तालिबान पर पलटा संयुक्त राष्ट्र: आतंकवाद पर कहा था- तालिबान को दूसरे देश में बैठे आतंकियों का साथ नहीं देना चाहिए; ताजा रिपोर्ट में तालिबान का जिक्र नहीं

तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़े के बाद इस संगठन पर दुनिया की राय में कोई तब्दीली आएगी या नहीं यह तो वक़्त ही बताएगा लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के एक बयान के बाद यह माना जाने लगा है कि इस संगठन को लेकर अब गंभीरता बरती जा रही है.

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नई दिल्ली. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने काबुल एयरपोर्ट पर हुए हमले के बारे में अपना बयान जारी किया है। इस बयान में से परिषद ने तालिबान का नाम हटा दिया है। इससे पहले जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया था, तब के बयान और इस नए बयान में तालिबान को लेकर UN का रवैया बदला हुआ लग रहा है।

16 अगस्त को जारी किए बयान में सुरक्षा परिषद ने चेतावनी देते हुए कहा था- न तालिबान को, न किसी अफगानी समूह को और न ही किसी व्यक्ति को किसी दूसरे देश के अंदर मौजूद आतंकियों का सहयोग करना चाहिए।

अब नए बयान में से परिषद ने तालिबान का नाम हटा दिया है। काबुल एयरपोर्ट पर हुए हमले के बाद सुरक्षा परिषद ने बयान जारी करके कहा- किसी अफगानी समूह को किसी देश में आतंक फैला रहे आतंकियों का सहयोग नहीं करना चाहिए।

भारत ने पकड़ी UN की गलती
इस बयान पर भारत ने ही साइन करके इसे जारी किया है। भारत 1 अगस्त को एक महीने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष बना था। पिछले साल अप्रैल तक UN में भारत के स्थायी प्रतिनिधि रहे सयैद अकबरुद्दीन ने सुरक्षा परिषद के बयान में आए फर्क को सामने रखा।

सैयद अकबरुद्दीन ने एक ट्वीट करके सुरक्षा परिषद के दोनों बयानों की तुलना की है।
सैयद अकबरुद्दीन ने एक ट्वीट करके सुरक्षा परिषद के दोनों बयानों की तुलना की है।

तालिबान को लेकर अपनी तय नहीं की है रणनीति भारत ने
19 अगस्त को जब भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर से पूछा गया कि वे तालिबानी हुकूमत को कैसे देखते हैं और इससे कैसे डील करेंगे तो उन्होंने कहा कि तालिबानी सरकार अभी शुरुआती चरणों में है और अभी हमारा लक्ष्य अफगानिस्तान में मौजूद भारतीयों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है।

भारत ने काबुल से अपने मिशन स्टाफ को पहले ही निकाल लिया है। पिछले हफ्ते तालिबान अफगानिस्तान में मौजूद भारत के दो वाणिज्य दूतावास में घुस गए थे। वहां उन्होंने दस्तावेज ढूंढे और पार्किंग में लगी कारों को ले गए। इसे लेकर भारत सरकार के सूत्रों ने चिंता जाहिर की थी कि तालिबान की ऐसी गतिविधियों का मतलब है कि वह दुनिया को जो भरोसा दिलाता रहता है, वह उसके हिसाब से काम नहीं कर रहा है।

द इंडियन एक्सप्रेस अख़बार की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, सुरक्षा परिषद ने अपने एक पुराने बयान में तब्दीली करते हुए एक पैराग्राफ़ में संदर्भ के तौर पर इस्तेमाल किए गए ‘तालिबान’ शब्द को हटा दिया है. संयुक्त राष्ट्र में भारत के पूर्व स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने तो UNSC के दोनों बयानों के स्क्रीनशॉट शेयर किया है और ‘टी’ शब्द के ग़ायब होने की बात कही है.

दरअसल, तालिबान के काबुल पर नियंत्रण के एक दिन बाद 16 अगस्त को संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने UNSC की ओर से बयान जारी करते हुए कहा था, “सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने अफ़ग़ानिस्तान में आतंकवाद से लड़ने के महत्व की पुष्टि की है और यह भी माना है कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अफ़ग़ानिस्तान के किसी भी क्षेत्र को किसी भी देश को धमकाने या उस पर हमले के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. और यहाँ तक कि तालिबान या किसी भी अफ़ग़ान समूह या किसी भी व्यक्ति को किसी अन्य देश में सक्रिय आतंकी का समर्थन नहीं करना चाहिए.”

ग़ौरतलब है कि अगस्त महीने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता भारत के पास ही है और उसने ही इस बयान पर हस्ताक्षर किए हैं. इसके बाद से यह माना जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में तालिबान अब काफ़ी समय तक अलग-थलग नहीं पड़ने वाला है.

काबुल एयरपोर्ट पर बम धमाकों में 150 से अधिक लोगों के मारे जाने के एक दिन बाद 27 अगस्त को UNSC अध्यक्ष तिरुमूर्ति ने एक बार फिर परिषद की ओर से बयान जारी किया और इसमें हमले की निंदा की थी. इस बयान में 16 अगस्त वाले बयान का भी ज़िक्र था लेकिन इसमें ‘तालिबान’ का कहीं कोई ज़िक्र नहीं था.

इसमें लिखा था, “सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने अफ़ग़ानिस्तान में आतंकवाद का मुक़ाबला करने के महत्व को दोहराया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अफ़ग़ानिस्तान के क्षेत्र का इस्तेमाल किसी भी देश को धमकी देने या हमला करने के लिए न हो, और किसी भी अफ़ग़ान समूह या व्यक्ति को किसी भी देश के क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादियों का समर्थन नहीं करना चाहिए.”  तालिबान को संदर्भ के तौर पर हटाना दिखाता है कि भारत समेत UNSC के सदस्य तालिबान को एक स्टेट एक्टर के रूप में देख रहे हैं.

सोशल मीडिया पर क्या है प्रतिक्रिया

इस मामले के सामने आने के बाद जाने-माने पूर्व राजनयिकों और पत्रकारों ने सोशल मीडिया पर अपनी राय रखी है.

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी राजदूत रहे सैयद अकबरुद्दीन ने ट्वीट करते हुए कहा है कि “कूटनीति में एक पखवाड़ा काफ़ी लंबा समय होता है. ‘टी’ शब्द ग़ायब है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 16 और 27 अगस्त के बयान की तुलना कीजिए.”

पत्रकार सुहासिनी हैदर ने भी इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट को रिट्वीट करते हुए लिखा है, “UNSC में भारत की निगरानी में आतंक के संदर्भ में तालिबान शब्द हटा दिया गया. भारत की अध्यक्षता वाली 1988 तालिबान प्रतिबंध समिति में क्या होता है, यह देखना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है.”

वहीं पूर्व भारतीय विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने भी इस मसले पर ट्वीट किया है कि “यह आश्चर्य की बात नहीं है कि अमेरिका, जिसने स्पष्ट रूप से UNSC पर बयान के लिए ज़ोर दिया है, उसने ख़ुद तालिबान को हवाई अड्डे पर हमले के लिए दोषमुक्त कर दिया है और IS-K को ज़िम्मेदार ठहराया है. सेंट्रल कमांड के प्रमुख कह चुके हैं ‘टी’ अमेरिकी सुरक्षाबलों को निकलने में सुरक्षा दे रहा है. अमेरिका ‘टी’ की प्रशंसा कर रहा है जिसने की नैतिक रूप से उसे ही चकमा दिया है.”

द इंडियन एक्सप्रेस अख़बार ने अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि बयान पर हस्ताक्षर करने का फ़ैसला ‘ज़मीन पर बदलती हक़ीक़त’ को ध्यान में रखकर लिया गया है.

तालिबान के देश पर क़ब्ज़ा करने के बाद विदेशी लोगों के अलावा देश के कई नागरिक भी देश छोड़कर भागने की उम्मीद में हैं जबकि 31 अगस्त को अमेरिकी सेना को अफ़ग़ानिस्तान हर हालत में छोड़ देना है. अमेरिका का कहना है कि उसने 15 अगस्त से अब तक एक लाख से ज़्यादा लोगों को अफ़ग़ानिस्तान से निकाला है. UNSC के पहले बयान के एक दिन बाद 17 अगस्त को काबुल में भारतीय दूतावास को ख़ाली कर दिया गया था और उसके कर्मचारी लौट आए थे.

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