धान की फसल छोड़ने के बदले किसानों ने मांगा 20 हजार रुपये एकड़, सिर्फ 7 हजार देने को राजी है सरकार
इस मजबूरी में धान की फसल को डिस्करेज करना चाहती है सरकार. एक एकड़ में 47,710 रुपये का धान होता है तो फिर भला 7 हजार रुपये एकड़ के प्रोत्साहन पर कोई इसकी खेती क्यों छोड़ेगा? किसान संगठनों का बड़ा सवाल
राष्ट्रीय किसान महासंघ के संस्थापक सदस्य विनोद आनंद इसका गणित बताते हैं. हरियाणा में प्रति एकड़ औसतन 26 क्विंटल धान पैदा होता है. जबकि इसी राज्य में इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य 1835 रुपये प्रति क्विंटल है. मतलब ये है कि एक एकड़ में 47,710 रुपये का धान होता है. फिर भला 7 हजार रुपये एकड़ के प्रोत्साहन पर कोई अपनी धान की खेती क्यों छोड़ेगा. इसके लिए कम से कम आधी रकम तो सरकार मुहैया करवाए.
सरकार की मजबूरी क्या है?
यूनाइटेड नेशंस के खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization) के मुताबिक भारत में 90 परसेंट पानी का इस्तेमाल कृषि क्षेत्र में होता है. भारत में पानी की ज्यादातर खपत चावल और गन्ने जैसी फसलों में होती है. यह प्रदेश टॉप टेन धान उत्पादकों में शामिल है और जल संकट के लिहाज से करीब आधा हरियाणा डार्क जोन में हैं. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक एक किलोग्राम चावल पैदा करने में 5000 लीटर तक पानी की जरूरत होती है. ऐसे में सरकार को लगता है कि किसानों को राजी करने से यह समस्या हल हो सकती है. साथ ही हर साल नवंबर-दिसंबर में पराली जलने की समस्या भी काफी कम हो जाएगी. बता दें कि नीति आयोग (NITI Aayog) ने भी गन्ना और धान की फसल पर चिंता जाहिर करते हुए पिछले साल कहा था कि इनकी खेती के जरिए पानी की बर्बादी हो रही है.
कितना है भूजल स्तर
मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने बताया कि प्रदेश का कुछ हिस्सा पानी के लिहाज से डार्क जोन हो चुका है. जिसमें 36 ब्लॉक ऐसे हैं, जहां पिछले 12 वर्षों में भू-जल स्तर (ground water level) में गिरावट दोगनी हुई है. जहां पहले पानी की गहराई 20 मीटर थी, वो आज 40 मीटर हो गई है. जहां पानी की गहराई 40 मीटर से ज्यादा हो गई है ऐसे 19 ब्लॉक हैं. लेकिन इनमें से 11 ब्लॉक ऐसे हैं जिसमें धान की फसल नहीं होती. जबकि 8 ब्लॉकों रतिया, सीवान, गुहला, पीपली, शाहबाद, बबैन, ईस्माइलाबाद व सिरसा में वाटर लेवल 40 मीटर से ज्यादा है. इनमें धान की बिजाई होती है. इनमें यह स्कीम लागू की गई है.
खट्टर के मुताबिक जहां भूमि जल स्तर 35 मीटर से ज्यादा है और जमीन पंचायत के अधीन है उन गांव पंचायतों को पंचायती जमीन पर धान लगाने की अनुमति नहीं होगी. प्रोत्साहन राशि ग्राम पंचायत को दी जाएगी.
जल संकट से निपटने के लिए किसानों को प्रोत्साहन देने की योजना
क्या है स्कीम
-इस स्कीम का नाम ‘मेरा पानी-मेरी विरासत’ है. यहां यह पहले स्पष्ट कर देना जरूरी है कि यह स्कीम सिर्फ गैर बासमती धान के लिए है. बासमती से कई बड़ी कंपनियों का हित जुड़ा हुआ है इसलिए सरकार ने बासमती पर इसे लागू नहीं किया.
-धान के स्थान पर कम पानी से तैयार होने वाली फसलें जैसे मक्का, अरहर, उड़द, ग्वार, कपास, बाजरा, तिल व ग्रीष्म मूंग की बुआई करने की सलाह दी गई है. सरकार मक्का व दालों की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर करेगी.