सवाल: जीडीपी में इस वित्त वर्ष के दौरान संभावित गिरावट के देश, उद्योग धंधों, नौकरीपेशा लोगों और छोटे कारोबारियों के लिए इसके क्या मायने हैं?
सवाल: जुलाई-अगस्त के आंकड़े अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने का इशारा करते हैं. बिजली उपभोग बढ़ा है. इस लिहाज से इस वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था की स्थिति कैसी रहेगी?
सवाल: जीडीपी में बड़ी गिरावट की वजह लॉकडाउन को बताया जा रहा है. क्या लॉकडाउन की रणनीति सही नहीं थी?
जवाब: सरकार ने 25 मार्च 2020 को लॉकडाउन लागू कर दिया. लोगों को घरों में बंद कर दिया और अर्थव्यवस्था पूरी तरह ठप हो गई. यह रणनीति सही नहीं थी. इससे आर्थिक नुकसान ज्यादा हुआ है. लॉकडाउन से कोरोना वायरस का प्रसार धीमा पड़ा, लेकिन अर्थव्यवस्था को कहीं ज्यादा नुकसान हुआ. अर्थव्यवस्था को नजरअंदाज किए बिना रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए काम करना चाहिए ताकि वायरस के प्रसार को रोका जा सके.
सवाल : क्या डिजिटल भुगतान बढ़ने के बावजूद अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी का असर है?
जवाब: नोटबंदी का अर्थव्यवस्था पर अस्थायी असर रहा. अर्थव्यवस्था में असंगठित, अनौपचारिक गतिविधियों का बड़ा हिस्सा था. इसमें ज्यादातर भुगतान नकद में होता रहा है. करीब 25 से 30 फीसदी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी का भारी असर पड़ा, लेकिन इसका एक फायदा भी हुआ कि असंगठित क्षेत्र का काफी कारोबार संगठित क्षेत्र में होने लगा. उनमें लेनदेन औपचारिक प्रणाली में तब्दील हुआ. इस प्रकार नोटबंदी का असर अस्थायी ही रहा है.
सवाल: सरकार को अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार लाने के लिए क्या कदम उठाने चाहिए?
जवाब: लॉकडाउन और कारोबाद बंद होने से सूक्ष्म, लघु उद्योगों को बड़ा झटका लगा है. देश में करीब 7.5 करोड़ सूक्ष्म, लघु, मझोले उद्यम (MSMEs) हैं. सरकार को उनकी मदद करनी चाहिए. आत्मनिर्भर भारत के तहत पेश की गईं योजनाओं का लाभ 40-45 लाख लोगों को ही मिल रहा है. एमएसएमई में छूट गए बड़े वर्ग को सीधे अनुदान देना चाहिए. दूसरा वर्ग करीब 10-12 करोड़ कामगारों का है, जिनके पास कोई काम नहीं रहा. सरकार को उनकी मदद करनी चाहिए. सरकार को पूरी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न ढांचागत क्षेत्रों में पूंजी व्यय बढ़ाना चाहिए. अलग-अलग सेक्टर्स में पेश आने वाली नीतिगत समस्याओं को दूर किया जाना चाहिए. पहली तिमाही के दौरान पूंजी निवेश में आई भारी कमी पर ध्यान देना चाहिए.