सिल्क्यारा टनल के अंदर मजदूरों का पहला VIDEO:मजदूरों ने कैसे बिताए 17 दिन; जमीन पर सोए, वाटरप्रूफिंग शीट ओढ़ी, झरने का पानी पिया
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सिल्क्यारा टनल के अंदर 17 दिन तक 41 मजदूर फंसे रहे। उन्हें 28 नवंबर की शाम को टनल से बाहर निकाला गया। इस रेस्क्यू के तीन दिन बाद 2 वीडियो सामने आए हैं, जिनमें देखा जा सकता है कि मजदूरों ने टनल में ये 17 दिन कैसे बिताए। सुरंग में फंसे एक मजदूर ने ही ये वीडियो बनाए हैं।
पहला वीडियो मजदूरों के टनल में फंसने के 8वें दिन का है, जबकि दूसरा वीडियो 13वें दिन का है। इन वीडियो में देखा जा सकता है कि मजदूर सुरंग के अंदर 2400 मीटर के स्ट्रेच में कैसे रहे, कैसे वाटरप्रूफिंग को बिछाए जाने वाले जियो टैक्सटाइल को ओढ़कर सोए और सरकार ने क्या-क्या राहत सामग्री भेजी।
पहला वीडियो: सुरंग में मजदूरों के फंसने का 8वां दिन यानी 19 नवंबर
वीडियो शुरू होता है तो 3 मजदूर दिखाई देते हैं। वीडियो रिकॉर्ड कर रहा मजदूर वह पाइप दिखाता है जिससे खाना आता था। फिर वह सबका बिस्तर दिखाता है, जिसके पास कुछ पैकेट्स में खाना और पीने का पानी रखा है। इसके बाद मजदूर उस तरफ ले जाता है, जहां सुरंग में मलबा गिरा और वे लोग वहां फंस गए।
वहां एक हाईड्रॉलिक मशीन नजर आती है। मजदूर बताता है कि वे लोग सुरंग के अंदर से इस मशीन पर बैठकर बाहर आ रहे थे, तब ऊपर से मलबा गिरा और वे लोग फंस गए। टनल के अंदर दो लेन की रोड है। बीच में ऊंची दीवार है। इसी दीवार के किनारे कई मजदूरों ने अपना बिस्तर लगा रखा है। वहां एक फोर-व्हीलर भी था, जिसे लेकर मजदूर ने बताया कि पीछे झरने का ताजा पानी है, जहां हम इस गाड़ी से पानी लाने जाते हैं।
दूसरा वीडियो: सुरंग में मजदूरों के फंसने का 13वां दिन यानी 24 नवंबर
वीडियो की शुरुआत होती है फलों के ढेर से, जो सरकार ने पाइप के जरिए मजदूरों तक भेजे थे। इसके बाद वीडियो रिकॉर्ड करने वाले मजदूर ने मंजन, ब्रश और तौलिए दिखाए जो पाइप के जरिए भेजे गए थे। इसके अलावा वो बोतलें भी दिखाईं जिनमें खाना भरकर भेजा गया था।
अब देखिए कि इन दो दिन सुरंग के बाहर क्या हो रहा था…
सुरंग के अंदर मजदूरों का यह वीडियो 19 नवंबर और 24 नवंबर का है। हम आपको बताते हैं कि इन दोनों दिन सुरंग के बाहर क्या माहौल था और रेस्क्यू का काम कितना हो गया था।
19 नवंबर, रविवार: टनल धंसने का 8वां दिन। सिल्क्यारा की तरफ से ड्रिलिंग का काम शुक्रवार से रुका हुआ था, जो इस दिन दोपहर 4 बजे शुरू हुआ। यहां से खाना अंदर भेजने के लिए एक और छोटा पाइप ड्रिल किया जाना शुरू हुआ। इसके अलावा एक दिन पहले यानी 18 नवंबर को BRO ने सिलक्यारा टनल के मुहाने से 350 मीटर आगे वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए रास्ता बनाने का काम शुरू किया। हालांकि वर्टिकल ड्रिलिंग बहुत बाद तक नहीं की गई।
24 नवंबर, शुक्रवार: टनल धंसने का 13वां दिन। एक दिन पहले यानी 23 नवंबर को अमेरिकी ऑगर ड्रिल मशीन तीन बार रोकनी पड़ी। देर शाम ड्रिलिंग के दौरान तेज कंपन होने से मशीन का प्लेटफॉर्म धंस गया। इसके बाद ड्रिलिंग अगले दिन की सुबह तक रोक दी गई।
शुक्रवार को ड्रिलिंग का काम शुरू हुआ तो ऑगर मशीन के रास्ते में स्टील के पाइप आ गए, जिसके चलते पाइप मुड़ गया। स्टील के पाइप और टनल में डाले जा रहे पाइप के मुड़े हुए हिस्से को बाहर निकाल लिया गया। ऑगर मशीन को भी नुकसान हुआ था, उसे भी ठीक कर लिया गया। वहीं, NDRF ने मजदूरों को निकालने के लिए मॉक ड्रिल की।
टनल धंसने के 8वें और 13वें दिन के बीच क्या-क्या हुआ…
20 नवंबर: इंटरनेशनल टनलिंग एक्सपर्ट ऑर्नल्ड डिक्स ने उत्तरकाशी पहुंचकर सर्वे किया और वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए 2 स्पॉट फाइनल किए। मजदूरों को खाना देने के लिए 6 इंच की नई पाइपलाइन डालने में सफलता मिली।
21 नवंबर: एंडोस्कोपी के जरिए कैमरा अंदर भेजा गया और फंसे हुए मजदूरों की तस्वीर पहली बार सामने आई। उनसे बात भी की गई। सभी मजदूर ठीक हैं। मजदूरों तक 6 इंच की नई पाइपलाइन के जरिए खाना पहुंचाने में सफलता मिली। इसलिए 24 नवंबर के वीडियो में वो बोतलें दिखाई दीं, जिनमें भरकर खिचड़ी और दलिया भेजा जा रहा था। इसी दिन ऑगर मशीन से ड्रिलिंग शुरू हुई।
22 नवंबर: मजदूरों को नाश्ता, लंच और डिनर भेजने में सफलता मिली। सिलक्यारा की तरफ से ऑगर मशीन से 15 मीटर से ज्यादा ड्रिलिंग की गई। मजदूरों के बाहर निकलने के मद्देनजर 41 एंबुलेंस मंगवाई गईं। डॉक्टरों की टीम को टनल के पास तैनात किया गया। चिल्यानीसौड़ में 41 बेड का हॉस्पिटल तैयार करवाया गया।
23 नवंबर: अमेरिकी ऑगर ड्रिल मशीन से ड्रिलिंग की जा रही थी, लेकिन तेज कंपन होने से मशीन का प्लेटफॉर्म धंस गया। इसके बाद ड्रिलिंग अगले दिन की सुबह तक रोक दी गई।