14 दिन से लगातार घट रहे हैं एक्टिव केस; नए केस मिलने की रफ्तार भी घटी, क्या यही भारत में महामारी का पीक है?
अभी कोई दावे के साथ कुछ नहीं कह रहा। एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट ने रिकवरी रेट को आधार बनाया। कहा कि भारत में रिकवरी रेट 75% को पार करेगा, तब शायद हम पीक की ओर बढ़ते हुए नजर आएं। यह दावा गलत निकला। रिकवरी रेट 75% क्रॉस करने के बाद भी सितंबर में केस बढ़ते चले गए।
करीब दो हफ्ते से तकरीबन रोज ही कोरोनावायरस के नए केस सामने आने की संख्या घट रही है। इससे विशेषज्ञों में यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या महामारी का पीक आ गया है? आंकड़े भले ही यह संकेत दे रहे हों, मगर विशेषज्ञ कुछ भी कहने को तैयार नहीं हैं। वे सतर्क रहने को जरूर कह रहे हैं।
भारत में कोरोना की वजह से मरने वालों की संख्या शुक्रवार को एक लाख पार कर गई। लेकिन, रोज सामने आने वाले नए केस का सात-दिन का औसत 16 सितंबर को 93,199 था, जो 1 अक्टूबर को घटकर 82,214 रह गया है। नए केस में इस तरह की गिरावट पहली बार सामने आई है।
इसी तरह रिकवरी रेट भी बढ़कर 83.84% हो चुका है। इस समय 54.28 लाख लोग कोरोना से ठीक हो चुके हैं। वहीं, एक्टिव केस की संख्या भी सितंबर के 10 लाख से ज्यादा केस से घटकर 9.45 लाख के आसपास पहुंच चुकी है।
सबसे पहले, यह पीक क्या होता है?
- महामारी के दौर में अधिकारी और वैज्ञानिक अक्सर पीक की बात करते हैं। इसका मतलब है कि नए मामलों में स्थिरता आ गई है और गिरावट आ रही है। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, जब कोई संक्रमण अनियंत्रित तरीके से बढ़ता है तो हर दिन पिछले दिन से ज्यादा केस आते हैं। मौतें भी बढ़ती जाती हैं।
- यह स्थिति हमेशा नहीं रहती। कहीं न कहीं जाकर सिलसिला टूटता ही है। नए केस की संख्या पिछले दिन के बराबर या उससे कम होने लगती है। इसे महामारी से जुड़ी शब्दावली में पीक कहते हैं, लेकिन यह नियमित होना चाहिए। ऐसा नहीं है कि एकाध दिन नए मामले कम आए तो उसे पीक मान लें।
भारत में पीक को लेकर क्या कह रहे हैं एनालिस्ट?
- अभी कोई दावे के साथ कुछ नहीं कह रहा। एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट ने रिकवरी रेट को आधार बनाया। कहा कि भारत में रिकवरी रेट 75% को पार करेगा, तब शायद हम पीक की ओर बढ़ते हुए नजर आएं। यह दावा गलत निकला। रिकवरी रेट 75% क्रॉस करने के बाद भी सितंबर में केस बढ़ते चले गए।
- इसी तरह, वहीं, प्रिटिविटी और टाइम्स नेटवर्क की स्टडी में प्रतिशत बेस्ड मॉडल्स, टाइम सीरीज मॉडल्स और एसईआरआर मॉडल्स को बेस बनाया। उसने बताया कि जब एक्टिव केस कम से कम 7.80 लाख और अधिकतम 9.38 लाख होंगे, तब भारत में पीक आएगा। हालांकि, सितंबर में एक्टिव केस की संख्या 10 लाख को भी पार कर चुकी है।
- विशेषज्ञों का दावा है कि 16 सितंबर का पीक, राष्ट्रीय स्तर का आंकड़ा था। इससे आपको यह समझने में मदद नहीं मिलेगी कि किस राज्य में या इलाके में यह स्थिति बनी। जरा भी लापरवाही दूसरे पीक की ओर ले जा सकती है। दिल्ली जैसे शहरों में हमने ऐसा देखा भी है।
- आईसीएमआर के कोविड-19 एक्सपर्ट पैनल में शामिल कम्युनिटी मेडिसिन स्पेशलिस्ट जयप्रकाश मुलीयिल ने एक अखबार से कहा कि ऑल-इंडिया लेवल पर पीक का नंबर भटका सकता है। एक हाथ फ्रीज में और दूसरा ओवन में रखकर टेम्परेचर को बैलेंस नहीं किया जा सकता।
- सबसे पहले, यह पीक क्या होता है?
- महामारी के दौर में अधिकारी और वैज्ञानिक अक्सर पीक की बात करते हैं। इसका मतलब है कि नए मामलों में स्थिरता आ गई है और गिरावट आ रही है। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, जब कोई संक्रमण अनियंत्रित तरीके से बढ़ता है तो हर दिन पिछले दिन से ज्यादा केस आते हैं। मौतें भी बढ़ती जाती हैं।
- यह स्थिति हमेशा नहीं रहती। कहीं न कहीं जाकर सिलसिला टूटता ही है। नए केस की संख्या पिछले दिन के बराबर या उससे कम होने लगती है। इसे महामारी से जुड़ी शब्दावली में पीक कहते हैं, लेकिन यह नियमित होना चाहिए। ऐसा नहीं है कि एकाध दिन नए मामले कम आए तो उसे पीक मान लें।
भारत में पीक को लेकर क्या कह रहे हैं एनालिस्ट?
- अभी कोई दावे के साथ कुछ नहीं कह रहा। एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट ने रिकवरी रेट को आधार बनाया। कहा कि भारत में रिकवरी रेट 75% को पार करेगा, तब शायद हम पीक की ओर बढ़ते हुए नजर आएं। यह दावा गलत निकला। रिकवरी रेट 75% क्रॉस करने के बाद भी सितंबर में केस बढ़ते चले गए।
- इसी तरह, वहीं, प्रिटिविटी और टाइम्स नेटवर्क की स्टडी में प्रतिशत बेस्ड मॉडल्स, टाइम सीरीज मॉडल्स और एसईआरआर मॉडल्स को बेस बनाया। उसने बताया कि जब एक्टिव केस कम से कम 7.80 लाख और अधिकतम 9.38 लाख होंगे, तब भारत में पीक आएगा। हालांकि, सितंबर में एक्टिव केस की संख्या 10 लाख को भी पार कर चुकी है।
- विशेषज्ञों का दावा है कि 16 सितंबर का पीक, राष्ट्रीय स्तर का आंकड़ा था। इससे आपको यह समझने में मदद नहीं मिलेगी कि किस राज्य में या इलाके में यह स्थिति बनी। जरा भी लापरवाही दूसरे पीक की ओर ले जा सकती है। दिल्ली जैसे शहरों में हमने ऐसा देखा भी है।
- आईसीएमआर के कोविड-19 एक्सपर्ट पैनल में शामिल कम्युनिटी मेडिसिन स्पेशलिस्ट जयप्रकाश मुलीयिल ने एक अखबार से कहा कि ऑल-इंडिया लेवल पर पीक का नंबर भटका सकता है। एक हाथ फ्रीज में और दूसरा ओवन में रखकर टेम्परेचर को बैलेंस नहीं किया जा सकता।
- बड़े राज्यों में बिहार में अगस्त के बीच में ही नए केस मिलने की रफ्तार घटने लगी थी। सबसे बुरी स्थिति वाले 20 राज्यों में से छह अब भी पीक से दूर दिख रहे हैं। केरल, पश्चिम बंगाल, ओडिशा जैसे छह राज्यों में कोरोना पीक अब भी नहीं दिख रहा। केस बढ़ते ही जा रहे हैं।
- इसी तरह असम, तेलंगाना और दिल्ली जैसे राज्यों में डेली कोविड-19 केस के मल्टीपल पीक देखे गए हैं। इसका मतलब यह है कि इस बात को लेकर पूरे दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि एक अवधि तक मामलों में कमी आने के बाद इसमें फिर बढ़ोतरी नहीं होगी।
क्या सैम्पल कम होने की वजह से केस कम मिल रहे हैं?
- यह सही नहीं है। नए इंफेक्शन की संख्या में गिरावट दिख रही है, जबकि जांच के सैम्पल बढ़े हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, सितंबर के आखिरी तीन हफ्तों में 10.60 लाख टेस्ट रोज हुए। वहीं, अगस्त के आखिरी तीन हफ्तों में टेस्ट के लिए सिर्फ 8.6 लाख सैम्पल रोज लिए गए।
- इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि 17 सितंबर को सात दिन के टेस्ट का डेली एवरेज 10.7 लाख था, जो 25 सितंबर को बढ़कर 11.2 लाख हो गया था। 25 सितंबर तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तुलना करने योग्य डेटा है। टेस्ट पॉजिटिविटी रेट भी 8.7% से घटकर 7.7% रह गया है।
क्या एंटीजन टेस्ट की वजह से कम हुए केस?
- दरअसल, कोरोनावायरस की पुष्टि के लिए पीसीआर (जेनेटिक टेस्ट) गोल्ड स्टैंडर्ड है। भरोसेमंद भी। पीसीआर के विकल्प के तौर पर कई राज्यों में एंटीजन टेस्ट (रैपिड प्रोटीन टेस्ट) तेजी से बढ़े हैं। इस पर अहमदाबाद में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ में डायरेक्टर दिलीप मावलंकर ने एक इंटरव्यू में कहा कि एंटीजन टेस्ट से फॉल्स निगेटिव्स आ सकते हैं। गिरावट की यह वजह हो सकती है।
- हालांकि, ध्यान देने वाली बात यह है कि केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से कहा कि कि सिंप्टोमैटिक मरीज यदि एंटीजन टेस्ट में निगेटिव आता है तो उसका पीसीआर टेस्ट जरूर किया जाए। लेकिन, कई राज्यों में हर मरीज के साथ इस नियम का पालन नहीं हो रहा।
क्या कह रहे हैं सीरो सर्वे के नतीजे?
- एक्सपर्ट कहते हैं कि टेस्टिंग स्ट्रैटजी में बदलाव का बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। देश में 80 प्रतिशत इन्फेक्टेड लोग एसिंप्टोमैटिक हैं या बहुत ही हल्के लक्षण पाए गए हैं। आईसीएमआर के सर्वे से पता चला कि अगस्त में हर रिपोर्टेड केस के पीछे 32 इंफेक्शन थे, लेकिन उनका पता ही नहीं चला।
- सीरो टेस्ट के नतीजों से उम्मीद कर सकते हैं कि अगस्त में इंफेक्शन 9.2 करोड़ से ऊपर रहे होंगे। शहरी बस्तियों में 15%, अन्य शहरी इलाकों में 8% और ग्रामीण इलाकों में 4.4% आबादी इन्फेक्टेड पाई गई है यानी देश की बड़ी आबादी को महामारी हो चुकी है।