यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध छेड़ने के बाद अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों ने उस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं। चीन शुरू से ही इस जंग में रूस के साथ खड़ा होने की बात कहता रहा है और यूक्रेन पर हमले का विरोध नहीं किया है। उधर, हकीकत ये है कि चीन रूस-यूक्रेन युद्ध और रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों के जरिए अपना भला करने में भी जुटा है।
रूस-यूक्रेन युद्ध को भांपकर चीन पहले ही इससे फायदा लेने की कोशिशों में जुट गया था। युद्ध शुरू होने के बाद भी उसने न केवल रूस, बल्कि यूक्रेन को भी अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया है और दोनों ही देशों को अपना ड्रोन दे रहा है।
चलिए जानते हैं कि आखिर चीन ने कैसे रूस ही नहीं यूक्रेन का भी फायदा उठाया? चीन कैसे रूस और यूक्रेन से खेल रहा है डबल गेम? कैसे रूस से साझेदारी से चीन को हो रहा ज्यादा फायदा?
1. यूक्रेन और रूस दोनों को चीन ने दिए अपने ड्रोन?
एक तरफ चीन यूक्रेन के खिलाफ लड़ाई में रूस का दोस्त होने का दावा करता रहा है, तो वहीं दूसरी ओर अपने फायदे के लिए वह यूक्रेन को रूस से लड़ाई के लिए ड्रोन की सप्लाई भी करता रहा है। रूस से दोस्ती के साथ ही चीन की यूक्रेन से भी डिफेंस डील है। साथ ही यूक्रेन ने चीनी कंपनी पर इसी ड्रोन को रूस को भी बेचने का आरोप लगाया है।
- रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीनी कंपनी DJI के बनाए हुए ड्रोन का इस्तेमाल यूक्रेन ने रूस के खिलाफ लड़ाई में किया है।
- यूक्रेन के उप-प्रधानमंत्री मायखाइलो फेडेरोव के अनुसार, यूक्रेन ने चीनी कंपनी DJI से 2372 क्वाडकॉप्टर और 11 मिलिट्री अनमैंड एरियल व्हीकल ड्रोन करीब 513 अरब रुपए में खरीदे हैं।
- चीन की DJI ने उसके ड्रोन के यूक्रेन युद्ध में इस्तेमाल से इनकार करते हुए कहा कि उसके ड्रोन सेना के इस्तेमाल के लिए नहीं बनाए जाते हैं और वह केवल सिविलियंस ड्रोन बनाता है।
- उधर हाल ही में यूक्रेन ने आरोप लगाया कि चीनी कंपनी DJI के ड्रोन का इस्तेमाल रूसी सेना यूक्रेन के मिसाइल को नेविगेट करने में कर रही है।
- यूक्रेन ने चीन से तुरंत ही रूस के इन ड्रोन के इस्तेमाल पर बैन लगाने की मांग की। हालांकि चीनी कंपनी ने कहा कि अगर रूस के पास ये ड्रोन हैं, तब भी उसके पास उन्हें डिएक्टिव करने की टेक्नीक नहीं है।
2. युद्ध से पहले ही रूस से कर लिया था गेहूं, गैस, कोयला खरीदने का करार
चीन ने 24 फरवरी को यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले ही इसे भांप लिया था। इसलिए फरवरी की शुरुआत में ही रूस के साथ गेहूं के आयात पर लगे प्रतिबंधों को हटाते हुए रूस से ज्यादा गेहूं खरीदने की डील की थी और गैस खरीद को लेकर बड़ा करार किया था।
- इस साल फरवरी की शुरुआत में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन की चीन यात्रा के दौरान ही चीन ने गेहूं, गैस और कोयले से जुड़े करार किए थे।
- ऐसे समय में जब वैश्विक अनाज की कीमत पिछले 10 साल के उच्चतम स्तर पर हैं, तो दुनिया के सबसे बड़े गेहूं उत्पादक देश रूस से बड़ी मात्रा में गेहूं की खरीद से चीन को अपने यहां अनाज सप्लाई सुरक्षित बनाने में मदद मिलेगी।
- पहले चीन ने रूस से आने वाले गेहूं में ड्वॉर्फ बंट फंगस की मौजूदगी की चिंताओं की वजह से रूस से गेहूं आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था।
- चीन ने 2021 में रूस से महज 12,227 मीट्रिक टन गेहूं का ही आयात किया था, ये रूस के इस दौरान दुनिया भर में किए गए 2.6 करोड़ मीट्रिक टन गेहूं के निर्यात का बहुत छोटा सा हिस्सा है।
- साथ ही चीन ने युद्ध से पहले ही रूस के साथ एनर्जी कोऑपरेशन डील के तहत 10 अरब क्यूबिक मीटर गैस खरीदने का भी करार कर लिया था।
- पुतिन की यात्रा के दौरान चीन ने रूस से नई पाइपलाइन के जरिए गैस खरीदने के लिए 117 अरब डॉलर, यानी करीब 8.89 लाख करोड़ रुपए का नया करार किया था।
- इस डील के तहत पाइपलाइन के जरिए रूसी गैस निर्यात में एकाधिकार रखने वाली कंपनी गजप्रोम ने चीन की सबसे बड़ी एनर्जी कंपनी CNPC को 10 अरब क्यूबिक मीटर हर साल देने का करार किया है।
- रूस ने 2021 में चीन को 16.5 अरब क्यूबिक मीटर गैस सप्लाई की थी और उसकी 2025 तक चीन को पाइपलाइन के जरिए 38 अरब क्यूबिक मीटर गैस सप्लाई करने की योजना है।
- साथ ही चीन ने यूक्रेन युद्ध से कुछ हफ्तों पहले रूस से कोयला खरीदने के लिए 20 अरब डॉलर यानी करीब 15200 करोड़ रुपए का करार किया था।
3. रूसी करेंसी रूबल की वैल्यू चीन के युआन की तुलना में गिराने की चाल
रूस-यूक्रेन युद्ध संकट के दौरान चीन की सबसे बड़ी चाल रूसी मुद्रा रूबल की कीमत अपनी करेंसी युआन की तुलना में तेजी से कम करने की रही है।
- चीन ने इसके लिए फॉरेन एक्सचेंज रेट कंट्रोल में ढील दी, जिससे रूस के रूबल की कीमत चीन के युआन की तुलना में तेजी से गिरी। चीन के इस कदम से उसका रूस से होने वाला आयात सस्ता हो गया।
- यूक्रेन पर हमले के बाद पश्चिमी देशों द्वारा इंटरनेशनल पेमेंट सिस्टम SWIFT से कई रूसी बैंकों को बाहर करने के बाद उसकी करेंसी रूबल की कीमत में 40% तक गिरावट आ गई थी।
- पिछले साल अक्टूबर में 1 युआन की कीमत 10.89 रूसी रूबल थी। 24 फरवरी को रूस के यूक्रेन पर हमले के समय 1 चीनी युआन की कीमत 13.43 रूसी रूबल थी।
- चीन के फॉरेन एक्सचेंज रेट में ढील देते ही रूबल की कीमत तेजी से गिरी और 07 मार्च को 1 युआन की कीमत 22.55 रूबल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। फिलहाल ये रेट 12.47 है।
- रूसी सामानों के सस्ते आयात से चीन को अपना आयात बिल कम करने में मदद मिली।
4. चीन दे रहा अपने पेमेंट सिस्टम CUP को बढ़ावा
चीन रूस से न केवल सस्ते आयात को बढ़ावा दे रहा है बल्कि इस बढ़े हुए व्यापार को अपने पेमेंट सिस्टम चाइना यूनियन पे, यानी CUP के जरिए कर रहा है।
- पश्चिमी देशों द्वारा रूस के कई बैंकों को SWIFT से बाहर किए जाने के बाद रूसी बैंकों के कार्ड आधारित पेमेंट के लिए CUP पसंदीदा पेमेंट सिस्टम बनकर उभरा है।
- SWIFT एक सिक्योर मैसेजिंग सिस्टम है, जिसका उपयोग बैंक तेज और सुरक्षित तरीके से सीमा पार पेमेंट में करते हैं, जिससे इंटरनेशनल ट्रेड में आसानी होती है। रूस SWIFT के विकल्प की तलाश में है, ऐसे में चीन उसे अपने CUP जैसे सिस्टम ऑफर कर रहा है।
- चीन इस चाल से CUP की वैश्विक पहुंच बढ़ाना चाहता है, जबकि CUP चीन से पैसों को अवैध तरीके से भेजने के पसंदीदा साधन के रूप में काफी विवादित रहा है।
- CUP दुनिया का सबसे बड़ा कार्ड पेमेंट (डेबिट, क्रेडिट) ऑर्गेनाइजेशन है, जिसने 7 अरब कार्ड जारी किए हैं। CUP मोबाइल और ऑनलाइन पेमेंट भी ऑफर करता है।
- CUP ने दुनिया भर में 2300 संस्थानों से करार किया है, जिससे इससे जारी होने वाले कार्ड्स को 179 देशों में स्वीकार किया जाता है। साथ ही इसने 61 देशों में अपने कार्ड जारी किए हैं।
5. रूस के साथ डिफेंस डील का भी फायदा उठाएगा चीन?
रूस और चीन डिफेंस पार्टनर भी हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि ये साझेदारी रूस से ज्यादा चीन को फायदा पहुंचाएगी।
- रूस से रक्षा करार का फायदा चीन अपनी सेना के आधुनिकीकरण में उठाएगा। चीन तेजी से अपनी सेना का आधुनिकीकरण करना चाहता है।
- डिफेंस एक्सपर्ट्स का मानना है कि रूस से डिफेंस डील में चीन का सबसे बड़ा फायदा रूसी डिफेंस प्रोडक्ट्स की रिवर्स इंजीनियरिंग यानी, रूसी डिफेंस प्रोडक्ट्स की नकल करके वैसा ही प्रोडक्ट तैयार करने के रूप में मिल सकता है।
- जानकारों का कहना है कि चीन रूस की सैन्य क्षमता का इस्तेमाल अपनी जरूरत के हिसाब से अपनी मिलिट्री को और बेहतर करने से नहीं चूकेगा।
- चीन रूस से S-400 एयर डिफेंस सिस्टम और सुखोई जैसे फाइटर प्लेन समेत अन्य हथियारों का आयात करता रहा है।