जोशीमठ में गिराए जाएंगे 2 लग्जरी होटल:678 इमारतें असुरक्षित, साइंटिफिक स्टडी पूरी; कुछ इलाकों को सील भी किया जाएगा

दो होटल मलारी इन और होटल माउंट व्यू गिराए जाएंगे। SDRF के कमांडेंट मणिकांत मिश्रा ने कहा कि टीम ने आज होटल मालारी इन गिराने का फैसला किया है। सबसे पहले ऊपरी हिस्सा गिराया जाएगा। दोनों होटल एक-दूसरे के काफी करीब आ चुके हैं। इनके आसपास मकान हैं, इसलिए इन्हें गिराना जरूरी है। होटल और ज्यादा धंसे तो गिर जाएंगे। SDRF तैनात कर दी गई है। लाउडस्पीकर से लोगों को सुरक्षित जगहों पर जाने को कहा जा रहा है।

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देहरादून. उत्तराखंड के जोशीमठ में मंगलवार को 2 होटल गिराए जाएंगे। यहां मकानों में दरारें आने के बाद एक्सपर्ट टीम ने यह फैसला लिया है। लग्जरी होटल मलारी इन और होटल माउंट व्यू में से पहले मलारी इन को गिराया जाएगा। दोनों 5-6 मंजिला होटल हैं।

इन्हें गिराने का काम सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CBRI) की निगरानी में होगा। SDRF की टीम भी मौके पर मौजूद है। इस मामले पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सुप्रीम कोर्ट ने अर्जेंट हियरिंग की अपील की थी। अदालत ने इनकार कर दिया है। सुनवाई 16 जनवरी को होगी।

Joshimath Sinking: 'PM मोदी ने जोशीमठ को बचाने का दिया आश्वासन', PMO में  हाई लेवल मीटिंग, शंकराचार्य मठ में भी आई दरारें - Joshimath Sinking Updates  PM Modi assured to save Joshimath

पूरे इलाके की साइंटिफिक स्टडी हुई, कुछ इलाके सील किए जाएंगे
दो होटल मलारी इन और होटल माउंट व्यू गिराए जाएंगे। SDRF के कमांडेंट मणिकांत मिश्रा ने कहा कि टीम ने आज होटल मालारी इन गिराने का फैसला किया है। सबसे पहले ऊपरी हिस्सा गिराया जाएगा। दोनों होटल एक-दूसरे के काफी करीब आ चुके हैं। इनके आसपास मकान हैं, इसलिए इन्हें गिराना जरूरी है। होटल और ज्यादा धंसे तो गिर जाएंगे। SDRF तैनात कर दी गई है। लाउडस्पीकर से लोगों को सुरक्षित जगहों पर जाने को कहा जा रहा है।

उत्तराखंड के DGP ने कहा अभी 678 इमारतें असुरक्षित हैं। ज्यादातर इमारतों को खाली करा लिया गया है। ये प्रक्रिया अभी जारी है। पूरे इलाके की साइंटिफिक स्टडी हो चुकी है और कुछ इलाकों को सील भी किया जाएगा।

फोटो होटल मलारी इन और माउंट व्यू की है, जिनकी इमारतें एक-दूसरे के काफी करीब आ चुकी हैं।
फोटो होटल मलारी इन और माउंट व्यू की है, जिनकी इमारतें एक-दूसरे के काफी करीब आ चुकी हैं।

आज के बड़े अपडेट्स…

  • लोगों ने जोशीमठ में मार्च निकाला और नारेबाजी की। उनका कहना है कि पुनर्वास ठीक से किया जाए और मुआवजा उचित हो।
  • आज गृह मंत्रालय की एक टीम जोशीमठ आएगी और लैंडस्लाइड में हुए नुकसान का जायजा लेगी।
  • अब तक 4 हजार लोगों को जोशीमठ के खतरे वाले इलाकों से हटाया गया है।

आज के दो बड़े बयान

1. सुप्रीम कोर्ट- लोकतांत्रिक संस्थाएं इस मामले को देख रहीं

सुप्रीम कोर्ट ने जोशी मठ पर दायर की गई स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया है। कोर्ट 16 जनवरी को इस मामले की सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- लोकतंत्र के जरिए चुने गए संस्थान है, जो इस मामले को देख रहे हैं। हर मामला हमारे पास लाना जरूरी नहीं।

2. होटल मालिक बोले- नोटिस तो दिया जाना था
होटल मलारी इन के मालिक ठाकुर सिंह राणा ने कहा, “अगर लोगों के भले के लिए इमारत गिराई जानी है तो मैं सरकार के साथ हूं। फिर चाहे जरा सी ही दरार ही क्यों न आई हो। लेकिन मुझे नोटिस तो दिया जाना था। होटल का मूल्यांकन करते। मैंने ऐसा करने को कहा है। इसके बाद मैं चला जाऊंगा।”

जोशी मठ के डेंजर जोन में स्थित मकान की तस्वीर। इसमें बड़ी-बड़ी दरारें साफ दिखाई दे रही हैं।
जोशी मठ के डेंजर जोन में स्थित मकान की तस्वीर। इसमें बड़ी-बड़ी दरारें साफ दिखाई दे रही हैं।

जोशीमठ को तीन जोन में बांटा गया
राज्य सरकार ने जोशीमठ को तीन जोन में बांटने का फैसला किया है। ये जोन होंगे- डेंजर, बफर और सेफ जोन। डेंजर जोन में ऐसे मकान होंगे जो ज्यादा जर्जर हैं और रहने लायक नहीं हैं। ऐसे मकानों को मैन्युअली गिराया जाएगा, जबकि सेफ जोन में वैसे घर होंगे जिनमें हल्की दरारें हैं और जिसके टूटने की आशंका बेहद कम है। बफर जोन में वो मकान होंगे, जिनमें हल्की दरारें हैं, लेकिन दरारों के बढ़ने का खतरा है। एक्सपर्ट्स की एक टीम दरार वाले मकानों को गिराने की सिफारिश कर चुकी है।

लैंडस्लाइड से हमारा कोई लेना देना नहीं- NTPC
राज्य की पावर प्रोड्यूसर कंपनी NTPC ने कहा है कि तपोवन विष्णुगढ़ प्रोजेक्ट का जोशीमठ में हो रहे लैंडस्लाइड से कोई लेना-देना नहीं है। बता दें कि जोशीमठ लैंडस्लाइड के लिए NTPC के एक हाइड्रो प्रोजेक्ट को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि NTPC के हाइड्रो प्रोजेक्ट के लिए सुरंग खोदी गई, जिस वजह से शहर धंस रहा है। हालांकि NTPC ने इन सब बातों को खारिज कर दिया है।

यह फोटो जोशीमठ में NTPC के उत्तराखंड के जोशीमठ में एनटीपीसी के तपोवन विष्णुगढ़ हाइड्रोपावर प्लांट की है।
यह फोटो जोशीमठ में NTPC के उत्तराखंड के जोशीमठ में एनटीपीसी के तपोवन विष्णुगढ़ हाइड्रोपावर प्लांट की है।

जोशीमठ का हाल बयां करती 3 तस्वीरें…

जोशीमठ में अब तक 68 परिवारों को रेस्क्यू कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया है।
जोशीमठ में अब तक 68 परिवारों को रेस्क्यू कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया है।
जोशीमठ में मकानों में दरार आने के चलते कई लोग अपना घर छोड़ने को मजबूर हैं।
जोशीमठ में मकानों में दरार आने के चलते कई लोग अपना घर छोड़ने को मजबूर हैं।
जोशीमठ में जमीन धंसने के चलते वहां मौजूद एक मंदिर गिर गया।
जोशीमठ में जमीन धंसने के चलते वहां मौजूद एक मंदिर गिर गया।

जोशीमठ के मकानों पर रेड क्रॉस
जोशीमठ के सिंधी गांधीनगर और मनोहर बाग एरिया डेंजर जोन में हैं। यहां के मकानों पर रेड क्रॉस लगाए गए हैं। प्रशासन ने इन मकानों को रहने लायक नहीं बताया है। चमोली DM हिमांशु खुराना ने बताया कि जोशीमठ और आसपास के इलाकों में कंस्ट्रक्शन बैन कर दिया गया है।

यहां 603 घरों में दरारें आई हैं। ज्यादातर लोग डर के चलते घर के बाहर ही रह रहे हैं। किराएदार भी लैंड स्लाइड के डर से घर छोड़कर चले गए हैं। अभी तक 70 परिवारों को वहां से हटाया गया है। बाकियों को हटाने का काम चल रहा है। प्रशासन ने लोगों से अपील की है कि वे रिलीफ कैंप में चले जाएं।

डेंजर जोन में आए सभी मकानों पर रेड क्रॉस मार्क लगाया गया है। ये घर अब रहने लायक नहीं है।
डेंजर जोन में आए सभी मकानों पर रेड क्रॉस मार्क लगाया गया है। ये घर अब रहने लायक नहीं है।

जोशीमठ के धंसने से जुड़ी भास्कर की ये खास खबरें भी पढ़ें…

उत्तराखंड के जोशीमठ पर डूबने का खतरा:बद्रीनाथ के प्रवेश द्वार के कई घर-दुकानों और होटलों में दरारें

वैज्ञानिक, इंजीनियर और अफसरों की पांच मेंबर वाली टीम पहले दरारों की जांच कर चुकी है।
वैज्ञानिक, इंजीनियर और अफसरों की पांच मेंबर वाली टीम पहले दरारों की जांच कर चुकी है।

चार धाम के प्रमुख धाम बद्रीनाथ के प्रवेश द्वार कहलाने वाले उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशी मठ के शहर पर डूबने का खतरा है। यहां एक साल में करीब 500 घरों, दुकानों और होटलों में दरारें आई हैं। इस वजह से यह रहने योग्य भी नहीं बचे हैं। शहर के लोगों की आंदोलन की चेतावनी के बाद मंगलवार को प्रशासन ने भूवैज्ञानिक, इंजीनियर और अफसरों की 5 सदस्यीय टीम ने दरारों की जांच की।

तेजी से धंसने लगे हैं उत्तराखंड के पहाड़:देश के सबसे लंबे जोशीमठ-औली रोप वे पर खतरा

उत्तराखंड के जोशीमठ में पहाड़ धंस रहे हैं। जोशीमठ और मशहूर स्की रिसोर्ट औली के बीच देश के सबसे लंबे 4.15 किमी के रोप-वे पर खतरा मंडरा रहा है। रोप-वे के टावरों के पास भूस्खलन शुरू हो चुका है। पहाड़ खिसकने से डेढ़ सौ से ज्यादा रिहायशी मकानों में दरारें आ गई हैं। जोशीमठ में 36 परिवारों को शिफ्ट किया गया है।

जोशीमठ में घरों पर पड़ी दरारें

जोशीमठ में बने 500 से ज्यादा घरों में दरारें आ चुकी हैं। अब तक 66 परिवार पलायन कर चुके हैं। सुरक्षा के मद्देनजर 38 परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। जमीन धंसने के बाद जोशीमठ में एशिया का सबसे लंबा रोपवे बंद करने का फैसला लिया गया है।उत्तराखंड के जोशीमठ में एक बड़ा अस्थायी पुनर्वास केंद्र बनाया जाएगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शुक्रवार को हाई लेवल मीटिंग में कहा कि सुरक्षित जगह पर यह पुनर्वास केंद्र बनाया जाए। साथ ही, उन्होंने डेंजर जोन को तत्काल खाली कराने के लिए कहा।

उत्तराखंड के जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव से स्थिति लगातार बिगड़ रही है। भू-धंसाव ने क्षेत्र के सभी वार्डों को चपेट में ले लिया है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए पीएमओ लगातार मामले की निगरानी कर रहा है। अब तक 70 परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया जा चुका है।

तेजी से हो रहे भू-धंसाव का दायरा भारत-तिब्बत सीमा को ओर बढ़ने लगा है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि भू-धंसाव की घटना पर जल्द ही प्रभावी रोक नहीं लगी तो ये देश की सुरक्षा को भी खतरा पैदा कर सकता है।

जोशीमठ में क्या अचानक भू-धंसाव की हो रहा है?
भू-धंसाव की ये घटनाएं अचानक नहीं हो रही हैं। जोशीमठ लंबे अरसे से धंस रहा है। इस भू-धंसाव को लेकर स्थानीय लोगों की जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति पिछले कई वर्षों से आंदोलन कर रही है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। 2006 में वरिष्ठ भूस्खलन वैज्ञानिक डॉक्टर स्पप्नामिता चौधरी ने जोशीमठ का अध्ययन किया था। उन्होंने इस संबंध में अपनी रिपोर्ट शासन और आपदा प्रबंधन विभाग को सौंपी थी। रिपोर्ट का क्या हुआ, इस संबंध में उन्हें भी जानकारी नहीं है।

जोशीमठ

आखिर जोशीमठ कहां स्थित है? जोशीमठ में भू-धंसाव का मामला क्यों चर्चा में आया है? किन कारणों से भू-धसांव हो रहा है? क्या भू-धंसाव को लेकर कोई चेतावनी थी? आगे इसका खतरा और दायरा कितना बढ़ सकता है? आइये जानते हैं…
जोशीमठ कहां स्थित है? 

‘गेटवे ऑफ हिमालय’ के नाम से मशहूर जोशीमठ, जिसे ज्योतिर्मठ के नाम से भी जाना जाता है, उत्तराखंड के चमोली जिले में एक शहर और एक नगरपालिका बोर्ड है। यह 6150 फीट (1875 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है जो बद्रीनाथ जैसे तीर्थ केंद्रों का प्रवेश द्वार भी है। यह आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार प्रमुख पीठों में से एक है। धार्मिक, पौराणिक और एतिहासिक शहर होने के साथ ही यह इलाका सामरिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। यहां से भारत-तिब्बत सीमा महज 100 किलोमीटर दूर है। हेमकुंड साहिब, औली, फूलों की घाटी आदि स्थानों पर जाने के लिए यात्रियों को इसी जोशीमठ से होकर गुजरना पड़ता है।
भू-धंसाव का मामला अभी क्यों चर्चा में आया है?
सोमवार रात कई मकानों में जब अचानक बड़ी दरारें आ गईं, तो पूरे नगर में भय फैल गया। ये दरारें हर दिन बढ़ रही हैं। मारवाड़ी वार्ड में स्थित जेपी कंपनी की आवासी कॉलोनी के कई मकानों में दरारें आ गईं। कॉलोनी के पीछे पहाड़ी से रात को ही अचानक मटमैले पानी का रिसाव भी शुरू हो गया। दरार आने से कॉलोनी का एक पुश्ता भी ढह गया। साथ ही बद्रीनाथ हाईवे पर भी मोटी दरारें आईं। वहीं तहसील के आवासीय भवनों में भी हल्की दरारें दिखीं। भू-धंसाव से ज्योतेश्वर मंदिर और मंदिर परिसर में दरारें आ गई हैं।
सिंहधार वार्ड में बहुमंजिला होटल माउंट व्यू और मलारी इन जमीन धंसने से तिरछे हो गए। स्थानीय लोगों के मुताबिक सोमवार रात करीब 10 बजे होटल की दीवारों से चटकने की आवाज आनी शुरू हो गई जिससे इन होटलों के पीछे रहने वाले पांच परिवारों के लोग दहशत में आ गए।
इस भू-धसांव की वजह क्या है? 
जोशीमठ में भू-धंसाव का कारण बेतरतीब निर्माण, पानी का रिसाव, ऊपरी मिट्टी का कटाव और मानव जनित कारणों से जल धाराओं के प्राकृतिक प्रवाह में रुकावट को बताया गया। भूस्खलन वैज्ञानिक डॉक्टर स्पप्नामिता चौधरी कहते हैं कि पिछले दो दशक में जोशीमठ का अनियंत्रित विकास हुआ है। बारिश और पूरे साल घरों से निकलने वाला पानी नदियों में जाने के बजाय जमीन के भीतर समा रहा है। यह भू-धंसाव का प्रमुख कारण है। धौलीगंगा और अलकनंदा नदियां विष्णुप्रयाग क्षेत्र में लगातार टो कटिंग (नीचे से कटाव) कर रही हैं। इस वजह से भी जोशीमठ में भू-धंसाव तेजी से बढ़ा है। चौधरी कहते हैं 2013 में आई केदारनाथ आपदा, 2021 की रैणी आपदा, बदरीनाथ क्षेत्र के पांडुकेश्वर में बादल फटने की घटनाएं भी भू-धंसाव के काफी हद तक जिम्मेदार हैं।

क्या भू-धंसाव को लेकर पहले कभी कोई चेतावनी नहीं दी गई?
जोशीमठ में भले ही आज भू-धसांव की घटनाएं सामने आई हों लेकिन इसकी चेतावनी 50 साल पहले दे दी गई थी। दरअसल, जोशीमठ पहाड़ों के सदियों पुराने मलबे पर बसा है। ये शुरू से ही दरक रहा है। उत्तराखंड जब यूपी का हिस्सा था, तब इसकी जांच के लिए पहली बार 1976 गढ़वाल के आयुक्त रहे एससी मिश्रा की अध्यक्षता में एक 18 सदस्यीय समिति गठित की गई थी। मिश्रा समिति ने अपनी रिपोर्ट में पुष्टि की थी कि जोशीमठ धीरे-धीरे धंस रहा है।
भू-धंसाव रोकन के लिए भी क्या कोई सिफारिश की गई थी? 
मिश्रा समिति ने भूस्खलन और भू-धंसाव वाले क्षेत्रों को ठीक कराकर वहां पौधे लगाने की सलाह दी थी। इसके साथ ही समिति ने कहा था कि स्थल की स्थिरता की जांच करने के बाद ही क्षेत्र में आगे का निर्माण किया जाना चाहिए और ढलानों पर उत्खनन पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
खुदाई या विस्फोट से कोई बोल्डर नहीं हटाया जाना चाहिए और भूस्खलन क्षेत्र पर कोई पेड़ नहीं काटा जाना चाहिए। विशेष रूप से मारवाड़ी और जोशीमठ के बीच के क्षेत्र में व्यापक वृक्षारोपण कार्य शुरू किया जाना चाहिए और ढलानों पर जो दरारें विकसित हुई हैं, उन्हें सील कर दिया जाना चाहिए।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पहाड़ी की तलहटी पर लटकने वाले शिलाखंडों को उचित सहारा दिया जाना चाहिए और नदी प्रशिक्षण के उपाय किए जाने चाहिए।
मौजूदा दौर में भी क्या इसे लेकर कोई रिपोर्ट आई है?
जून 2022 में गढ़वाल विवि के वैज्ञानिकों के अध्ययन में जोशीमठ शहर की भूवैज्ञानिक नींव की अस्थिरता को लेकर चौंकाने वाला तथ्य सामने आया था। अध्ययन में कहा गया था कि अगर शहरीकरण, चारधाम ऑल वेदर रोड और जल विद्युत परियोजना के निर्माण कार्यों को विशेषज्ञता के साथ न किया गया तो आने वाले समय में जोशीमठ धंस जाएगा। वैज्ञानिकों ने स्थानीय लोगों के अनुरोध पर सर्वे करते हुए यह रिपोर्ट दी थी।

सर्वेक्षण में वैज्ञानिकों ने पाया था कि जोशीमठ के आसपास के इलाकों में तेजी से शहरीकरण बढ़ने के साथ ही निर्माण कार्य हो रहे हैं। रैणी आपदा के बाद यहां पहले से काफी भूगर्भीय हलचल है। ऊपर से चारधाम यात्रा मार्ग का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है।
वैज्ञानिकों ने कहा था कि ऑल वेदर रोड में हेलांग और मारवाड़ी के बीच के 20 किलोमीटर हिस्से में तेजी से काम हो रहा है लेकिन मानकों का ख्याल नहीं रखा जा रहा। यहां चारधाम सड़क का निर्माण विशेष उपचार के बाद ही होना चाहिए। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना से भी इस इलाके को खतरा है।
वैज्ञानिकों ने रिपोर्ट में कहा है कि तत्काल यहां विशेष ध्यान देते हुए नियंत्रित निर्माण होने चाहिए, नहीं तो आने वाले समय में जोशीमठ धीरे-धीरे धंसने लगेगा।
वैज्ञानिकों की टीम का कहना था कि कई जगहों पर काफी सख्त पत्थर हैं, जिन्हें गलत तरीके से तोड़कर निर्माण कार्य किए जा रहे हैं। भूस्खलन की घटनाएं बढ़ गई हैं। लोगों के घरों में दरारें आने लगी हैं। मलबा, गलत तरीके से खुदाई और पत्थर हटाने की प्रक्रिया जोशीमठ के अस्तित्व पर भारी साबित हो रही है।

आगे इसका खतरा और दायरा कितना बढ़ सकता है?
जोशीमठ से भारत-तिब्बत सीमा महज 100 किलोमीटर दूर है। भू-धंसाव का क्षेत्र सैन्य क्षेत्र और आईटीबीपी के मुख्यालय की ओर बढ़ना शुरू हो गया है। सैन्य क्षेत्र में जाने वाली सड़क भी धंसनी शुरू हो गई है। जोशीमठ में भारतीय सेना का ब्रिगेड मुख्यालय और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) की एक बटालियन तैनात है। जोशीमठ भारत-तिब्बत सीमा (चीन के अधिकार क्षेत्र)  का अंतिम शहर है। यहां से नीती और माणा घाटियां भारत-तिब्बत सीमा से जुड़ती हैं। भू-धंसाव का क्षेत्र बढ़ता रहा तो यहां जवानों का रहना मुश्किल हो जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि इस स्थिति में देश की सुरक्षा को भई खतरा पैदा हो सकता है।

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