राम मंदिर पर 57 दिन बाद बोले आडवाणी:कोर्ट से बरी होने पर भाजपा के सारथी ने कहा- जय श्रीराम! इससे मंदिर आंदोलन में मेरा समर्पण सही साबित हुआ
बाबरी विध्वंस केस में स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने बुधवार को लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी समेत सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया। फैसले के बाद लालकृष्ण आडवाणी (92) ने भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि यह हम सभी के लिए खुशी का पल है। कोर्ट के निर्णय ने मेरी और पार्टी की रामजन्मभूमि आंदोलन को लेकर प्रतिबद्धता और समर्पण को सही साबित किया है। फैसला आने के बाद आडवाणी ने जय श्रीराम का नारा भी लगाया।
इससे पहले, 4 अगस्त को राम मंदिर पर उन्होंने बयान दिया था। आडवाणी ने राम जन्मभूमि पूजन के एक दिन पहले कहा था कि जीवन के कुछ सपने पूरे होने में बहुत समय लेते हैं, लेकिन पूरे होते हैं तो लगता है कि प्रतीक्षा सार्थक हुई। भाजपा के वरिष्ठ नेता ने यह भी कहा कि आज जो निर्णय आया, वो अत्यंत महत्वपूर्ण है। हम सबके लिए खुशी का दिन है। समाचार सुना, इसका स्वागत करते हैं। देश के लाखों लोगों तरह मैं भी अयोध्या में सुंदर राम मंदिर देखना चाहता हूं।
Senior BJP Leader LK Advani Ji Joining The Court Via Video Conference. #BabriDemolitionCase pic.twitter.com/H0s6FhsyD1
— Narendra Modi fan (@narendramodi177) September 30, 2020
‘अयोध्या में कोई साजिश नहीं हुई’
मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। साबित हो गया कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कोई साजिश नहीं हुई। तब हमारा कार्यक्रम और रैलियां किसी षड्यंत्र का हिस्सा नहीं थीं। हम खुश हैं। सभी को राम मंदिर निर्माण को लेकर उत्साहित होना चाहिए।
इस फैसले पर किसने क्या कहा?
- एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह न्याय का मामला है। बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए जिम्मेदार लोगों को दोषी ठहराया जाना चाहिए। लेकिन अतीत में उन्हें मंत्री बनाकर राजनीतिक रूप से रिवॉर्ड दिया गया। इस मुद्दे की वजह से भाजपा सत्ता में है। मेरा मानना है कि यह भारतीय न्यायपालिका का काला दिन है। अब कोर्ट ने कहा कि वहां कोई साजिश नहीं हुई।
- शिवसेना नेता और सांसद संजय राउत ने कहा कि मैं इस फैसले का स्वागत करता हूं। साथ ही आडवाणी, मुरली मनोहर, उमा भारती और उन लोगों को बधाई देता हूं, जो इस केस बरी हो गए।
- राजनाथ सिंह ने कहा कि देर से ही सही मगर न्याय की जीत हुई है।
लखनऊ की विशेष अदालत द्वारा बाबरी मस्जिद विध्वंस केस में श्री लालकृष्ण आडवाणी, श्री कल्याण सिंह, डा. मुरली मनोहर जोशी, उमाजी समेत ३२ लोगों के किसी भी षड्यंत्र में शामिल न होने के निर्णय का मैं स्वागत करता हूँ। इस निर्णय से यह साबित हुआ है कि देर से ही सही मगर न्याय की जीत हुई है।
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) September 30, 2020
तुलसी रचित दो पंक्तियां हैं- ‘प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि। गए सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि।’ मोटे तौर पर इसका अर्थ है कि रघुनाथ यानी राम दया के समुद्र हैं। शरण में आने वाले का सब अपराध भुला देते हैं।
सही ही कहा है तुलसी बाबा ने…! बाबरी मस्जिद ढांचा ढहाए जाने के 265 दिन बाद मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा गया। उसे पता करना था कि किसने साजिश रची, किसने ढांचा गिराया। सीबीआई टीम करीब 3 साल जांच करती रही। फिर सीबीआई के स्पेशल कोर्ट में ही सुनवाई शुरू हुई। आखिरकार 30 सितंबर को फैसला आ गया। बाबरी से सब बरी कर दिए गए।
सब यानी सभी 32 आरोपी, जो जिंदा हैं। वैसे कुल 48 आरोपी थे। इनमें से 16 अब नहीं हैं। घटना के 28 साल बाद फैसला सुनाने वाले सीबीआई कोर्ट के जज एसके यादव ने 2000 पन्ने लिखे हैं। ये उनका आखिरी फैसला है। आज ही रिटायर भी हो रहे हैं।
फैसले में जज ने कहा कि सीबीआई किसी के भी खिलाफ एक भी आरोप साबित नहीं कर सकी। इसलिए लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती समेत सभी आरोपी बरी किए जाते हैं। ये सब राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख चेहरे थे। ये इत्तेफाक ही है कि इसी बाबरी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का फैसला भी 30 सितंबर को ही आया था। लेकिन 10 साल पहले।
सीबीआई की स्पेशल कोर्ट के फैसले की 10 बड़ी बातें
- इस मामले में किसी भी तरह की साजिश के सबूत नहीं मिले।
- जो कुछ हुआ, वह अचानक था और किसी भी तरह से यह घटना साजिशन नहीं थी।
- आरोपी बनाए गए लोगों का विवादित ढांचा गिराने के मामले से कोई लेना-देना नहीं था।
- विवादित ढांचा अज्ञात लोगों ने गिराया। कार सेवा के नाम पर लाखों लोग अयोध्या में जुटे थे और उन्होंने आक्रोश में आकर विवादित ढांचा गिरा दिया।
- सीबीआई 32 आरोपियों का गुनाह साबित करते सबूत पेश करने में नाकाम रही।
- अशोक सिंघल ढांचा सुरक्षित रखना चाहते थे क्योंकि वहां मूर्तियां थीं।
- विवादित जगह पर रामलला की मूर्ति मौजूद थी, इसलिए कारसेवक उस ढांचे को गिराते तो मूर्ति को भी नुकसान पहुंचता। कारसेवकों के दोनों हाथ व्यस्त रखने के लिए जल और फूल लाने को कहा गया था।
- अखबारों में लिखी बातों को सबूत नहीं मान सकते। सबूत के तौर पर कोर्ट को सिर्फ फोटो और वीडियो पेश किए गए।
- ऑडियो टेप के साथ छेड़छाड़ की गई थी। वीडियो टेम्पर्ड थे, उनके बीच-बीच में खबरें थीं, इसलिए इन्हें भरोसा करने लायक सबूत नहीं मान सकते।
- चार्टशीट में तस्वीरें पेश की गईं, लेकिन इनमें से ज्यादातर के निगेटिव कोर्ट को मुहैया नहीं कराए गए। इसलिए फोटो भी प्रमाणिक सबूत नहीं हैं।
इस केस में अब आगे क्या?
इस मामले में बाबरी एक्शन कमेटी के संयोजक और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य जफरयाब जिलानी का बड़ा बयान आया है। दैनिक भास्कर से बातचीत में उन्होंने कहा कि वे कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं और हाईकोर्ट जाएंगे। वे सीबीआई से भी दोबारा जांच या मुकदमे की अपील करेंगे।
कौन थे 32 आरोपी
लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, महंत नृत्य गोपाल दास, डॉ. राम विलास वेदांती, चंपत राय, महंत धर्मदास, सतीश प्रधान, पवन कुमार पांडेय, लल्लू सिंह, प्रकाश शर्मा, विजय बहादुर सिंह, संतोष दुबे, गांधी यादव, रामजी गुप्ता, ब्रज भूषण शरण सिंह, कमलेश त्रिपाठी, रामचंद्र खत्री, जय भगवान गोयल, ओम प्रकाश पांडेय, अमरनाथ गोयल, जयभान सिंह पवैया, साक्षी महाराज, विनय कुमार राय, नवीन भाई शुक्ला, आरएन श्रीवास्तव, आचार्य धर्मेंद्र देव, सुधीर कुमार कक्कड़ और धर्मेंद्र सिंह गुर्जर।
फैसले के बाद दिग्गज क्या बोले?
आडवाणी ने वीडियो मैसेज ने कहा, आज जो कोर्ट का निर्णय आया, वो अत्यंत महत्वपूर्ण है। हम सबके लिए खुशी का दिन है। समाचार सुना, इसका स्वागत करते हैं। मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। साबित हो गया कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कोई साजिश नहीं हुई। तब हमारा कार्यक्रम और रैलियां किसी षड्यंत्र का हिस्सा नहीं थीं। हम खुश हैं। सभी को राम मंदिर निर्माण को लेकर उत्साहित होना चाहिए।
6 नेता वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से जुड़े
लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, शिवसेना के पूर्व सांसद सतीश प्रधान, महंत नृत्य गोपाल दास और पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से कोर्टरूम से जुड़े। इनके अलावा अन्य सभी 26 आरोपी कोर्टरूम में मौजूद थे। बाबरी केस विशेष जज एसके यादव के कार्यकाल का अंतिम फैसला रहा। वे 30 सितंबर 2019 को रिटायर होने वाले थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 30 सितंबर 2020 तक (फैसला सुनाने तक) सेवा विस्तार दिया।