नई दिल्ली। लॉकडाउन में बाजार बंद रहा। लोगों ने सामान नहीं खरीदा। फिर भी देश की टॉप 10 कंपनियों समेत अधिकतर कंपनियों को रिकॉर्ड मुनाफा हुआ। इंफोसिस जैसी कंपनियों के मार्केट कैप 50% से ज्यादा बढ़ गए। इसकी तीन खास वजहें थीं। पहली सस्ते ब्याज पर बैंक लोन, दूसरी सस्ता कच्चा माल और तीसरी, पहले जितने वेतन या कम वेतन में कर्मचारियों का ज्यादा काम। इन तीन वजहों के कारण कंपनियों का खर्च बेहद कम हो गया। इसलिए बाजार में मांग घटने के बावजूद कंपनियों ने 2020 में रिकॉर्ड मुनाफा कमाया।
मार्च 2020 के आखिरी हफ्ते में लॉकडाउन लगा। आने-जाने पर रोक लगी और फैक्ट्रियां बंद हो गईं। जिनके पास भी तैयार कच्चा माल था, उन्होंने औने-पौने दाम में बेच दिया। भारत से सबसे ज्यादा कच्चा माल खरीदने वाला चीन पहले ही लॉकडाउन कर चुका था। जब जून में अनलॉक शुरू हुआ तो कच्चे माल वाली कंपनियों ने बचा-खुचा माल भी सस्ते दामों पर बेच दिया।
लॉकडाउन का समय मार्च-अप्रैल का था। इसी वक्त अधिकतर कंपनियों में कर्मचारियों के वेतन बढ़ाए जाते हैं, लेकिन रिलायंस जैसी कंपनियों ने कर्मचारियों के वेतन काटे। देशभर की कंपनियों ने दो करोड़ कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी CMIE के आंकड़ों के मुताबिक जून तक अगर डेली वेज वर्कर्स और असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों को जोड़ लिया जाए तो 12 करोड़ से ज्यादा लोगों का रोजगार छिना। इसलिए पे-कट और अधिक काम करने वाले कर्मचारियों के साथ जब जुलाई में अनलॉक शुरू हुआ तो कम पैसे में काम करने वालों की भीड़ लग गई।
लॉकडाउन लगने के कुछ दिनों बाद ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया यानी RBI ने ब्याज दरों में कटौती शुरू कर दी थी। लगातार लोन सस्ता किया गया। RBI ने अगस्त 2020 में रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया। इससे कंपनियों की कॉस्ट ऑफ फाइनेंस यानी ब्याज पर होने वाला खर्च कम हो गया। इन्हीं तीन कारणों से किसी भी कंपनी को फायदा या नुकसान होता है।
नवंबर-दिसंबर से बदलने लगे थे हालात, अब बुरी हालत
2020 के आखिरी दो महीनों में ही कंपनियों की हालत बिगड़नी शुरू हो गई थी। फैक्ट्रियां शुरू हो गईं। कच्चे माल की जरूरत बढ़ी। चीन में काम शुरू हुआ और वहां भी कच्चे माल की जरूरत बढ़ी। ऐसे में तेजी से कच्चे माल का दाम बढ़ गया। दिसंबर 2020 में ही जून-जुलाई की तुलना में कच्चे माल जैसे स्टील से लेकर तांबे और एल्युमीनियम से लेकर जस्ते तक के दाम 5-11% बढ़ गए। कच्चे तेल का भाव 16.5% बढ़ गया। सोया तेल और पाम तेल की कीमतें 9-13% बढ़ीं।
भारत का निर्माण क्षेत्र सीमेंट के दामों से काफी प्रभावित होता है। CLSA की एक रिपोर्ट के अनुसार सीमेंट हर महीने प्रति बोरी 5 से 15 रुपए बढ़ रहे हैं। पेट्रोल मार्च 2020 में 70 रुपए लीटर के इर्द-गिर्द था। अब ये 93 रुपए प्रति लीटर जा पहुंचा है। ब्लू स्टार के मैनेजिंग डायरेक्टर बी त्यागराजन बताते हैं कि 1.5 टन क्षमता वाली एयर कंडीशनर में लगने वाले कच्चे माल के दाम 2% तक बढ़ चुके हैं।
कोरोना के बाद सबसे ज्यादा तेजी दवाई के कच्चे माल के भाव में आई है। पैरासिटामॉल पाउडर जो पहले 350 रुपए किलो था, वह अब 500 रुपए हो गया है। निमुस्लाइड भी 700 रुपए से बढ़कर 1400 रुपए किलो पर जा पहुंचा है। यही नहीं दवाई पैक करने वाले पीवीसी पेपर के दाम 80-100% और गत्ते के दाम 25% बढ़ गए हैं।
दूसरी ओर 7 जनवरी को रिलीज RBI की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट (FSR) के मुताबिक सितंबर, 2020 से सितंबर, 2021 के बीच NPA दोगुना हो सकता है। यानी NPA के 7.5% से बढ़कर 13.5% हो जाने की आशंका है। खराब परिस्थिति में यह 14.8% तक भी पहुंच सकता है। बढ़ते NPA में सरकारी बैंकों का हिस्सा सबसे ज्यादा होगा। खराब परिस्थिति में यह 17.6% तक भी पहुंच जाएगा। ऐसे में बैंकों पर दबाव है कि वो ब्याज दरों में सुधार करें। इसका सीधा असर कंपनियों के खर्चे पर पड़ेगा। अब कंपनियों के पास नुकसान से बचने के दो ही खास उपाय हैं, और दोनों मिडिल क्लास के लिए घातक हैं।
कंपनियां नुकसान की भरपाई कर्मचारियों के वेतन से कर सकती हैं
वरिष्ठ स्तंभकार भरत झुनझुनवाला एक लेख में लिखते हैं कि कंपनियों के नुकसान के वक्त छंटनी, कम कर्मचारियों से अधिक काम, पे-कट, बोनस और वेतन न बढ़ने जैसी बातें आम हैं। साथ ही टैक्स एक्सपर्ट गौरी चड्ढा कहती हैं कि अब की बजट में सबसे बड़ी चुनौती मध्यम वर्ग को बचाने की होगी। मौजूदा हालात में मिडिल क्लास पर मार पड़ने के बहुत ज्यादा आसार हैं।
महंगाई भी बढ़ेगी, ऑटोमोबाइल क्षेत्र पर प्रभाव दिखने शुरू
कर्मचारियों के वेतन के अलावा कंपनियों के पास नुकसान की भरपाई का दूसरा रास्ता भी होता है और वह ये है कि सामान की कीमत बढ़ा दी जाए। कोरोना के बाद से वाहनों के रेट भी लगातार बढ़ रहे हैं। 8 जनवरी को महिंद्रा एंड महिंद्रा ने अपनी सभी कॉमर्शियल और पर्सनल गाड़ियों के दाम 1.9% बढ़ा दिए। दिसंबर में ही मारुति सुजुकी, फोर्ड, रेनॉ, होंडा और टाटा मोटर्स अपनी कारों के दाम बढ़ाने का ऐलान कर चुकी हैं।
पारले प्रोडक्ट्स के मयंक शाह ने हाल ही में कहा था, ‘बीते तीन-चार महीने में खाद्य तेल के दाम तेजी से बढ़े हैं। इससे हमारी मार्जिन और लागत दोनों बहुत ज्यादा प्रभावित हो रही हैं। हालांकि, हमने अभी अपने प्रोडक्ट के दाम नहीं बढ़ाए हैं, लेकिन यही हालात बने रहे तो हम दाम बढ़ाएंगे।’ इसी तरह डाबर इंडिया के CFO ललित मलिक कहते हैं, ‘बीते कुछ समय से आंवला और दूसरे कच्चे माल के दाम ऊपर गए हैं। हम बहुत कोशिश कर रहे हैं कि हमें दाम न बढ़ाने पड़ें। फिर भी कुछ प्रोडक्ट के दाम में हमें आवश्यक बढ़ोतरी करनी पड़ सकती है।’