लॉकडाउन में दी जाने वाली सैलरी CSR के दायरे में नहीं, कॉरपोरेट मंत्रालय ने स्पष्ट किया
कॉरपोरेट मामलों (Ministry of Corporate Affairs) के मंत्रालय ने यह साफ किया कि अगर कोई कंपनी लॉकडाउन में अपने कर्मचारियों को सैलरी देती है तो इसपर होने वाले खर्च को सीएसआ नहीं माना जायेगा.
नई दिल्ली. किसी भी कंपनी द्वारा लॉकडाउन के समय में दी जाने वाले सैलरी को CSR खर्च के तौर पर नहीं माना जायेगा. कंपनियों को अपने प्रॉफिट का 2 फीसदी हिस्सा कॉरपोरेट सोशल रिस्पन्सिबिलिटी (CSR) के तौर पर खर्च करना होता है. हालांकि, अगर कोई कंपनी अपने कर्मचारियों को कोरोना वायरस महामारी (Coronavirus Pandemic) के इस दौर में अनुग्रह के तौर कोई पेमेंट करती है तो यह खर्च CSR के दायरे में आयेगा.
कॉरपोरेट मंत्रालय ने जारी किया स्पष्टीकरण
कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (Ministry of Corporate Affairs) ने बीते शुक्रवार को इस बारे में स्पष्टीकरण जारी किया है. मंत्रालय ने कहा कि कर्मचारियों को सामान्य तौर पर दी जाने वाली रकम को CSR के तौर पर नहीं माना जायेगा. इसी प्रकार अगर कोई कंपनी लॉकडाउन में भी अपने कर्मचारियों को पेमेंट कर रही है तो इसे भी सामान्य परिस्थिति माना जायेगा.
- हालांकि, मंत्रालय ने यह भी कहा कि अगर कोई कंपनी अपने कर्मचारियों को सैलरी के अलावा कोरोना वायरस महमारी को देखते हुए कोई अनुग्रह भुगतान (Ex-gratia Payment) करती है तो इस तरह के पेमेंट को CSR खर्च माना जायेगा. इसके लिए कंपनी बोर्ड की सहमति होनी जरूरी है.
- क्या है CSR को लेकर कानून?
अगर किसी कंपनी का नेटवर्थ 500 करोड़ रुपये या रेवेन्यू 1,000 करोड़ रुपये या नेट मुनाफा 5 करोड़ रुपये से अधिक है तो उन्हें कम से कम 2 फीसदी रकम CSR के तौर पर खर्च करनी होगी. अगर कोई कंपनी इसका अनुपालन करने में विफल रहती है तो उन्हें अपने वित्तीय स्टेटमेंट में इस बारे में जानकारी देनी होगी. - मंत्रालय ने यह भी कि किसी भी आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के लिए गये योगदान को भी CSR खर्च के तौर पर दर्शाया जा सकता है. लेकिन, मुख्यमंत्री राहत कोष या राज्य राहत कोष में योगदान की जाने वाले रकम इस दायरे में नहीं आएगी.
दोस्तों सी एस आर का सीधा-सीधा मतलब यही होता है प्रत्येक प्राइवेट कंपनी की भी अपनी सामाजिक जिम्मेदारी होती है और उस सामाजिक जिम्मेदारी के तहत कोई भी प्राइवेट कंपनी जिसका सालाना नेटवर्थ 500 करोड़ों रुपए या उसका सालाना इनकम 1000 करोड़ रुपए या उनका वार्षिक प्रॉफिट 5 करोड़ का हो तो उनको सीएसआर पर खर्च करना जरूरी होता है। यह जो खर्च होता है उनके 3 साल के एवरेज प्रॉफिट का कम से कम दो प्रतिशत तो होना ही चाहिए।
दोस्तों हम जैसा कि जानते हैं कोई भी कंपनी अगर किसी भी प्रोडक्ट का निर्माण करती है तो उस प्रॉडक्ट को निर्माण करने के लिए हमारे नेचुरल साधनों का उपयोग करें बिना किसी भी प्रोडक्ट का निर्माण नहीं कर सकती है बड़े बड़े कारख़ाना से धुआं निकलता है जो वातावरण को में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को बढ़ा देता है उन कारखानो में से जो गंदे पानी का कचरा निकलता है नदियों को गंदा करता है। इसके द्वारा हमारे मानव समाज को अप्रत्यक्ष रूप से हानि पहुंचता है सरकार ने कंपनियों को सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए नियम बनाया है क्योंकि अगर आप हमारे वातावरण को नुकसान पहुंचाएंगे तो उसकी भरपाई भी आप ही को करना होगा। क्योंकि इस काम के लिए सरकार सीधे-सीधे कोई टैक्स नहीं लेती है लेकिन सरकार उन कंपनियों को कहती है यह आपका उत्तरदायित्व है कि आप अपने पैसे का कुछ भाग मानव कल्याण में खर्च करें जिसे हम सीएसआर यानि कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी कहते हैं
इंडिया में सीएसआर का कानून 1 अप्रैल 2014 से पूरी तरह से लागू हो गया है। यह कानून सिर्फ भारतीय कंपनियों पर ही लागू नहीं होता है बल्कि वह सभी विदेशी कंपनियों के पर लागू होता है जो भारत में कार्य करते हैं।
सीएसआर में निम्नलिखित रुप की गतिविधियां की जाती है:
- सार्वजनिक जगहों और स्कूलों में शौचालय का निर्माण करना
- भारत के शहरों में जो भी झुग्गी झोपड़ी है उनका डेवलपमेंट करना
- प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय राहत कोष में दान करना
- भारत में स्थित जो भी हमारे ऐतिहासिक विरासत उनका संरक्षण करना
- पर्यावरण को निश्चित रूप से बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक जगहों पर वृक्ष को लगाना
- भारत को शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ावा देने के लिए और स्कूल और कॉलेज खोलना
- भारत में छोटे छोटे उद्योगों को बढ़ावा देना ताकि बेरोजगारी और गरीबी खत्म हो जाए।
एक आंकड़े के अनुसार 2015-16 में सीएसआर गतिविधियों पर 9822 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे।
भारत की 10 सबसे बड़ी कंपनियां जो सबसे ज्यादा सीएसआर में अपने पैसे खर्च करती हैं
- विप्रो
- ऑयल इंडिया
- टाटा स्टील
- एनएमडीसी
- आईटीसी
- टीसीएसएस
- इंफोसिस
- ओएनजीसी
- रिलायंस इंडस्ट्रीज
भारत में सबसे ज्यादा सीएसआर में 3117 करोड़ रुपए खर्च किए गए स्वास्थ्य और चिकित्सा के क्षेत्र में दूसरे नंबर पर 3073 करोड़ रुपए शिक्षा के क्षेत्र में खर्च किए गए । 1051 करोड़ ग्रामीण विकास में खर्च किए गए। पर्यावरण पर 923 करोड़ और स्वच्छ भारत कोष पर 355 करोड़ खर्च किए गए।