नई दिल्ली। तंबाकू उद्योग के दखल पर लगाम लगाने के मकसद से केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के लिए आचार संहिता बनाई है। लेकिन, 10 साल की देरी से आई इस नीति में तंबाकू उद्योग से जुड़े दूसरे मंत्रालयों को नहीं शामिल किया है। यानी इन मंत्रालयों के अधिकारियों की इस उद्योग से मिलीभगत और काली कमाई जारी रहेगी। ऐसे में सवाल यह है कि क्या नई नीति सफल हो सकेगी?
कैंसर, फेफड़ों और दिल की बीमारी की मुख्य वजहों में तंबाकू एक है। भारत में इसे कई और गंभीर बीमारियों की वजह माना जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, तंबाकू देश में हर साल करीब 13 लाख लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार है। भारतीय तंबाकू करीब 100 देशों में निर्यात किया जाता है। भारत आज दुनिया में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा तंबाकू उत्पादक और निर्यातक देश है।
ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे के एक अनुमान के मुताबिक, देश के साढ़े 27 करोड़ यानी 15 साल से ज्यादा उम्र के साढ़े 28% लोगों को धूमपान की लत है। तंबाकू के सेवन से होने वाली बीमारियों के कारण भारत को अरबों रुपए का नुकसान हो रहा है। इसलिए सरकार द्वारा तंबाकू उद्योग से जुड़ी आचार संहिता बनाना स्वागत योग्य है।
सरकार ने क्या कोड ऑफ कंडक्ट बनाया?
- भारत सरकार ने तंबाकू उद्योग से जुड़ा जो कोड ऑफ कंडक्ट बनाया है, वो सिर्फ स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अधिकारियों पर लागू होगा।
- अधिकारी तंबाकू उद्योग या उनके प्रतिनिधियों के साथ किसी किस्म का व्यवसायिक, सार्वजनिक, आधिकारिक गठजोड़ नहीं कर सकेंगे।
- यहां तक कि तंबाकू उद्योग के कार्यक्रमों में न तो बतौर मेहमान शामिल होंगे, न ही उनके द्वारा प्रायोजित किसी आयोजन का हिस्सा बनेंगे।
सिर्फ एक विभाग को क्यों शामिल किया?
देर से ही सही ये पहल जरूरी थी, लेकिन ये साफ नहीं है कि इसके दायरे में सिर्फ स्वास्थ्य विभाग ही क्यों हैं? तंबाकू उद्योग के संपर्क तो वाणिज्य, वित्त और कृषि जैसे अन्य विभागों और मंत्रालयों तक फैले हुए हैं। देश में तंबाकू उद्योग को नियंत्रित करने वाला तंबाकू बोर्ड भी केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत आता है।
आचार संहिता बनाने में लग गए दस साल
मशहूर पत्रकार और शोधकर्ता अनु भुयान के मुताबिक 2010 में बंगलुरू की एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ और उसके विशेषज्ञ उपेन्द्र भोजानी ने ये मुद्दा उठाया था। उन्होंने तंबाकू कंपनियों के एक तत्कालीन ग्लोबल इवेंट में सरकारी भागीदारी का मुद्दा उठाते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। इस पर सरकार को न सिर्फ इवेंट से हाथ खींचने पड़े बल्कि कोर्ट में अंडरटेकिंग भी देनी पड़ी थी। सरकार ने कोर्ट में कहा था कि सरकारी कामकाज में तंबाकू उद्योग का दखल और प्रभाव रोकने के लिए एक आचार संहिता बनाई जाएगी। लेकिन इसे आने में दस साल लग गए और यह आयी भी, तो सिर्फ स्वास्थ्य मंत्रालय के लिए।
सरकार ने आचार संहिता में किन बातों का रखा है ध्यान?
- वैसे भारत सरकार ने स्वास्थ्य मंत्रालय की आचार संहिता विश्व स्वास्थ्य संगठन के फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल (FCTC) को ध्यान में रखते हुए तैयार की है। भारत भी 181 देशों के साथ इस संधि में शामिल हैं।
- जानकारों का कहना है कि नई आचार संहिता एक अच्छी शुरुआत है, लेकिन इसका दायरा बढ़ाया जाना चाहिए और उद्योग जगत से होने वाली सरकारी प्रतिनिधियों की कथित मुलाकातों का मकसद और ताैर-तरीका स्पष्ट और सार्वजनिक होना चाहिए।
भारत तंबाकू उद्योग हस्तक्षेप इंडेक्स में रैंक सुधारना चाहता है
- सरकार द्वारा नीति बनाने के पीछे की वजह वैश्विक तंबाकू उद्योग हस्तक्षेप इंडेक्स में अपनी रैंक सुधारने की चाहत भी है। नवंबर में जारी हुए इस साल के इंडेक्स में भारत को 100 में से 61 अंक मिले हैं। 2019 में 69 अंक थे।
- जितने ज्यादा अंक होंगे उसका अर्थ है सरकारी कामकाज में तंबाकू उद्योग का उतना ज्यादा दखल। यानी एक लिहाज से देखें तो भारत के 61 नंबर इशारा करते हैं कि यहां सरकारी मशीनरी में तंबाकू उद्योग और उसकी लॉबी की अच्छी खासी आवाजाही है।
- भारत सरकार के प्रयासों की सराहना भी की गई है। विशेषकर 2019 में ई-सिगरेट को भारत में बैन करने के कानून पर तंबाकू उद्योग की प्रतिक्रिया और दबावों के आगे न झुकने को लेकर।
तंबाकू उद्योग का सरकारी गठजोड़
इंडेक्स में ऐसे कई उदाहरण भी दिए गए हैं, जिनमें तंबाकू उद्योग के अधिकारियों के साथ भारत सरकार के अधिकारियों की मुलाकातें और बैठकें हुई हैं या सरकार का उद्योग से कुछ न कुछ गठजोड़ दिखा है।
सिगरेट-सिगार से लेकर अगरबत्ती-धूप तक बनाने वाली आईटीसी लिमिटेड और अन्य तंबाकू कंपनियों में जीवन बीमा निगम के शेयर हैं। पूर्व सरकारी उच्चाधिकारी तंबाकू कंपनियों के बोर्डों में बतौर स्वतंत्र निदेशक मौजूद हैं। जैसे पूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव, पूर्व राजदूत मीरा शंकर का नाम आईटीसी की वेबसाइट पर देखा जा सकता है।
बीड़ी पर GST जैसे करों की छूट के रूप में सरकार द्वारा तंबाकू उद्योग को हासिल रियायतों का जिक्र भी इंडेक्स में किया गया है।
एक तरफ मौत, दूसरी तरफ कारोबार
इंडेक्स की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि पूरी दनिया में हर साल 80 लाख मौतों के लिए जिम्मेदार तंबाकू उद्योग ने कोविड-19 के दौरान भारत सहित पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर डोनेशन दिया। पीपीई किट से लेकर चिकित्सा उपकरण और हाईजीन उत्पाद तक बांटे। अब CSR के नाम पर होने वाली कार्रवाइयों में आचार संहिता का पालन कैसे सुनिश्चित कराया जाएगा, य़ह सोचने की बात है।
पाबंदियों के बीच कारोबार बढ़ता ही गया है
- तंबाकू के कारोबार और जन-स्वास्थ्य में हमेशा टकराव रहा है। तमाम कानूनों, अदालती आदेशों और सरकार की समय-समय पर हिदायतों के बावजूद इस मामले में धूम्रपान विरोधी संगठनों के जागरूकता अभियान नाकाम हैं।
- मिसाल के लिए सिगरेट, बीड़ी, गुटखा आदि के पैकेटों पर चेतावनी की भाषा और प्रस्तुति में बहुत से बदलाव किए गए हैं, उन्हें गंभीर से गंभीर बनाने की कोशिश की गई है, उनके दाम भी कमोबेश हर साल बढ़ते ही रहे हैं।
- सरकार द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान की पाबंदी और दंड आदि की व्यवस्थाएं भी हैं, लेकिन तंबाकू उद्योग के व्यापार और लाभ में कोई गिरावट नहीं देखी गयी है।