- शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में ऐसे प्रकरणों को बताया- ‘एक नाकाम लड़ाई’
- ‘सामना’ ने निर्भया केस के आरोपियों की सजा को लेकर कानून पर साधा निशाना
महाराष्ट्र के हिंगणघाट में जिंदा जलाई गई 24 वर्षीय लेक्चरर की मौत को लेकर शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में कहा गया है कि हमारा कानून नपुंसक बन चुका है. सामना के संपादकीय में कहा गया है कि निर्भया केस से पूरा देश दहल उठा था. ऐसे अभियुक्तों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान है लेकिन इस तरह की मानसिकता हमारे समाज में अब तक मौजूद है. रेप केस में भी फांसी दी जा सकती है लेकिन हिंगणघाट जैसे कितने अपराधों में मौत की सजा दी गई है?
‘सामना’ में लिखा गया है- ‘निर्भया केस में फांसी की तारीख भी तय हो चुकी थी. फंदा भी तैयार हो चुका था लेकिन अभी तक दोषियों को फांसी नहीं दी जा सकी. दोषियों की दया याचिका राष्ट्रपति की ओर से ठुकरा दिए जाने के बावजूद उनके वकील तमाम कानूनी दांवपेंच चल रहे हैं.
संपादकीय के मुताबिक ‘पिछले दिनों हैदराबाद में भी एक युवती से सामूहिक बलात्कार करने के पश्चात उसे जला दिया गया था. बाद में इस कांड के आरोपी हैदराबाद पुलिस की कार्रवाई में मारे गए. हर बार की तरह तथाकथित मानवतावादियों लोगों ने इस कार्रवाई पर उंगली उठाने का प्रयास किया लेकिन देशभर से इस पुलिस कार्रवाई का स्वागत किया गया.
आगे उसमें कहा गया, ‘बलात्कारियों को सजा होने के बावजूद उसे कानूनी रूप से अमली जामा पहनाने में वक्त लग जाता है, ये बात अब समाज की सहनशक्ति के बाहर हो चुकी है. इसलिए अब बलात्कारियों को हैदराबाद पुलिस की तरह ही ‘सजा’ मिले, ऐसी जनभावना बन चुकी है. हैदराबाद पुलिस का समर्थन करने की नौबत हिंगणघाट प्रकरण में नागरिकों पर न आए, न्याय-व्यवस्था और केंद्र सरकार से यही निवेदन है, ऐसी प्रतिक्रिया प्रसिद्ध अभिनेता मकरंद अनासपुरे ने व्यक्त की है. इसे सांकेतिक ही कहा जाना चाहिए.’
‘सामना’ में कहा गया है कि हिंगणघाट केस को फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाया जाएगा लेकिन समाधान और आखिरी परिणाम क्या है? क्या उन्हें फांसी पर चढ़ाया जाएगा?