इस गर्मी आप नहीं खा पाएंगे आम! कोरोना दुनिया से छीन लेगा आम का सवाद, जानिए क्या है पूरा मामला?

अगर लॉकडाउन लम्बा खिंचा तो आम मंडियों तक नहीं पहुंच पाएगा. तब या तो वह डाल पर ही सड़ जाएगा, या फिर कौड़ियों के भाव कोविड-19 के चलते इस बार आप दशहरी समेत तमाम किस्मों के आम के जायके से महरूम रह सकते हैं. आम उत्पादकों को लॉकडाउन के चलते लागू बंदिशों की वजह से फसल के बरबाद होने की आशंका सता रही है.

0 999,247

नई दिल्ली. कोरोना की वजह से आम मंडियों तक नहीं पहुंच पा रहा है. बागवान के मालिकों को यह भी डर है कि अगर लॉकडाउन लम्बा खिंचा तो आम मंडियों तक नहीं पहुंच पाएगा. तब या तो वह डाल पर ही सड़ जाएगा, या फिर कौड़ियों के भाव कोविड-19 के चलते इस बार आप दशहरी समेत तमाम किस्मों के आम के जायके से महरूम रह सकते हैं. आम उत्पादकों को लॉकडाउन के चलते लागू बंदिशों की वजह से फसल के बरबाद होने की आशंका सता रही है.

लॉकडाउन के कारण प्रदूषण कम होने से आम की फसल के लिये साज़गार तो है, लेकिन सिंचाई और दवा वगैरह के छिड़काव के लिये मजदूर न मिल पाने की वजह से फसल खराब होने की आशंका है. साथ ही बागवान के मालिकों को यह भी डर है कि अगर लॉकडाउन लम्बा खिंचा तो आम मंडियों तक नहीं पहुंच पाएगा. तब या तो वह डाल पर ही सड़ जाएगा, या फिर कौड़ियों के भाव बिकेगा.”

मैंगो ग्रोवर्स एसोसिएशन आफ इंडिया” के अध्यक्ष इंसराम अली ने लॉकडाउन के कारण उपजी स्थितियों पर गहरी चिंता जाहिर करते हुए बताया कि लॉकडाउन के कारण मजदूर न मिलने की वजह से आम की सिंचाई नहीं हो पा रही है. पूर्णबंदी की वजह से आम को सुरक्षित रखने के लिये पेटियां बनाने वाली फैक्ट्रियां भी बंद हैं. ऐसे में जब एक जिले से दूसरे जिले तक में आम पहुंचाना मुमकिन नहीं है, तो दूसरे देशों में उसका निर्यात करना खामख्याली ही है.

उन्होंने कहा कि इस बार पूरी आशंका है कि दुनिया के बाकी देश लखनवी दशहरी समेत आम की तमाम किस्मों के जायके से महरूम रह जाएंगे. दशहरी आम अमेरिका, सऊदी अरब, कुवैत, कतर, बहरीन, सिंगापुर, ब्रिटेन, बांग्लादेश, नेपाल तथा पश्चिम एशिया के लगभग सभी देशों में निर्यात होता है. पिछले साल करीब 40 हजार मीट्रिक टन आम निर्यात हुआ था. इस साल किसान सोच रहा है कि लॉकडाउन में उसका आम स्थानीय बाजार में ही पहुंचकर बिक जाए तो बड़ी बात होगी.

अली ने कहा कि इस साल प्रदेश में 30-35 लाख मीट्रिक टन आम उत्पादन होने की उम्मीद है. हालांकि अभी आम की फसल पूरी तरह तैयार होने में एक महीना बाकी है. लेकिन अगर 20-25 दिन ऐसे ही लॉक डाउन रहा तो हालात बहुत खराब हो जाएंगे. तब सड़ने से बचा आम सड़कों पर फेंकना पड़ेगा, क्योंकि यह कोई सब्जी या दवा नहीं है कि लोग उसे खरीदें ही.

उन्होंने सरकार से मांग की कि वह आम उत्पादकों को भी किसानों की ही तरह लॉकडाउन में छूट दे, ताकि वे बागों में जाकर अपना काम कर सकें. साथ ही वह गेहूं और धान की तरह आम का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित कर उसे खरीदे ताकि आम के उत्पादकों को बरबाद होने से बचाया जा सके. मशहूर आम बागवान कलीम उल्ला ने कहा कि हालात यूं ही रहे तो आम की फसल मंडियों तक नहीं पहुंच पायेगी. तब आम बागों में ही सड़ जाएगा. अगर सरकार ने आम को मंडी में लाने की व्यवस्था की, तो भी उसे तौलने और बेचने के लिये मजदूर नहीं मिलेंगे.

उन्होंने कहा कि निर्यात नहीं होने की वजह से आम स्थानीय बाजारों में कौड़ियों के दाम बिकेगा. दोनों ही सूरत में आम उत्पादक का बरबाद होना तय है. मालूम हो कि उत्तर प्रदेश में लखनऊ स्थित मलीहाबाद, बाराबंकी, प्रतापगढ़, उन्नाव के हसनगंज, हरदोई के शाहाबाद, सहारनपुर, मेरठ तथा बुलंदशहर समेत करीब 15 मैंगो बेल्ट हैं. पूरे देश का करीब 23 प्रतिशत आम उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है.

Leave A Reply

Your email address will not be published.