New Education Policy 2020: नई शिक्षा नीति के कारण ऐसे आएंगे बदलाव, शुरू से अंत तक जानें सब कुछ

New Education Policy 2020: पारंपरिक भारतीय ज्ञान को पाठ्यक्रम में समावेशित करना तथा 64 कलाओं को नीति में स्थान दिया जाना समग्र शिक्षा का आवश्यक अंग बना है.

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बहुत लंबी प्रतीक्षा के बाद आज भारत की सही मायने में राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा भारत सरकार द्वारा की गई. इस हेतु भारत सरकार बधाई की पात्र है. देश के कोने-कोने से ग्राम पंचायतों से लेकर शहर के शिक्षाविदों के विचारों एवं सुझावों का समावेश कर देश को नई दिशा देने वाली, आत्मनिर्भरता के मार्ग को प्रशस्त करने वाली, तथा देश के स्वाभिमान को दृढ़ करने वाली शिक्षा नीति आज भारत की शिक्षा व्यवस्था का अंग बनी है. अतः आज का दिन ऐतिहासिक है.

  • स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश की संस्कृति तथा आवश्यकता के अनुरूप शिक्षा नीति की आवश्यकता सदा से महसूस की गई परंतु यह वर्तमान सरकार की इच्छाशक्ति का ही परिणाम है कि जनभावनाओं को नीति का रूप देकर शिक्षा व्यवस्था को आज गुलामी की जंजीरों से मुक्त करवाने में सफल होने हेतु देश अग्रसर हुआ है. राफेल विमान की गर्जना जहां आज देश की सीमाओं की सुरक्षा को दृढ़ किया है, वहीं राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा ने देश को नई दिशा तथा गति दी है.
  • शिक्षा नीति की भाषा अत्यंत सरल, सारगर्भित तथा स्पष्ट है. एक सामान्य व्यक्ति को भी इसे समझने में कोई कठिनाई नहीं होगी. यह नीति बहुत ही अद्भुत है तथा वास्तव में एक संपूर्ण राष्ट्रीय चेतना की अभिव्यक्ति करती है. भारत का विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठित होना अब केवल भावनात्मक विषय नहीं है, यह एक मुख्य नीति निर्धारक तत्व के रूप में शिक्षा नीति के माध्यम से प्रकट हुआ है. सत्य, धर्म, शांति, प्रेम, अहिंसा, वैज्ञानिक दृष्टि, नागरिक मूल्य, जीवन कौशल तथा सेवा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के निर्धारक तत्व के रूप में स्थापित हुए हैं.
    मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम परिवर्तित करके शिक्षा मंत्रालय करना एक महत्वपूर्ण कदम है. इससे मंत्रालय के नाम को लेकर जनमानस में स्पष्टता रहेगी. मानव संसाधन विकास मंत्रालय नाम के कारण पूर्व में कई प्रकार की भ्रामक स्थितियां बन चुकी हैं.
  • इसकी स्थापना अभी शिक्षा के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होगा. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तो पहले ही अनुपयुक्त घोषित हो चुका है, राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के माध्यम से शिक्षा से जुड़े निर्णयों में शिक्षाविद् अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेंगे.
  • 5+3+3+4 की विद्यालय शिक्षा की संरचना अत्यंत तर्कसंगत तथा भारत की वर्तमान तथा भविष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप है. साथ ही विज्ञान, वाणिज्य, कला, खेल आदि का भेद मिटाकर क्रेडिट पद्धति के माध्यम से मूल्यांकन व्यवस्था लागू करना अत्यंत प्रभावशाली कदम है. इसी के साथ व्यावसायिक तथा कौशल आधारित विषयो को विद्यालयी शिक्षा से ही प्रारंभ कर विद्यार्थी को कम से कम किसी एक कौशल में निपुण बनाने का प्रावधान आत्मनिर्भर भारत के स्वप्न को साकार करने का महत्वपूर्ण माध्यम बनेगा.
  • पांचवी तथा उसके बाद भी मातृभाषा में शिक्षा की व्यवस्था वैज्ञानिक दृष्टि से सीखने के लिए अत्यंत आवश्यक है, इसी के साथ मनोविज्ञान के सिद्धांतों के अनुरूप बहुभाषा में संस्कृत सहित भारतीय भाषाओं के साथ-साथ विदेशी भाषाओं को भी सीखने का प्रावधान भारत की दूरदृष्टि को प्रकट करता है यह राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को भी सुदृढ़ करेगा.

अनुसंधान की दिशा में भी भारत को ठोस कार्य करने की आवश्यकता लंबे समय से अनुभव की जा रही थी. समाज उपयोगी, उद्देश्य पूर्ण, तथा परिणामकारी अनुसंधान हेतु वर्तमान व्यवस्थाएँ औचित्यहीन होती जा रही हैं तथा आवश्यकता के अनुरूप देश का शोध कार्य नहीं हो पा रहा है. राष्ट्रीय अनुसंधान न्यास की स्थापना इस दिशा में एक क्रांतिकारी संकल्पना है. इसमें उच्च गुणवत्ता के शोध एवं अनुसंधान को नई गति मिलेगी.

शिक्षा को समाज पोषित बनाने तथा स्वयंसेवा के माध्यम से भी शिक्षा में योगदान देने के प्रावधानों को शिक्षा नीति में पर्याप्त स्थान तथा संबल मिला है. इसी के साथ शिक्षा के व्यापारी करण को हतोत्साहित करने के पर्याप्त प्रावधान इस शिक्षा नीति में सम्मिलित किए गए हैं, वहीं सेवाभावी सामाजिक संस्थानों को शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने हेतु पर्याप्त प्रोत्साहन इस नीति के माध्यम से दिया गया है.

शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय आवश्यकताओं को देखते हुए वित्तीय सहयोग बढ़ाना अपेक्षित ही था राष्ट्रीय शिक्षा नीति में वित्तीय सहयोग जीडीपी का 6% तक बढ़ाना स्वागत योग्य है परंतु जीडीपी को ही मानक मानना शिक्षा को केवल जीडीपी पर निर्भर कर देगा. अतः अर्थ निर्धारण में जीडीपी के साथ-साथ जीएनपी, एनडीपी एवं जीएनआई पर आधारित सूत्र प्रयुक्त किया जा सकता है. शिक्षण संस्थाओं को भी आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने की दिशा में भविष्य में विचार करना ही पड़ेगा. सरकार के साथ-साथ स्वयं सेवी संस्थाओं तथा समाज द्वारा शिक्षा को मिलने वाले सहयोग का भी गुणात्मक एवं मात्रात्मकता के आधार पर उचित मूल्यांकन एवं अभिस्वीकृति मिलनी चाहिए.

विश्व गुरु की परिकल्पना को मूर्त रूप देने हेतु भारत को शिक्षा के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है. इस दृष्टि से आवश्यक हो जाता है कि संपूर्ण विश्व से छात्र ज्ञान प्राप्ति हेतु भारत को अपना लक्ष्य बनाएं. अतः राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारत को शिक्षा के केंद्र के रूप में स्थापित एवं प्रतिष्ठित बनाने हेतु भी ठोस प्रावधानों के माध्यम से दृढ़ निश्चय प्रदर्शित करती है.

पारंपरिक भारतीय ज्ञान को पाठ्यक्रम में समावेशित करना तथा 64 कलाओं को नीति में स्थान दिया जाना समग्र शिक्षा का आवश्यक अंग बना है. शिक्षकों को नवाचार एवं शिक्षण विधियों एवं तकनीकी के उचित प्रयोग की स्वतंत्रता इस नीति में दी गई है.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति अध्येता केंद्रित अथवा बालक केंद्रित शिक्षा के स्थान पर अध्ययन केंद्र तथा शिक्षक आधारित शिक्षा पर बल दे रही है. यह शिक्षकों के संबल, स्वाभिमान तथा प्रतिष्ठा को बढ़ाने वाली नीति है. शिक्षक तथा विद्यार्थी के भावनात्मक संबंधों को ध्यान में रखते हुए स्थानांतरण की व्यवस्था को भी  हतोत्साहित करने  के कठोर प्रयास नीति में हुए हैं. इसी के साथ शिक्षक प्रशिक्षण भी अधिक प्रभावी तथा गुणात्मक दृष्टि से उत्कृष्ट किए जाने के प्रयास इस नीति में स्पष्ट हैं.

शिक्षा नीति में राज्यों की आवश्यकताओं को भी पर्याप्त स्थान मिला है . व कई प्रावधान ऐसे हुए हैं जिनसे राज्य सरकारों के अधीनस्थ संस्थानों की गुणवत्ता को बढ़ाने हेतु व्यापक सहयोग बढ़ेगा राज्यों में भी अनुसंधान को, क्षेत्रीय भाषाओं को तथा अवसरों को संबल प्राप्त होगा.

निम्नलिखित कई बिन्दु है जो शिक्षा नीति को उत्कृष्ट बनाते हैं:-

  • शिक्षा नीति में मूलभूत साक्षरता और संख्या ज्ञान अपर जोर दिया गया है.
  • गणित, विज्ञान, कला, खेल आदि सभी विषयो को समान रूप से सीखाने पर जोर दिया गया है.
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति मूल्याङ्कन व्यवस्था में व्यापक परिवर्तन की बात कटी है और इसमें स्वयं, शिक्षक और सहपाठी के भी भागीदारी की बात करती है|.
  • सभी ज्ञानों की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने और सीखने के विभिन्न क्षेत्रों के बीच में हानिकारक पदानुक्रमों को खत्म करने औरकला और विज्ञान के बीच, कला और पाठ्येतर गतिविधियों के बीच, व्यावसायिक और शैक्षणिक धाराओं के बीच कोई कठिन अलगाव नहीं होगा.
  • इस प्रकार, यह सभी विषयों – विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, कला, भाषा, खेल, गणित – स्कूल में व्यावसायिक और शैक्षणिक धाराओं के एकीकरण के साथ समान जोर सुनिश्चित करेगा.
  • कला, क्विज़, खेल और व्यावसायिक शिल्प से जुड़े विभिन्न प्रकार के संवर्धन गतिविधियों के लिए पूरे साल बस्ता रहित दिनों के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा.
  • उच्च शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में लैंगिक संतुलन बढ़ाना.
  • उच्च शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए अवसर.
  • लागत और शुल्क को कम करने के प्रावधान.
  • लोक- विद्या (holistic and Multidisciplinary education) अर्थात, भारत में विकसित महत्वपूर्ण व्यावसायिक ज्ञान, व्यावसायिक शिक्षा पाठ्यक्रमों में एकीकरण के माध्यम से छात्रों के लिए सुलभ हो जाएगा.
  • भारतीय भाषाओं में और द्विभाषी रूप से पढ़ाए जाने वाले अधिक डिग्री पाठ्यक्रम विकसितकरना.
  • वंचित शैक्षिक पृष्ठ भूमि से आने वाले छात्रों के लिए सेतु पाठ्यक्रम विकसित करना.
  • उच्च शैक्षणिक संस्थानों (HEI) के छात्रों द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में यात्रा करना, जो न केवल पर्यटन को बढ़ावा देगा, बल्कि भारत के विभिन्न हिस्सों की विविधता, संस्कृति, परंपराओं और ज्ञान की समझ और प्रशंसा का कारण बनेगा.
  • संस्कृत को स्कूल में मजबूत प्रस्ताव के साथ मुख्य धारा में लाया जाएगा– जिसमें तीन-भाषा सूत्र में भाषा के विकल्पों में से एक के साथ-साथ उच्च शिक्षा भी शामिल है. संस्कृत विश्वविद्यालय भी उच्च शिक्षा के बड़े बहु-विषयक संस्थान बनने की ओर अग्रसर होंगे.

इस शिक्षा नीति की विशेषता है कि इसमें सभी स्तरों पर भारत को केंद्र में रखा गया है. भारत की परिस्थितियों के अनुसार नीतियों का सुझाव दिया गया है. वैश्विक स्तर तथा प्रतिस्पर्धा की चर्चा तो है किंतु विश्व में स्थान प्राप्त करने के लिए अंधानुकरण की बात नहीं है. वैश्विक बातों को देश अनुकूल स्वीकार करने की संभावना इस प्रारूप में है.

(लेखक भारतीय शिक्षण मंडल के सह शैक्षिक प्रकोष्ठ प्रमुख हैं)

 

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