ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम (GHMC) के चुनावों को हिंदी मीडिया में आज से पहले शायद इतनी जगह नहीं मिली होगी, जितनी इस बार मिली है। उसकी वजह भी खास है। वो ये कि ये इस चुनाव में भाजपा ने पहली बार 48 सीटें जीती हैं। रूलिंग पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) ने 55 और ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (AIMIM) ने 44 सीटें जीती हैं।
लेकिन इस बार ऐसा क्या हुआ कि ओवैसी की पार्टी दूसरे से तीसरे नंबर पर आ गई और भाजपा तीसरे से दूसरे? इस चुनाव में भाजपा ने क्या रणनीति अपनाई? और क्या इन नतीजों का असर अगले साल पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनावों पर भी दिखेगा? आइए जानते हैं…
सबसे पहले बात GHMC के बारे में…
- GHMC का सालाना बजट 6 हजार 150 करोड़ रुपए का है। इसकी आबादी तकरीबन 80 लाख है, जिसमें से 40% से ज्यादा आबादी मुस्लिम है। 2007 से इसे ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम कहा जाता है। ये नगर निगम 7 जोन में बंटा है। और यहां एक मेयर और एक डिप्टी मेयर होता है।
- इस नगर निगम में विधानसभा की 24 और लोकसभा की 5 सीट आती है। AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी यहीं से लोकसभा सांसद हैं। फिलहाल इस नगर निगम पर मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव की पार्टी TRS का कब्जा है। 2016 में TRS ने यहां के 150 में से 99 वॉर्ड में जीत हासिल की थी। AIMIM को 44 सीटें मिली थीं। जबकि भाजपा को 4 और कांग्रेस को 2 सीटें मिली थीं। अभी यहां के मेयर डॉ. बोंथू राममोहन और डिप्टी मेयर बाबा फसीउद्दीन हैं।
AIMIM के पीछे छोड़, भाजपा आगे कैसे बढ़ी? इसके चार कारण हैंः
1. शाह, योगी समेत भाजपा के सभी बड़े नेताओं का प्रचार करना
ये चुनाव भले ही नगर निगम के लिए था, लेकिन भाजपा ने यहां अपनी पूरी ताकत झोंक दी। गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और प्रकाश जावड़ेकर जैसे बड़े नेताओं ने यहां प्रचार किया। जेपी नड्डा और योगी आदित्यनाथ ने तो यहां रोड शो तक किया। वहीं युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद तेजस्वी सूर्या भी यहां जमे हुए थे। इसका फायदा भाजपा को मिला।
2. स्थानीय मुद्दों को साइड किया और राष्ट्रवाद का मुद्दा उठाया
नगर निगम के चुनाव अक्सर बिजली, पानी, सड़क, कूड़ा-करकट जैसे स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं, लेकिन ये पहली बार था जब चुनावों में सर्जिकल स्ट्राइक, 370, मुसलमान, रोहिंग्या, पाकिस्तान, बांग्लादेश का जिक्र हुआ। तेजस्वी सूर्या ने प्रचार के दौरान कहा, ‘अकबरुद्दीन और असदुद्दीन ओवैसी ने हैदराबाद में केवल रोहिंग्या मुसलमानों का विकास करने का काम किया है। ओवैसी को वोट भारत के खिलाफ वोट है।’ केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने भी कहा, ‘TRS और AIMIM घुसपैठियों के साथ खड़ी है।’ वहीं योगी आदित्यनाथ ने तो कह दिया कि बिहार में AIMIM के विधायक ने शपथ लेते समय ‘हिंदुस्तान’ नहीं बोला। इससे ध्रुवीकरण हुआ और भाजपा को फायदा मिला।
3. TRS और AIMIM के बीच अंदरुनी गठबंधन है, इसे बताने में कामयाब रही भाजपा
तेजस्वी सूर्या लगातार प्रचार में कहते रहे कि TRS और AIMIM के बीच ‘अपवित्र गठबंधन’ है। इसका एक कारण ये भी था कि TRS ने तो सभी 150 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, लेकिन ओवैसी की पार्टी ने महज 51 सीटों पर ही उम्मीदवार खड़े किए। भाजपा 149 सीटों पर लड़ रही है। TRS के खिलाफ ज्यादातर सीटों पर ओवैसी की पार्टी का नहीं उतरने का भाजपा ने फायदा उठाया। स्मृति ईरानी और योगी आदित्यनाथ समेत भाजपा के नेता ये बताने में कामयाब रहे कि TRS और AIMIM के बीच अंदरुनी गठबंधन है, बस दोनों ही इसे जाहिर नहीं करते।
4. गैर-मुस्लिम आबादी पर भाजपा ने फोकस किया
हैदराबाद की 40% से ज्यादा की आबादी मुसलमान है। और यही भाजपा की कमजोरी भी थी, लेकिन यही ताकत भी बनी। भाजपा नेताओं ने गैर-मुस्लिम आबादी पर फोकस किया। तेजस्वी सूर्या ने इसके लिए बहुत काम किया। उन्होंने यहां ‘चेंज हैदराबाद’ कैंपेन शुरू किया। उन्होंने अपने सभी भाषणों में TRS और AIMIM पर तीखे हमले किए। उन्होंने कहा, ‘ओवैसी हैदराबाद में रहते हैं, लेकिन ये शहर हमारा है। ये शहर जय श्रीराम के नारे से गूंज उठा है। TRS और AIMIM जय श्रीराम के नारे लगाने से डरते हैं। हमें इस ताकत को बढ़ाने की जरूरत है।’ एक रैली में तो सूर्या ने ओवैसी को मोहम्मद अली जिन्ना का अवतार तक बता दिया।
अब सवाल ये कि नगर निगम के चुनाव में भाजपा ने इतनी ताकत क्यों लगाई?
- इसके लिए थोड़ा पीछे चलते हैं। मार्च 2020 में भाजपा ने बंदी संजय कुमार को तेलंगाना का प्रदेश अध्यक्ष बनाया। ये कई सालों बाद हुआ, जब भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष हैदराबाद से नहीं चुना। बंदी संजय कुमार करीमनगर सीट से लोकसभा सांसद हैं और पहली बार ही सांसद बने हैं।
- नवंबर में यहां की दुब्बाक सीट पर उपचुुनाव हुए। इस सीट पर TRS का कब्जा था। बंदी संजय कुमार ने दुब्बाक सीट जीतने के लिए एक रणनीति अपनाई। उन्होंने घर-घर जाकर कहना शुरू किया कि TRS और ओवैसी की पार्टी के बीच अंदरुनी गठबंधन है। उनकी ये रणनीति कामयाब रही और भाजपा दुब्बाक सीट जीत गई। यहां से भाजपा के एम रघुनंदन राव ने TRS की एस सुजाता को महज 1,079 वोटों से हराया।
- भाजपा के लिए दुब्बाक की जीत बहुत बड़ी थी। 2018 में तेलंगाना में जब चुनाव हुए। भाजपा यहां की 119 में से सिर्फ एक सीट ही जीत पाई। दुब्बाक जीतने के बाद तेलंगाना में उसकी विधायकों की संख्या एक से बढ़कर दो हो गई और TRS के विधायकों की संख्या 88 से 87।
क्या इसका बंगाल चुनाव पर भी कोई असर पड़ेगा?
- मुस्लिम बहुल इलाके में इस तरह का भाजपा का प्रदर्शन बंगाल पर भी प्रभाव डालेगा। भाजपा ने जिस तरह की रणनीति यहां अपनाई, इसी तरह की रणनीति बंगाल में भी अपना सकती है। एक तरह से ये भी कह सकते हैं कि हैदराबाद नगर निगम चुनाव भाजपा के लिए टेस्टिंग लैब की तरह था।
- पश्चिम बंगाल में 294 विधानसभा सीट हैं। बहुमत के लिए 148 सीटों की जरूरत है। यहां की 30% आबादी मुस्लिम है और 110 सीटों पर उनका दबदबा है। यहां ओवैसी की पार्टी भी अपने उम्मीदवार उतारेगी। ऐसे में वोटों का बंटना तय है। जैसा बिहार में हुआ।
- बिहार में पहली बार ओवैसी की AIMIM ने पांच सीटों पर जीत हासिल कर ये संकेत दे दिया है कि वो बंगाल के मुस्लिम बहुल इलाकों में वोटकटवा पार्टी बन सकती है। उसने पहले ही बंगाल चुनावों की तैयारी तेज कर दी है। इसका पूरा फायदा भाजपा को मिल सकता है। यदि हिंदू वोट कंसोलिडेट्स हुआ, जिसकी कोशिश भाजपा पिछले कुछ सालों से बंगाल में कर रही है तो तृणमूल की परेशानी बढ़ सकती है। इसी तरह AIMIM की मौजूदगी से वोटर्स का ध्रुवीकरण तय है।
- मालदा में 51%, मुर्शिदाबाद में 66%, नादिया में 30%, बीरभूम में 40%, पुरुलिया में 30% और ईस्ट और वेस्ट मिदनापुर में 15% मुस्लिम आबादी है। ऐसे में भाजपा की कोशिशें सफल रहीं तो निर्णायक मुस्लिम वोटों वाली सीटों पर वोट बंटेंगे और हिंदू वोट कंसोलिडेट्स होंगे।