मोदी सरकार के लिए मुश्किल खड़ी करने वाले कनाडा के PM ट्रुडो का इस्तीफा, कहा- पछतावा बस एक बात का है…

Justin Trudeau: भारत विरोधी नीतियों के लिए अक्सर चर्चा में रहे कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सोमवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

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Justin Trudeau: भारत विरोधी नीतियों के लिए अक्सर चर्चा में रहे कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सोमवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। वह करीब नौ वर्षों तक कनाडा के प्रधानमंत्री रहे। कनाडा में नौकरियों और अर्थव्यवस्था के नाजुक हालात में पहुंच जाने, अमरीका ने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के अतिरिक्त कर लगाने की घोषणा और भारत के वांछित आतंकियों को समर्थन लेने के मुद्दों पर जस्टिन ट्रूडो अपने लोगों के निशाने पर आ गए थे। पार्टी में बढ़ते आंतरिक असंतोष और लोकप्रियता में कमी आने के कारण उन्हें यह कदम उठाना पड़ा। ट्रूडो ने कहा कि ‘लिबरल पार्टी के नए नेता का चुनाव होने तक वह पद पर बने रहेंगे।’ हालांकि इस बारे स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है।

 

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने 6 जनवरी की शाम इस्तीफा दे दिया। कनाडाई मीडिया में पहले ही दावा कर दिया गया था कि ट्रूडो इस्तीफा दे सकते हैं। माना जा रहा है कि कनाडा के सबसे पॉपुलर नेता रहे जस्टिन ट्रूडो का पॉलिटिकल करियर अब खत्म होने की कगार पर है।

 

जस्टिन ट्रूडो ने इस्तीफा देते हुए क्या कहा और मीडिया रिपोर्ट्स में क्या दावा था?

जवाब: 6 जनवरी की शाम जस्टिन ट्रूडो ने कनाडा के लोगों को संबोधित करते हुए पीएम पद से इस्तीफे का ऐलान किया। ट्रूडो ने कहा,

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मैंने लिबरल पार्टी के अध्यक्ष से नए नेता का चुनाव शुरू करने के लिए कहा है। अगर मुझे घर में लड़ाई लड़नी पड़ेगी तो आने वाले चुनाव में सबसे बेहतर ऑप्शन नहीं बन पाऊंगा।

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उन्होंने कहा है कि जब तक लिबरल पार्टी चुनाव के जरिए उनकी जगह कोई नया नेता नहीं चुन लेती, तब तक वे पार्टी लीडर और कनाडा के पीएम बने रहेंगे।

जस्टिन ट्रूडो पर कई महीनों से उनकी ही पार्टी के सांसद इस्तीफे का दबाव बना रहे थे।
जस्टिन ट्रूडो पर कई महीनों से उनकी ही पार्टी के सांसद इस्तीफे का दबाव बना रहे थे।

दरअसल, कनाडा के अखबार ‘द ग्लोब एंड मेल’ ने 6 जनवरी की सुबह एक रिपोर्ट में दावा किया था कि जस्टिन ट्रूडो पीएम और लिबरल पार्टी के लीडर पद से इस्तीफा दे सकते हैं।

: 9 साल तक पीएम रहने के बाद ट्रूडो को इस्तीफा क्यों देना पड़ा?

जवाब: कनाडा की संसद में लिबरल पार्टी के पास 153 सांसद हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि आधे से ज्यादा सांसद जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे की मांग कर रहे थे। ट्रूडो ने इन 4 बड़ी वजहों से दिया इस्तीफा…

1. 2025 के चुनाव में हार का अंदेशा: 31 दिसंबर 2024 को जारी नैनोस रिसर्च की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रूडो की लिबरल पार्टी, विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी से 26 पॉइंट से पीछे चल रही है। कंजर्वेटिव पार्टी को 46.6% सपोर्ट मिला है। अगर ये बरकरार रहता है तो कंजर्वेटिव पार्टी को 2025 के चुनाव में प्रचंड बहुमत मिल सकता है।

3 जनवरी को आई एंगस रीड इंस्टीट्यूट की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक अगर लिबरल पार्टी पूर्व डिप्टी पीएम क्रिस्टिया फ्रीलैंड को लीडर बनाती है तो कंजर्वेटिव्स को थोड़ी टक्कर दी जा सकती है।

ट्रूडो की सबसे प्रभावशाली और वफादार मंत्री माने जाने वाली क्रिस्टिया ने 16 दिसंबर को इस्तीफा दे दिया था।
ट्रूडो की सबसे प्रभावशाली और वफादार मंत्री माने जाने वाली क्रिस्टिया ने 16 दिसंबर को इस्तीफा दे दिया था।

2. कनाडाई संसद में कमजोर: कनाडा की संसद में सीनेट और हाउस ऑफ कॉमन्स दो सदन हैं। हाउस ऑफ कॉमन्स में 338 सीटें हैं और बहुमत का आंकड़ा 170 है। लिबरल पार्टी के पास 153 सांसद हैं। ट्रूडो इस सदन में खालिस्तान समर्थक कनाडाई सिख जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) के 25 सांसदों के समर्थन के कारण बहुमत में थे। NDP ने सितंबर 2024 में समर्थन वापस ले लिया। गठबंधन टूटने से ट्रूडो सरकार अल्पमत में आ गई थी। 1 अक्टूबर को जब संसद में विश्वास मत साबित करना था तो अलगाववादी ब्लॉक क्यूबेकॉइस के 33 सांसदों ने ट्रूडो को समर्थन दिया और सरकार बच गई थी।

2021 में कनाडाई सिख सांसद जगमीत सिंह की पार्टी ने ट्रूडो सरकार को समर्थन दिया था, लेकिन सितंबर 2024 में उसने समर्थन वापस ले लिया था।
2021 में कनाडाई सिख सांसद जगमीत सिंह की पार्टी ने ट्रूडो सरकार को समर्थन दिया था, लेकिन सितंबर 2024 में उसने समर्थन वापस ले लिया था।

3. करप्शन का आरोप: कनाडा के सरकारी फाउंडेशन सस्टेनेबल डेवलपमेंट टेक्नोलॉजी कनाडा (SDTC) से जुड़े एक घोटाले में जस्टिन ट्रूडो का भी नाम आ रहा है। हालांकि SDTC अब बंद हो चुका है। पिछले साल ऑडिटर जनरल ने इससे जुड़े अरबों डॉलर के ‘ग्रीन स्लश फंड’ को बंद कर दिया था। आरोप लगा कि इससे जुड़े लाखों डॉलर ऐसे लोगों और प्रोजेक्ट्स को दिए गए जो अयोग्य थे।

4. अमेरिका और भारत के साथ बिगड़ते रिश्तों का असर: अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कनाडा पर 25% टैरिफ लगाने की बात कही है। इसके बाद नवंबर 2024 में फ्लोरिडा में ट्रूडो ने ट्रम्प से मुलाकात की। इस दौरान ट्रम्प ने कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने का मजाक किया। ट्रम्प ने ऐसी बात सोशल मीडिया ट्रूथ पर भी लिखी और ट्रूडो को ‘कनाडा का गवर्नर’ बताया।

ट्रूडो पर आरोप लगा कि उन्होंने खालिस्तानी वोट बैंक के पॉलिटिकल सपोर्ट के लिए भारत के खिलाफ आरोपों का फायदा उठाया। ट्रूडो ने ऐसा इंटरनल पॉलिटिकल क्राइसिस और करप्शन के आरोपों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए किया था। इसके अलावा बेवजह बयानबाजी से ट्रूडो के भारत से रिश्ते और ज्यादा खराब हुए। ट्रम्प के बयानों और भारत के साथ बिगड़ते रिश्तों से कनाडा में ट्रूडो के खिलाफ माहौल बना।

नवंबर में कनाडाई PM ट्रूडो ने डोनाल्ड ट्रम्प के साथ डिनर किया था। इसकी तस्वीर ट्रूडो ने सोशल मीडिया पर शेयर की थी।
नवंबर में कनाडाई PM ट्रूडो ने डोनाल्ड ट्रम्प के साथ डिनर किया था। इसकी तस्वीर ट्रूडो ने सोशल मीडिया पर शेयर की थी।

सवाल-3: ट्रूडो के इस्तीफे के बाद अब क्या होगा?

जवाब: लिबरल पार्टी की ओर से एक अंतरिम लीडर नियुक्त किया जा सकता है, जिसके लिए चुनाव होगा। अक्टूबर 2025 में कनाडा में संसदीय चुनाव होना है। ऐसे में लिबरल्स जल्द ही लीडर चुनेंगे। संभावना है कि पार्टी बिना चुनाव के ही किसी की नियुक्ति कर दे। अगर ऐसा होता है तो ये पहली बार होगा।

सवाल-4: ट्रूडो के बाद कौन होगा कनाडा का पीएम?

जवाब: सेंटर फॉर स्ट्रैटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज यानी CSIS के मुताबिक, लिबरल्स किसी ऐसे व्यक्ति को चुन सकते हैं, जो संसद का मौजूदा सदस्य नहीं है। अगर ऐसा होता है तो नए पीएम को संसद का सदस्य बनाने के लिए एक सेफ सीट के सांसद का इस्तीफा कराकर उसे वहां से लड़वाया जाएगा। समस्या ये है कि पार्टी के पास बहुत कम सुरक्षित सीटें बची हैं।

एक समीकरण ये भी है कि पार्टी हार वाला रिस्क लिए बिना मौजूदा किसी सांसद को पीएम बना सकती है।

CSIS का अनुमान है कि बैंकर रहे मार्क कार्नी, डिप्टी पीएम रहीं क्रिस्टिया फ्रीलैंड, विदेश मंत्री मेलानी जोली और ट्रूडो के लंबे समय से दोस्त रहे और वित्त मंत्री डोमिनिक लेब्लांक पीएम बन सकते हैं।

 

सवाल-5: ट्रूडो के इस्तीफे के बाद क्या कनाडा में भारत विरोधी राजनीति और खालिस्तानी आंदोलन कमजोर होगा?

जवाब: JNU के रिटायर्ड प्रोफेसर और विदेश मामलों के जानकार डॉ. ए के पाशा कहते हैं, ट्रूडो के इस्तीफे के बाद कनाडा में अगली सरकार कंजर्वेटिव्स की बनने जा रही है। इससे कनाडा में भारत विरोधी राजनीति और खालिस्तानी आंदोलन में कमी आएगी, लेकिन ये पूरी तरह से खत्म नहीं होगा। दरअसल, कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों का एक बहुत बड़ा वोट बैंक हैं, जिसके चलते कोई भी पार्टी ज्यादा सख्ती से खालिस्तान समर्थकों पर काबू नहीं पा सकती है।

विदेश मामलों के जानकार और एमिटी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डॉ. श्रीश कुमार पाठक बताते हैं, ‘खालिस्तानी ट्रूडो के लिए महज एक मुद्दा हैं, जिस पर वे कनाडा की स्वतंत्रता और सुरक्षा की दुहाई देकर अपने लिए एक गुट का सपोर्ट हासिल करते थे। अब उनके विपक्षी कंजर्वेटिव्स की चुनाव में जीत लगभग तय मानी जा रही है, निश्चित ही नई सरकार खालिस्तान समर्थकों को अपनी ऑप्टिक्स से दूर रखना चाहेगी और भारत से अपने संबंधों को सुधारना चाहेगी।’

 

ट्रूडो पर आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने अपने राजनीतिक फायदे के लिए खालिस्तानियों को सपोर्ट किया। ये तस्वीर 28 अप्रैल 2024 की है, जब वे टोरंटो में खालसा दिवस समारोह में पहुंचे थे।

सवाल-7: क्या ट्रूडो का पॉलिटिकल करियर खत्म हो जाएगा?

जवाब: अपनी ही पार्टी की नाराजगी और भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद जस्टिन ट्रूडो का पॉलिटिकल करियर ढलान पर है।

20 दिसंबर को सर्वे एजेंसी इप्सोस ने एक सर्वे रिपोर्ट जारी की थी। इसके मुताबिक, ट्रूडो और उनकी लिबरल पार्टी की लोकप्रियता में काफी गिरावट आई है। कनाडा में केवल 14% लोगों ने ही ट्रूडो को अगला प्रधानमंत्री चुनने की इच्छा जताई थी। यहां तक कि उनकी लिबरल पार्टी की पॉपुलैरिटी भी 20% पर आ गई है, जो विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी से 25% कम है।

एंगस रीड इंस्टीट्यूट के मुताबिक, दिसंबर 2015 में ट्रूडो की अप्रूवल रेटिंग 63% थी, जो दिसंबर 2024 में घटकर 22% हो गई है। वहीं उन्हें नापसंद करने वालों की संख्या 74% तक पहुंच गई है।

लेकिन डॉ. श्रीश कुमार पाठक मानते हैं कि ट्रूडो ने अपनी राजनीति को बचाने के लिए खुद ही इस्तीफा दे दिया है। वे कहते हैं,

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ट्रूडो एक पॉलिटिकल फैमिली से हैं, परिवार की राजनीतिक अस्मिता को बचाने और नेशनल पॉलिटिक्स में पकड़ बनाए रखने के लिए उन्होंने खुद इस्तीफा दे दिया। अगर कॉकस उन्हें हटाता तो उनकी पॉलिटिक्स पर इसका खासा असर पड़ता।

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सवाल-8: अगर चुनाव में सत्ता परिवर्तन हुआ तो क्या भारत के साथ कनाडा के रिश्ते सुधरेंगे?

जवाब: CSIS के मुताबिक, अक्टूबर 2025 में होने वाले चुनाव में कंजर्वेटिव्स की सरकार बनने जा रही है, जिसमें वो आसानी से 218 सीटें तक जीत सकते हैं, जो बहुमत से कहीं ज्यादा है। कंजर्वेटिव पार्टी हाउस ऑफ कॉमन्स में लीडर ऑफ अपोजिशन पियरे पोलीवरे को अपना चेहरा बनाएगी और उनका पीएम बनना तय है।

पियरे ने कई बार भारत का सपोर्ट किया है। उन्होंने खालिस्तानी आतंकी निज्जर की हत्या को लेकर भारत पर लगाए गए आरोपों का भी खंडन किया था। पियरे ने कहा था कि भारत को लेकर ट्रूडो झूठ बोल रहे हैं।

सितंबर 2023 में पियरे पोलीवरे ने सोशल मीडिया ‘X’ पर पोस्ट लिखा था कि हिंदुओं ने कनाडा के हर हिस्से में अमूल्य योगदान दिया है। कनाडा में कोई भी व्यक्ति बिना किसी डर के रह सकता है।
सितंबर 2023 में पियरे पोलीवरे ने सोशल मीडिया ‘X’ पर पोस्ट लिखा था कि हिंदुओं ने कनाडा के हर हिस्से में अमूल्य योगदान दिया है। कनाडा में कोई भी व्यक्ति बिना किसी डर के रह सकता है।

डॉ. ए के पाशा बताते हैं, भारत में भाजपा और कनाडा में कंजर्वेटिव पार्टी राइट विंग सपोर्टर पार्टी हैं। कनाडा में कंजर्वेटिव पार्टी की सरकार बनने के बाद भारत से संबंध बेहतर होने की संभावना है। ट्रूडो ने वोट बैंक और घटती लोकप्रियता के चलते बन रहे प्रेशर को कम करने के लिए भारत के खिलाफ अभियान चलाया था, जिससे उनकी नाकामियां छिप सकें, लेकिन अभी कंजर्वेटिव पार्टी को खालिस्तान समर्थकों के वोट बैंक की बहुत ज्यादा जरूरत नहीं है, जिसके चलते वो भारत से रिश्ते बेहतर करने का प्रयास करेगी।

भारत विरोध के बाद अपने देश में ही घिरे

पिछले साल ट्रूडो ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत की संलिप्तता का आरोप लगाया था। इन आरोपों के बाद दोनों देशों में तनाव बढ़ गया। निज्जर को कनाडा में एक गुरुद्वारे के बाहर गोली मार दी गई थी। भारत ने इन आरोपों को निराधार बताया था, क्योंकि कनाडा कोई सबूत भी नहीं दे पाया था। इसके बाद भारत ने कनाडा के छह राजनयिकों को निष्कासित कर दिया और ओटावा में अपने राजदूत को वापस बुला लिया। इसके बाद ट्रूडो इस मुद्दे पर खुद अपने देश में ही घिर गए थे।

नया नेता का चुनाव देखकर खुशी होगी

“कनाडा की लिबरल पार्टी हमारे महान देश और लोकतंत्र के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण संस्था है। एक नया प्रधानमंत्री और लिबरल पार्टी का नेता देश के मूल्यों और आदर्शों को अगले चुनाव में आगे बढ़ाएगा। मुझे अगले कुछ महीनों में इस प्रक्रिया को होते देख कर खुशी होगी।”
-जस्टिन ट्रूडो, इस्तीफा देने के बाद

पार्टी में नए नेता की तलाश शुरूः

ट्रूडो 2015 से कनाडा के प्रधानमंत्री थे और उनके इस्तीफे के बाद लिबरल पार्टी में नए नेता की तलाश शुरू हो गई है। ट्रूडो के इस्तीफे से कनाडा में इसी साल चुनाव की संभावना भी बढ़ गई है। इसके पहले ट्रूडो ने इस्तीफा देने से इंकार कर दिया था, लेकिन पार्टी ने उन पर इस्तीफा देने का दबाव बनाया था और चेतावनी दी थी कि अगर वह इस्तीफा नहीं देंगे तो उन्हें पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।

आगे क्याः
अंतरिम नेता का चुनाव संभव

ट्रूडो के इस्तीफे के बाद लिबरल पार्टी अब प्रधानमंत्री के पद पर कार्यभार संभालने के लिए एक अंतरिम नेता का चयन करेगी। इसके साथ ही पार्टी एक विशेष नेतृत्व सम्मेलन भी आयोजित करेगी, लेकिन यह प्रक्रिया आमतौर पर काफी समय लेती है। यदि चुनाव इससे पहले होते हैं, तो पार्टी को ऐसे प्रधानमंत्री के अधीन काम करना पड़ेगा, जिन्हें पार्टी सदस्य नहीं चुनेंगे। यह कनाडा के इतिहास में पहली बार होगा।

सर्वे में पिछड़ने पर बढ गया था इस्तीफे का दवाब

-ट्रूडो के सबसे करीबी कैबिनेट सहयोगियों में से एक वित्त मंत्री और कनाडा की उप प्रधानमंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड बीते दिसंबर में उनके खिलाफ हो गई थीं। दोनों के बीच अमरीका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के संभावित टैक्स लगाने की घोषणा पर मतभेद सामने आने के बाद टकराव शुरू हो गया था।

-क्रिस्टिया से मतभेद के बाद ट्रूडो ने उनकी राजनीतिक ताकत कम करने की कोशिश की। इसके बाद क्रिस्टिया ने इस्तीफा दे दिया। इसे ट्रूडो के लिए एक झटका माना गया। कहा गया कि ट्रूडो अल्पमत की सरकार चला रहे हैं। क्रिस्टिया ने उनपर राजनीतिक नौटंकी करने का आरोप लगाया था।
-हालांकि ट्रूडो के इस्तीफे का सबसे बड़ी वजह सर्वेक्षणों में उनका लगातार पिछड़ते जाना है। 31 दिसंबर को प्रकाशित एक सर्वे में हिस्सा लेने वाले 50 फीसदी से ज़्यादा लोग कंजर्वेटिव पार्टी के साथ दिखे और प्रधानमंत्री के लिए पियर पॉलिवेयर को पहली पसंद बताया। सिर्फ 17.4 फीसदी ने ही ट्रूडो को पसंद किया।
-सर्वे के मुताबिक, कनाडा की कंजर्वेटिव पार्टी ताजा सर्वे में लिबरल से 26 अंकों से आगे चल रही है जो कि अब तक कि सबसे बड़ी बढ़त है। यह ट्रूडो के पद छोड़ने की मांग के साथ हुआ है। नौकरियों और अर्थव्यवस्था पर चिंता भी चार साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है।
-हाल ही में हुए इप्सोस पोल में भी ट्रूडो की लोकप्रियता में गिरावट देखी गई है। 73 फीसदी लोग मान रहे थे कि ट्रूडो को इस्तीफा देना चाहिए और लिबरल को नया नेता चुनना चाहिए। सिर्फ 27 फीसदी लोग ट्रूडो के साथ दिखे। एक अन्य सर्वे में लिबरल पार्टी का समर्थन ऐतिहासिक रूप मात्र 16 फीसदी रह गया था।
-सितंबर 2024 में कनाडा में हुए उपचुनाव में टोरंटो की सीट पर विपक्षी पार्टी की जीत हुई। मॉन्ट्रियाल, जो लिबरल का मजबूत गढ़ माना जाता है, वहां भी उनकी हार लिए बड़ा झटका था।
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