कलकत्ता यूनिवर्सिटी की अनोखी पहल:घर बैठे किताब खोलकर फाइनल ईयर का एग्जाम दे सकेंगे स्टूडेंट, वॉट्सएप और मेल के जरिए भेजे जाएंगे सवाल, 24 घंटे में देना होगा जवाब

दूर-दराज इलाकों में रहने वाले ऐसे छात्र, जिनके पास बिजली और इंटरनेट की दिक्कत है, वे कॉलेज आकर 24 घंटे के भीतर कॉपी जमा कर सकते हैं कलकत्ता यूनिवर्सिटी के तहत करीब डेढ़ सौ कालेज हैं, जिनके 30 हजार से ज्यादा छात्र फाइनल ईयर की परीक्षा देंगे

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सुप्रीम कोर्ट और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के निर्देश के बाद कलकत्ता यूनिवर्सिटी ने ग्रेजुएशन और पोस्ट-ग्रेजुएशन के फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स के लिए नई पहल की है। इसके तहत स्टूडेंट्स को अब परीक्षा के लिए कॉलेज नहीं जाना होगा, वे घर बैठे ही परीक्षा दे सकेंगे। संबंधित कालेजों की ओर से स्टूडेंट्स को वॉट्सऐप या मेल के जरिए प्रश्नपत्र भेजे जाएंगे। स्टूडेंट्स के पास घर बैठे किताब खोलकर उन सवालों का जवाब देने के लिए 24 घंटे का वक्त होगा।

स्टूडेंट मेल से या वॉट्सऐप के जरिए अपने जवाब भेज सकते हैं। इसके साथ ही दूर-दराज के इलाकों में जहां इंटरनेट, बिजली या कंप्यूटर की सुविधा नहीं है, वहां के स्टूडेंट अपनी कापी लिखकर कॉलेज में जाकर जमा कर सकते हैं। लेकिन, इसके लिए भी 24 घंटे का ही वक्त होगा। वह चाहे तो अपनी कॉपी को स्कैन कर उसे वॉट्सऐप से भी भेज सकते हैं। यही नहीं, स्टूडेंट्स की सहूलियत के लिए ऐसा पहली बार होगा जब उसी कॉलेज के शिक्षक ही अपने स्टूडेंट्स की कॉपियों की जांच करेंगे।

कलकत्ता विश्वविद्यालय ने फाइनल ईयर के स्टूडेंट के लिए घर बैठे एग्जाम देने का फॉर्मूला निकाला है। करीब 30 हजार स्टूडेंट्स फाइनल ईयर का एग्जाम देंगे।
कलकत्ता विश्वविद्यालय ने फाइनल ईयर के स्टूडेंट के लिए घर बैठे एग्जाम देने का फॉर्मूला निकाला है। करीब 30 हजार स्टूडेंट्स फाइनल ईयर का एग्जाम देंगे।

हालांकि, पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार कोरोना का हवाला देकर इन परीक्षाओं के आयोजन के पक्ष में नहीं थी। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद परीक्षा करवाना मजबूरी हो गया। जिसके बाद अब यह तरीका अपनाया जा रहा है। सरकार ने इन परीक्षाओं को 1 अक्टूबर से 18 अक्टूबर तक आयोजित कराने और 31 अक्टूबर तक रिजल्ट जारी करने का फैसला किया है। शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी और राज्य के तमाम विश्वविद्यालयों के वाइस-चांसलरों की बैठक में यह फैसला लिया गया है।

स्टूडेंट्स को एग्जाम देने के लिए कॉलेज नहीं आना होगा। घर बैठे वो परीक्षा दे सकेंगे, उन्हें मेल पर या वाट्सऐप पर भेजे जाएंगे प्रश्न।
स्टूडेंट्स को एग्जाम देने के लिए कॉलेज नहीं आना होगा। घर बैठे वो परीक्षा दे सकेंगे, उन्हें मेल पर या वाट्सऐप पर भेजे जाएंगे प्रश्न।

कलकत्ता यूनिवर्सिटी की वाइस-चांसलर सोनाली चक्रवर्ती बनर्जी कहती हैं, “कोरोना के मौजूदा दौर में स्टूडेंट्स के लिए परीक्षा केंद्रों तक पहुंचना मुश्किल और संक्रमण के लिहाज से खतरनाक है। इसके अलावा दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में बिजली और इंटरनेट की समस्या है और साथ ही सबके पास लैपटॉप या कंप्यूटर भी नहीं हैं। इन तमाम पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ही यह फैसला लिया गया है।”

कलकत्ता यूनिवर्सिटी के तहत करीब डेढ़ सौ कालेज हैं। इनमें तीस हजार से ज्यादा स्टूडेंट फाइनल ईयर में हैं। उन तमाम कालेजों में इसी तरीके से परीक्षा होगी। वाइस-चांसलर का कहना है, “यह ओपन बुक परीक्षा होगी यानी स्टूडेंट किताब देख कर सवालों के जवाब लिख सकते हैं। वे मेल से भी इसका उत्तर भेज सकते हैं और कागज पर लिख कर भी।

कलकत्ता विश्वविद्यालय की कुलपति सोनाली चक्रवर्ती ने बताया कि यह ओपन बुक परीक्षा होगी यानी स्टूडेंट किताब देख कर सवालों के जवाब लिख सकते हैं। स्टूडेंट मेल से भी इसका उत्तर भेज सकते हैं और कागज पर लिख कर भी।
कलकत्ता विश्वविद्यालय की कुलपति सोनाली चक्रवर्ती ने बताया कि यह ओपन बुक परीक्षा होगी यानी स्टूडेंट किताब देख कर सवालों के जवाब लिख सकते हैं। स्टूडेंट मेल से भी इसका उत्तर भेज सकते हैं और कागज पर लिख कर भी।

हालांकि, शिक्षकों के एक वर्ग का कहना है कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होगी। कलकत्ता विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के महासचिव एस.चौधरी कहते हैं, “मौजूदा हालात में केंद्र और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए परीक्षा आयोजित करना अनिवार्य है। लेकिन, ओपन बुक तरीके से किसी स्टूडेंट के बारे में सही आकलन करना मुश्किल है। इसके अलावा स्टूडेंट्स की कॉपियां उसी कॉलेज के शिक्षक ही देखेंगे। इससे मूल्यांकन प्रभावित होगा।

दूसरी ओर, सरकार का कहना है कि वाइस-चांसलरों के साथ बैठक में परीक्षा के आयोजन के तरीके का फैसला संबंधित विश्वविद्यालयों पर ही छोड़ा गया था। शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी बताते हैं, “महामारी के मौजूदा दौर में एक ओर संक्रमण का खतरा है और दूसरी ओर परिवहन के साधन भी ज्यादा नहीं हैं। ऐसे में स्टूडेंट्स को परीक्षा केंद्रों तक पहुंचने और वहां रहने-खाने में भारी दिक्कत होगी। इसके अलावा पूरी परीक्षा ऑनलाइन करने की स्थिति में ग्रामीण इलाके के स्टूडेंट्स के लिए मुसीबत पैदा हो जाती। इन तमाम पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ही इस तरीके को चुना गया है।” उनका दावा है कि इससे शिक्षा या स्टूडेंट्स की गुणवत्ता पर कोई असर नहीं होगा।

शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी का कहना है कि कोरोना संक्रमण और स्टूडेंट्स की परेशानियों को देखकर यह निर्णय लिया गया है। इससे एजुकेशन की क्वालिटी पर असर नहीं होगा।
शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी का कहना है कि कोरोना संक्रमण और स्टूडेंट्स की परेशानियों को देखकर यह निर्णय लिया गया है। इससे एजुकेशन की क्वालिटी पर असर नहीं होगा।

उधर, विश्वविद्यालय के फैसले से स्टूडेंट्स में खुशी है, लेकिन खुद जाकर कॉलेज में कॉपी जमा करने वाली बात से उन्हें आपत्ति है। उत्तर 24-परगना जिले के बांग्लादेश सीमा से सटे बनगांव इलाके में रहने वाले विनय कुमार मंडल कहते हैं, “हमारे इलाके में बिजली और इंटरनेट की दिक्कत है। ऐसे में कॉपी जमा करने के लिए यहां से तीन-चार घंटे का सफर कर कोलकाता जाना बहुत मुश्किल है। अभी न तो लोकल ट्रेनें चल रही हैं और न ही कोई बस। हर परीक्षा के बाद टैक्सी किराए पर लेकर कोलकाता जाना-आना बेहद खर्चीला है। ऊपर से हर परीक्षा के 24 घंटे के भीतर ऐसा करना होगा। इससे बेहतर होता कि ऑफलाइन परीक्षा के लिए कालेज में ही बुला लिया जाता।

लेकिन कालेजों के आस-पास रहने वाले स्टूडेंट्स को इस तरीके से कोई परेशानी नहीं है। इसकी वजह यह है कि शहरों में बिजली या इंटरनेट की कोई खास समस्या नहीं है। कोलकाता के एक कालेज में एम.एम.अंतिम वर्ष के नयन पाल बताते हैं, “हम घर बैठे परीक्षा दे सकते हैं। इससे संक्रमण का खतरा नहीं रहेगा।

1 अक्टूबर से 18 अक्टूबर तक परीक्षा आयोजित होगी। 31 अक्टूबर तक रिजल्ट घोषित किए जाएंगे।
1 अक्टूबर से 18 अक्टूबर तक परीक्षा आयोजित होगी। 31 अक्टूबर तक रिजल्ट घोषित किए जाएंगे।

शिक्षाविदों का कहना है कि कलकत्ता विश्वविद्यालय का तरीका सबके लिए सही है। कोलकाता के एक कालेज में भौतिक विज्ञान पढ़ाने वाले डा. सोमनाथ गुहा कहते हैं, “सामान्य तरीके से होने वाली परीक्षाओं के मुकाबले इसमें काफी अंतर होगा। स्टूडेंट किताब खोल कर परीक्षा देने की वजह से गंभीरता से तैयारी नहीं करेंगे, लेकिन कोरोना की वजह से अब हालात भी तो सामान्य नहीं हैं। ऐसे में जैसे भी हो इन परीक्षाओं का आयोजन कराना सरकार और विश्वविद्यालयों की जिम्मेदारी है। इसे खानापूर्ति कह सकते हैं। हाल में हुए एक सर्वे रिपोर्ट में बताया गया था कि पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों में महज 20 फीसदी घरों में ही कंप्यूटर औऱ इंटरनेट की सुविधा है।

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