कृषि कानूनों पर बनी कमेटी के सदस्य बोले- कमियां दूर करेंगे, कानून रद्द हुए तो 100 साल तक कोई सरकार हिम्मत नहीं करेगी
ये तीनों कानून वापस हो गए तो फिर अगले 50 या 100 साल तक कोई और सरकार ऐसे कानून बनाने की हिम्मत नहीं कर पाएगी। इसका मतलब ये होगा कि वही सड़े-गले कानून लागू रहेंगे, जिनके चलते पिछले 25 साल में साढ़े चार लाख किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। किसान गरीब होता गया। कर्जे में फंसता गया।
नई दिल्ली। केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों पर कृषि और आर्थिक मामलों के जानकारों की सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाई गई समिति की पहली बैठक 19 जनवरी को दिल्ली में होगी। सुप्रीम कोर्ट की कमेटी के प्रमुख सदस्य अनिल घनवट (शेतकारी संगठन) ने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा कि भाजपा तो इन कानूनों के विरोध में रही है, लेकिन शेतकरी संगठन 1960 से इन सुधारों की मांग कर रहा था। अगर अब ये कानून वापस हो गए तो आने वाले 100 साल में कोई सरकार कानून लाने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगी। इस संबंध में दैनिक भास्कर में दिए इंटरव्यू में घनवट से बातचीत के प्रमुख अंश…
सवाल: किसान नेता भूपेंद्र सिंह मान की तरह आपसे भी कमेटी से इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। क्या आप भी इस्तीफा दे देंगे?
जवाब: मैं क्यों इस्तीफा दूं। हम तो 60 साल से इन कृषि सुधारों की मांग कर रहे हैं। तब से जबकि भाजपा तक इन सुधारों के खिलाफ थी।
आंदोलनकारी किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से आप कैसे बात करेंगे?
हम उन्हें विधिवत बुलाएंगे।
नहीं आए तो?
देखेंगे। नहीं आए तो जाकर भी मिल लेंगे। उनसे बार-बार अपील करेंगे। वे हमारे भाई हैं। हमने उनके साथ मिलकर कृषि सुधारों के लिए बहुत संघर्ष किए हैं। उनसे न दुश्मनी है, न डर है। हम सबका मसला किसानों की खुशहाली के लिए है। मिलेंगे तो राह जरूर निकलेगी।
दूसरे किसान संगठनों से बातचीत क्यों?
हम स्टेट वाइज बात करेंगे। एक दिन आंध्रप्रदेश के किसानों से, एक दिन केरल के किसानों से, एक दिन महाराष्ट्र, एक दिन उत्तरप्रदेश, एक दिन पंजाब के किसानों से। इसी तरह सबसे।
स्टेटवाइज क्यों?
हर प्रदेश की फसलें अलग हैं। हर प्रदेश के किसान का दर्द अलग है। क्रॉप वाइज बात करेंगे, ताकि कोई दूरगामी सुधार हो। इसका पूरा डॉक्यूमेंटेशन होगा। किसानों को सुनना हमारी प्राथमिकता होगी।
आंदोलनकारी कृषि कानूनों की वापसी पर अड़े हैं, आप उनका साथ क्यों नहीं देते?
ये तीनों कानून वापस हो गए तो फिर अगले 50 या 100 साल तक कोई और सरकार ऐसे कानून बनाने की हिम्मत नहीं कर पाएगी। इसका मतलब ये होगा कि वही सड़े-गले कानून लागू रहेंगे, जिनके चलते पिछले 25 साल में साढ़े चार लाख किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। किसान गरीब होता गया। कर्जे में फंसता गया।
किसान कह रहे हैं कि नए कानून कॉरपोरेट के पक्ष में हैं?
सच तो ये है कि इस सरकार ने किसानों के पांवों की बेड़ियां कुछ ढीली की हैं।
क्या आपको कानूनों में खामी नजर नहीं आ रही?
मुझे भी बहुत खामियां नजर आ रही हैं। उन्हें ठीक किया जा सकता है।
खामियां जैसे?
ज्यूडिशल प्रोसेस में रेवेन्यू अफसरों को अधिकार देना। हर किसान इस बात से डरा हुआ है, क्योंकि पूरा रेवेन्यू महकमा भ्रष्ट है। इस तरह तो धनबल वाले किसानों को कहीं टिकने नहीं देंगे। इसके लिए रिटायर्ड न्यायिक अधिकारियों का प्राधिकरण बनना चाहिए। रेवेन्यू के अधिकारियों के पास तो पहले ही काम बहुत है। ट्रिब्यूनल बनेगा तो वह फैसले भी जल्द करेगा।
कोई और खामी?
एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट में पांच साल के रिव्यू का प्रावधान गलत है। इसे पूरी तरह खत्म किया जाए। इसमें अभी कई किंतु-परंतु हैं। साथ ही, किसानों की MSP संबंधी मांग एकदम सही है।
क्या इस प्रावधान के चलते महंगाई आसमान नहीं छूने लगेगी?
हमें ऐसा नहीं लगता। हमें लगता है कि इस कानून के हट जाने से कीमतें स्थिर हो जाएंगी और किसानों को उनकी उपज का पूरा भाव मिलने लगेगा। हमारी उपज बाहर जाएगी तो विदेशी मुद्रा मिलेगी। इससे किसानों का फायदा होगा।
आपका संगठन किसानों के आंदोलन के खिलाफ क्यों है?
हम खिलाफ नहीं हैं। मेरा सिर्फ एक ही प्रश्न है कि अगर पहले वाले कानून सही हैं तो फिर 25 साल में साढ़े चार लाख किसानों ने आत्महत्याएं क्यों कीं, किसान लगातार कर्ज में क्यों फंसता चला गया।
आंदोलनकारी किसानों का इस तरह सड़कों पर बैठना आपको गलत लगता है?
किसानों का यह बहुत गंभीर आंदोलन है। किसानों का इतना बड़ा आंदोलन देश में पहली बार हुआ है। यह कितनी हैरानी की बात है कि कृषि प्रधान कहलाने वाले देश की कोई कृषि नीति नहीं है। अगर यह कृषि नीति बनेगी तो इसका श्रेय इन आंदोलनकारी किसानों को ही जाएगा।
आपकी समिति से भूपेंद्र सिंह मान ने इस्तीफा दे दिया। क्या आपकी उनसे बातचीत हुई?
उनका कहना था कि उनके राज्य के किसान आंदोलन कर रहे हैं। ऐसे में इस समिति में होना उन्हें गलत लगता है। इसलिए अलग हो गए। हालांकि, मान हमारे साथ पिछले 40 साल से इन कानूनों की मांग करते रहे हैं।
लोगों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार समर्थकों की समिति बना दी?
पी के जोशी और अशोक गुलाटी किसानों के बड़े हितकारी हैं। उनकी नॉलेज बहुत बेहतरीन है। सुप्रीम कोर्ट ने मान लो योगेंद्र यादव जैसे कम्युनिस्ट को ही हमारे साथ लगा दिया होता तो हम महीनों तक आपस में ही झगड़ते रहते और किसी निर्णय पर शायद ही पहुंच पाते।