उत्तराखंड आपदा/ चमोली से लापता 136 लोगों को मृत घोषित करेगी सरकार; ऋषिगंगा के ऊपर बनी झील का मुहाना चौड़ा किया गया

राज्य सरकार के मुताबिक, चमोली और आस-पास के इलाकों में लगातार तलाश जारी है। बड़ी संख्या में लोगों के शव बरामद हुए हैं, जबकि कुछ लोगों को सुरक्षित भी निकाला गया। इसके बावजूद अभी तक जिन लोगों की कोई जानकारी नहीं मिल रही है, उन्हें अब मृत घोषित कर दिया जाएगा।

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उत्तराखंड आपदा का आज 17वां दिन है। अब तक 70 लोगों के शव और 29 मानव अंग मिल चुके हैं। 136 लोग लापता हैं। अब राज्य सरकार इन सभी लापता लोगों को मृत घोषित करने की तैयारी में है। जल्द ही इसके लिए आदेश जारी कर दिया जाएगा। ऐसा होता है तो इस आपदा में जान गंवाने वालों की संख्या बढ़कर 206 हो सकती है।

राज्य सरकार के मुताबिक, चमोली और आस-पास के इलाकों में लगातार तलाश जारी है। बड़ी संख्या में लोगों के शव बरामद हुए हैं, जबकि कुछ लोगों को सुरक्षित भी निकाला गया। इसके बावजूद अभी तक जिन लोगों की कोई जानकारी नहीं मिल रही है, उन्हें अब मृत घोषित कर दिया जाएगा।

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ऋषिगंगा के ऊपर बनी झील का मुंह चौड़ा किया गया
चमोली में रैणी गांव के पास ऋषिगंगा नदी के ऊपर ग्लेशियर टूटने से बनी आर्टिफिशयल झील से अभी भी बड़ा खतरा बना हुआ है। झील का मुंह छोटा होने के चलते पानी का बहाव काफी धीमी गति से हो रहा था। इसके चलते झील टूटने का खतरा बन गया था। ITBP के जवानों ने झील के मुंह को करीब 15 फीट चौड़ा कर दिया है। यहां पानी के जमाव के चलते दबाव बनने लगा था। राज्य आपदा रिसपॉन्स टीम (SDRF) के कमांडेंट नवनीत भुल्लर का कहना है कि अभी झील के मुंह को और चौड़ा करने का काम चल रहा है।

ITBP और SDRF की टीम झील पर लगातार नजर बनाए रखी हुई है।
ITBP और SDRF की टीम झील पर लगातार नजर बनाए रखी हुई है।

झील में करीब 4.80 करोड़ लीटर पानी है
ऋषि गंगा के ऊपर ग्लेशियर टूटने से बनी आर्टिफिशियल झील का इंडियन नेवी, एयरफोर्स और एक्सपर्ट की टीम ने मुआयना भी किया। डाइवर्स ने झील की गहराई मापी है। इस झील में करीब 4.80 करोड़ लीटर पानी होने का अनुमान है।

विशेषज्ञों के मुताबिक, ये झील करीब 750 मीटर लंबी है और आगे बढ़कर संकरी हो रही है। इसकी गहराई आठ मीटर है। नेवी के डाइवर्स ने हाथ में ईको साउंडर लेकर इस झील की गहराई मापी। अगर ये झील टूटती है तो काफी ज्यादा नुकसान हो सकता है। एक्सपर्ट के मुताबिक, ये झील केदारनाथ के चौराबाड़ी जैसी है। 2013 में केदारनाथ के ऊपरी हिस्से में 250 मीटर लंबी, 150 मीटर चौड़ी और करीब 20 मीटर गहरी झील के टूटने से आपदा आ गई थी। इस झील से प्रति सेकंड करीब 17 हजार लीटर पानी निकला था।

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सेंसर भी लगाया
इस झील में होने वाली सारी हलचल पर नजर रखने के लिए विशेषज्ञों की टीम लगाई गई है। इसके अलावा ऋषिगंगा नदी में सेंसर भी लगाया गया है, जिससे नदी का जलस्तर बढ़ते ही अलार्म बज जाएगा। SDRF ने कम्युनिकेशन के लिए यहां एक डिवाइस भी लगाई है।

क्या हुआ था?
चमोली के तपोवन इलाके में रविवार 7 फरवरी की सुबह करीब साढ़े 10 बजे ग्लेशियर टूटकर ऋषिगंगा में गिर गया। इससे नदी का जल स्तर बढ़ गया। यही नदी रैणी गांव में जाकर धौलीगंगा से मिलती है। जैसे ही ऋषिगंगा का पानी धौलीगंगा में मिला रफ्तार के साथ जलस्तर भी बढ़ गया। नदियों के किनारे बसे घर बह गए।

ऋषिगंगा नदी के किनारे स्थित रैणी गांव में बना ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट तबाह हो गया। यहीं पर जोशीमठ मलारिया हाईवे पर बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन का बनाया ब्रिज भी टूट गया। ऋषिगंगा का पानी जहां धौलीगंगा से मिलता है, वहां भी जलस्तर बढ़ गया। पानी NTPC प्रोजेक्ट में घुस गया। इस वजह से गांव को जोड़ने वाले दो झूला ब्रिज बह गए। इसमें 205 लोगों के लापता होने का मामला दर्ज हो चुका है।

आधा किमी लंबा हैंगिंग ग्लेशियर बना तबाही का कारण, ऐसे सामने आई असल वजह

आधा किमी लंबा हैंगिंग ग्लेशियर बना तबाही का कारण।

रविवार सात फरवरी की सुबह ऋषिगंगा कैचमेंट क्षेत्र में आई जलप्रलय का कारण रौंथी पर्वत का एक हैंगिंग ग्लेशियर (सर्प ग्लेशियर) बना। इस बात की पुष्टि उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट ने की। इस निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए उन्होंने डॉ. बिष्ट के सैन फ्रांसिस्को की एजेंसी ‘प्लेनेट’ के सेटेलाइट डेटा का सहारा लिया। तबाही की असल वजह पुष्ट हो जाने के बाद इसकी जानकारी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत व मुख्य सचिव ओम प्रकाश को भी दी गई है। नई जानकारी सामने आने के बाद सरकार ने यूसैक को रौंथी पर्वत पर सेटेलाइट के माध्यम से निगरानी करने के निर्देश दिए हैं।

यूसैक निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट के मुताबिक, ऋषिगंगा नदी के बायें छोर पर रौंथी गदेरा मिलता है, जो रौंथी पर्वत से आता है और इसका स्रोत रौंथी ग्लेशियर ही है। इस पर्वत पर करीब 5600 मीटर की ऊंचाई पर करीब आधा किलोमीटर लंबा हैंगिंग ग्लेशियर था। जो एक चट्टान पर स्थित था और 82 से 85 डिग्री का कोण लेकर नीचे की तरफ लटका हुआ था।

डॉ. बिष्ट ने बताया कि छह फरवरी की रात को हैंगिंग ग्लेशियर वाली भारी-भरकम चट्टान नीचे खिसक गई और उसके साथ ग्लेशियर का अधिकांश हिस्सा भी नीचे आ गिरा। रौंथी गदेरे से भारी मात्रा में मलबा लेकर यह ग्लेशियर व बोल्डर करीब 11 किलोमीटर की दूरी तय कर 3800 मीटर की ऊंचाई पर ऋषिगंगा नदी में जा गिरे। यहां पर बर्फ व मलबा जमा हो गए और एक कृत्रिम झील का निर्माण हो गया। सात फरवरी की सुबह भारी दबाव के चलते यह झील टूट गई और मलबे सहित निचले क्षेत्रों में तबाही बरपाते हुए आगे बढ़ने लगी।

चट्टान के साथ ग्लेशियर टूटने से भारी कंपन्न उत्पन्न हुआ

यूसैक निदेशक ने यह भी आकल किया कि रौंथी पर्वत की चट्टान टूटने के साथ गिरे हैंगिंग ग्लेशियर से क्षेत्र में भारी कंपन्न उत्पन्न हुआ। इसके चलते रौंथी गदेरे के दोनों छोर पर जो ताजा बर्फ जमी थी, वह भी नीचे खिसकी और ऋषिगंगा में जा मिली। इससे नदी में बड़े बोल्डर के साथ अतिरिक्त पानी आ गया था।

वाडिया ने भी हैंगिंग ग्लेशियर को माना वजह

ऋषिगंगा क्षेत्र में पहुंची वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की टीम ने मंगलवार को आपदाग्रस्त क्षेत्रों का जमीनी सर्वे करने के साथ हैली सर्वे भी किया। वाडिया संस्थान के निदेशक डॉ. कालाचांद साईं के मुताबिक, टीम में शामिल विज्ञानी डॉ. समीर तिवारी, डॉ. मनीष मेहता आदि ने सर्वे के बाद प्रारंभिक जानकारी भेजी है। जानकारी के मुताबिक जलप्रलय का कारण रौंथी पर्वत का हैंगिंग ग्लेशियर ही बना है। उन्होंने बताया कि आधा किलोमीटर तक लंबाई के साथ ही इसकी मोटाई करीब 50 मीटर थी। अध्ययन अभी जारी है, जल्द कुछ और प्रमाण भी खोजे जाएंगे। वहीं, इससे पहले इसरो के भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (आइआइआरएस) ने एवलांच को जलप्रलय की वजह बताया था। हालांकि, उस जानकारी में स्पष्ट नहीं किया गया था कि किस ग्लेशियर से हिमस्खलन हुआ है।

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