अक्टूबर के अंत तक देश भर में 204.59 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद (Paddy Procurement) की गई है. जिसमें से अकेले पंजाब (Punjab) की हिस्सेदारी 142.81 लाख मीट्रिक टन है. जो कि कुल खरीद का 69.80 प्रतिशत है. पंजाब 2019-20 में भी कुल 162.33 लाख मिट्रिक टन धान खरीदकर इस मामले में पहले नंबर पर था. जबकि यूपी और बिहार जैसे राज्य नहीं के बराबर धान खरीद रहे हैं, जिससे वहां के किसान परेशान हैं. यूपी के किसान अपना धान लेकर हरियाणा की मंडियों में पहुंच रहे हैं. एफसीआई के मुताबिक बीजेपी शासित हरियाणा में 29 अक्टूबर तक 46.30 लाख टन धान खरीदा गया है. इसकी खरीद 26 सितंबर से चल रही है.
इस बार 1,888 रुपये प्रति क्विंटल की एमएसपी पर धान की खरीद हो रही है.
एमएसपी पर धान का भुगतान
धान की खरीद से अब तक लगभग 17.23 लाख किसानों को सरकार की वर्तमान एमएसपी योजनाओं का लाभ मिला है. उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य के अनुसार 38,627.46 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है. इस साल धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1868 रुपए और 1888 रुपए प्रति क्विंटल है.
कितना है धान खरीद का लक्ष्य?
उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री पीयूष गोयल ने बताया कि भारतीय खाद्य निगम (FCI) और राज्य की एजेंसियां चालू मौसम के दौरान रिकॉर्ड 742 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद करेंगी. जबकि पिछले साल 627 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद की गई थी. खरीफ 2020-21 के लिए खरीद केंद्रों की संख्या भी 30,709 से बढ़ाकर 39,122 कर दी गई है.
यूपी तीसरा बड़ा उत्पादक, लेकिन खरीद में फिसड्डी
एपिडा (APEDA) के मुताबिक पश्चिम बंगाल और पंजाब के बाद यूपी देश का तीसरा सबसे बड़ा धान उत्पादक राज्य है. यहां देश का 11.75 फीसदी धान पैदा होता है लेकिन खरीद के मामले में यह सबसे पीछे रहता है. किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह के मुताबिक यूपी ने अब तक मुश्किल से 4 लाख टन ही धान खरीदा है जो बताता है कि यहां के सत्ताधारियों का किसानों को लेकर माइंडसेट कैसा है.
ऐसे में किसान यहां मजदूर ही बनेगा
साल 2019-20 में भी यूपी में सिर्फ 56.57 लाख मिट्रिक टन धान की खरीद हुई थी. बिहार में तो अब तक सुशासन बाबू की सरकार ने इसकी खरीद ही नहीं शुरू की है. 29 अक्टूबर तक यहां धान का एक भी दाना नहीं खरीदा गया था. पिछले साल नीतीश कुमार की सरकार ने महज 20.3 लाख मिट्रिक टन धान खरीदा था. ऐसे में यहां के किसान आगे चलकर मजदूर नहीं बनेंगे तो क्या बनेंगे?