भारतीय इकॉनमी की स्थिति गंभीर! पिछले 60 सालों में कभी नहीं देखा ऐसा हश्र, इस साल जीरो रह सकती है ग्रोथ: IMF
कोरोना वायरस महामारी के कारण इस साल एशिया की आर्थिक वृद्धि दर शून्य रह सकती है. यदि ऐसा हुआ तो यह पिछले 60 साल का सबसे बुरा प्रदर्शन होगा.
नई दिल्ली. कोरोना वायरस महामारी के कारण इस साल एशिया की आर्थिक वृद्धि दर शून्य रह सकती है. यदि ऐसा हुआ तो यह पिछले 60 साल का सबसे बुरा प्रदर्शन होगा. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने यह आशंका व्यक्त की है. हालांकि आईएमएफ का यह भी मानना है कि गतिविधियों के संदर्भ में अन्य क्षेत्रों की तुलना में अभी भी एशिया बेहतर स्थिति में है. आईएमएफ ने ‘कोविड-19 महामारी और एशिया-प्रशांत क्षेत्र: 1960 के दशक के बाद की सबसे कम वृद्धि दर’ शीर्षक से एक ब्लॉग में कहा कि इस महामारी का एशिया-प्रशांत क्षेत्र में गंभीर और अप्रत्याशित असर होगा.
उसने कहा कि 2020 में एशिया की वृद्धि दर शून्य रहने की आशंका है. एशिया की आर्थिक वृद्धि दर वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान 4.7 प्रतिशत और एशियाई वित्तीय संकट के दौरान 1.3 प्रतिशत थी. शून्य वृद्धि दर करीब 60 साल की सबसे खराब स्थिति होगी. बहरहाल, इसके साथ ही आईएमएफ ने जोड़ा कि अब भी एशिया क्षेत्र अन्य क्षेत्रों की तुलना में बेहतर कर सकता है. इस साल वैश्विक अर्थव्यवस्था में तीन प्रतिशत की गिरावट आने का अनुमान है.
आईएमएफ के अनुसार, एशिया के दो बड़े व्यापारिक भागीदार अमेरिका और यूरोप में क्रमश: छह प्रतिशत और 6.6 प्रतिशत की गिरावट के अनुमान हैं. इस साल चीन की आर्थिक वृद्धि दर भी 2019 के 6.1 प्रतिशत से गिरकर 1.2 प्रतिशत पर आ जाने की आशंका है. आईएमएफ ने कहा कि कोविड-19 के कारण एशिया में उत्पादकता में भारी गिरावट देखने को मिल सकती है.
उसने कहा कि चीन ने पिछले वित्तीय संकट के दौरान जीडीपी के आठ प्रतिशत के बराबर के राहत उपाय किये थे, जिसके कारण 2009 में चीन की आर्थिक वृद्धि दर मामूली असर के बाद 9.4 प्रतिशत रही थी. हमें इस बार उस स्तर के राहत उपायों की उम्मीद नहीं है. चीन 2009 की तरह इस संकट में एशिया की वृद्धि दर को सहारा देने की स्थिति में नहीं है.
आईएमएफ ने दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया के लिए आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान में क्रमश: 3.5 प्रतिशत और नौ प्रतिशत की कटौती की है.
लॉकडाउन के बाद संकट, रघुराम राजन, अभिजीत बनर्जी और अमर्त्य सेन ने दिए ये सुझाव
कोविड-19 के बीच अर्थव्यवस्था को लेकर एक बड़ी चिंता खड़ी हो चुकी है. पिछले कुछ दिनों में तीन प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने कहा कि भारत को अब बहुत सोच-समझकर खर्च करना होगा. लेकिन जरूरतमंद लोगों की मदद में कंजूसी करना महंगा पड़ सकता है. अमर्त्य सेन, रघुराम राजन और अभिजीत बनर्जी ने इंडियन एक्सप्रेस में यह बात लिखी है.
इनका कहना है कि लॉकडाउन के बाद भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता होगी कि बड़े स्तर पर लोगों की रोजी-रोटी छीन चुकी होगी ओर स्टैंडर्ड डिलीवरी मैकेनिज्म भी प्रभावित हो चुका होगा. उन्होंने कहा, ‘यह अपने आप में ही एक ट्रैजेडी है. लॉकडाउन के उल्लघंन का भी जोखिम बढ़ सकता है. कुल मिलाकर भूखे रहने वालों को वैसे भी बहुत कुछ खोने के लिए बचा नहीं है.’
FCI के पास पर्याप्त स्टॉक
फिलहाल को सबसे पहले कुछ ऐसे कदम उठाने होंगे कि लोगों के न्यूनतम जरूरतों को सुनिश्चित किया जा सके. जरूरतमंदों की स्थिति को सुधारने को लेकर उन्होंने कई सुझाव देते हुए उन्होंने फूड कॉरपोरेशन आफ इंडिया (FCI) के स्टॉक्स की तरफ इशारा किया. मार्च 2020 तक FCI के पास 7 करोड़ टन का स्टॉक है. बफर स्टॉक की तुलना में यह तीन गुना अधिक है.
उन्होंने कहा कि सरकार ने पहले ही मान लिया है कि कृषि बाजार के लिए संकट की स्थिति खड़ी हो चुका है. यही कारण है कि अब किसानों से स्टॉक्स खरीदने के लिए सरकार जरूरी कदम उठा रही है. नेशनल इमरजेंसी के इस दौरान में पुराने स्टॉक को खर्च करना सबसे जरूरी कदम है. सरकार इसपर काम कर रही है. किसी भी पब्लिक अकाउंटिंग सिस्टम भी इसे बेहद खर्चीला कदम नहीं बताएगा.
कुछ लोग अभी भी PDS का लाभ नहीं ले पा रहे
इन अर्थशास्त्रियों ने माना कि सरकार अगले 3 महीने तक 5 किलोग्राम प्रति महीने की अनाज देने को लेकर सही कदम उठाया है. लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि 3 महीना इसके लिए पर्याप्त नहीं होगा. किसी न किसी कारण से गरीब लोगों एक अच्छा खासा हिस्सा पब्लिक डिस्ट्रीब्युशन सिस्टम के दायरे से बाहर है.
झारखंड का उदाहण देते हुए उन्होंने कहा कि राज्य में अभी भी लाखों राशन कार्ड एप्लीकेशन पेंडिंग हैं. सबसे उचित कदम होाग कि टेम्पोररी राशन कार्ड जारी किये जाएं. यह 6 महीने तक के लिए हो सकता है.
इन पर भी देना होगा ध्यान
पीडीएस के अलावा अन्य कदम उठाने को लेकर उन्होंने कहा कि प्रवासी मजदूरों और घर से बाहर रहने वाले लोगों के लिए पब्लिक कैंटीन की व्यवस्था की जानी चाहिए. स्कूल मील को बच्चों के घर तक पहुंचाना होगा. इन सबके लिए जरूरी एनजीओ की मदद से आगे बढ़ा जा सकता है.
उन्होंने कहा कि किसानों को अगली फसल के लिए पैसे और खाद की जरूरत होगी. दुकानदारों को देखना होगा कि वो अपने स्टॉक्स को कैसे पूरा करें. बहुत लोगों को यह देखना होगा कि वो अपने पुराने लोन को कैसे चुकाएं.
कैश ट्रांसफर का भी सहारा ले सरकार
कुछ हद तक इसके लिए केंद्र सरकार को कैश ट्रांसफर का सहारा लेना होगा. वर्तमान में सरकार जो अमाउंट जारी कर रही है वह बेहद कम है. इसमें केवल किसान ही नहीं, बल्कि उन मजदूरों को भी शामिल किया जाना चाहिए, जिनके पास काम नहीं है. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि शहरी क्षेत्रों में रहने वाले गरीबों पर भी ध्यान देना चाहिए.
चुनौतियों से निपटने का सही समय
इन तीनों अर्थशास्त्रियों ने इस बात पर भी जोर दिया कि यह भी सुनिश्चित होना चाहिए कि राज्य और लोकल सरकारों तक फंड समय पर पहुंचे. ऐसा करने से जरूरतमंदों को समय पर लाभ मिल सकेगा. उन्होंने कहा कि अगर कोई चुनौती है जिस पर तेजी से काम करना होगा तो वह यही है.