% के ऊपर पहुंचा। जबकि, लॉकडाउन-4 में मरीजों का रिकवरी रेट 48% के पार पहुंच गया। अनलॉक-1 में तो रिकवरी रेट करीब 60% के आसपास आ गया। देश में कोरोना मरीजों की संख्या भले ही 10 लाख के ऊपर आ गई हो, लेकिन रिकवरी रेट भी 63% के पार पहुंच गया है।
पहले से 5 लाख केस होने में 148 दिन लगे, अगले 5 लाख मामले 20 दिन में हो गए
हमारे देश में कोरोनावायरस का पहला मामला 30 जनवरी को केरल में सामने आया था। उसके बाद 2 फरवरी तक ही केरल में 3 कोरोना संक्रमित सामने आ गए। ये तीनों ही चीन के वुहान शहर से लौटकर आए थे। उसके बाद करीब एक महीने तक देश में कोरोना का कोई भी नया मरीज नहीं मिल, लेकिन 2 मार्च के बाद से संक्रमितों की संख्या रोजाना बढ़ती चली गई।
पहले केस से लेकर 5 लाख केस तक पहुंचने में 148 दिन लगे। लेकिन, 5 लाख से 10 लाख तक मामले होने में सिर्फ 20 दिन ही लगे।
लॉकडाउन में सरकार की तरफ से हुई गलती
1. लॉकडाउन का सही इस्तेमाल नहीं हुआ, टेस्टिंग पर फोकस नहीं
कोरोनावायरस को फैलने से रोकने के लिए देशभर में लॉकडाउन तो लगा दिया, लेकिन उसका सही इस्तेमाल नहीं हो सका। दूसरे देशों में लॉकडाउन का इस्तेमाल टेस्टिंग करने के लिए किया गया। चीन ने तो वुहान में बाद में 10 दिन का लॉकडाउन इसीलिए लगाया, ताकि वहां की सारी आबादी की टेस्टिंग कर सके। इसके उलट भारत में ऐसा नहीं हुआ। टेस्ट सिर्फ उन्हीं का हुआ, जो खुद से टेस्ट कराने गए या संदिग्ध थे।
2. पता नहीं था प्रवासी मजदूर सड़कों पर निकल जाएंगे
मोदी सरकार ने 25 मार्च से देश में टोटल लॉकडाउन लगा दिया। उससे तीन दिन पहले से ही ट्रेनें भी बंद कर दी थीं। लॉकडाउन में सब कुछ बंद हो गया, तो मजदूरों की कमाई भी बंद हो गई। जब देश में 21 दिन के लिए लॉकडाउन लगा, तो उसके बाद देश के कई हिस्सों से प्रवासी मजदूर अपने राज्य लौटने लगे। इसका नतीजा ये हुआ कि लॉकडाउन लगने के 5 दिन बाद ही 29-30 मार्च को दिल्ली के आनंद विहार बस टर्मिनल में 15 हजार मजदूर इकट्ठे हो गए। बाद में इस भीड़ को प्राइवेट बसों और डीटीसी की बसों से उनके गांव तक पहुंचाया गया।
3. श्रमिक स्पेशल ट्रेनें निकालीं, कोरोना के मामले बढ़े
एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, 1918 में जब देश में स्पैनिश फ्लू फैला था, तब भी इस फ्लू को फैलाने में रेलवे की अहम भूमिका रही थी। 1 मई से मोदी सरकार ने प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनें शुरू कीं। इसका नतीजा ये हुआ कि कई राज्यों में कोरोना के मामले अचानक बढ़ गए। इसका एक उदाहरण गोवा भी है। गोवा 19 अप्रैल को कोविड फ्री घोषित हो गया था। लेकिन, जब ट्रेनें चलनी शुरू हुईं, तो गोवा में मामले बढ़ गए। वहां के स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे ने भी कहा था कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से आने वाले मजदूरों की वजह से राज्य में कोरोना के मामले फिर बढ़ गए।
4. केस बढ़ रहे थे, शराब की दुकानें खोल दीं
देश में जब लॉकडाउन-3 लागू हुआ, तो उसके साथ पहले से ज्यादा रियायतें भी मिलने लगीं। सरकार ने लॉकडाउन-3 में शराब की दुकानें खोलने की इजाजत दे दी। नतीजा ये हुआ कि देशभर में शराब की दुकानों पर भीड़ जमा होने लगी। बढ़ती भीड़ को देखते हुए दिल्ली सरकार ने तो शराब की कीमत ही 70% बढ़ा दी। जबकि, महाराष्ट्र में शराब की होम डिलीवरी होने लगी।
6 तरीके, जिनसे कोरोना को कंट्रोल कर सकते थेः
- हाई-रिस्क जोन में वार्ड लेवल तक टेस्टिंग होती।
- कोरोना से निपटने में केंद्र राज्यों की मदद करती।
- छोटे शहरों और गांवों तक टेस्टिंग लैब बनती।
- एंटीजन टेस्टिंग भी होती, ताकि पता चले कि कोई पहले कोरोना से संक्रमित तो नहीं था।
- प्राइवेट लैब्स में कोरोना टेस्ट की कीमत कम रखी होती, ताकि सब टेस्ट करा सकें।
- पब्लिक प्लेस में मास्क पहनना जरूरी और सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने पर सख्ती होती।