पुरी की परंपरा नहीं टूटेगी / कल भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकालने की इजाजत; सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हालात बेकाबू होते दिखें तो सरकार यात्रा रोक भी सकती है

कोर्ट ने शर्तों के साथ यात्रा की इजाजत दी, कहा- लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ नहीं होना चाहिए अदालत ने 18 जून को कहा था- कोरोना के बीच यात्रा निकली तो भगवान जगन्नाथ हमें माफ नहीं करेंगे

0 999,552

भुवनेश्वर. जगन्नाथ पुरी में कल रथयात्रा निकलेगी। सुप्रीम कोर्ट ने यात्रा की इजाजत दे दी है, श्रद्धालु शामिल नहीं हो पाएंगे। कोर्ट ने कहा है कि मंदिर कमेटी, राज्य सरकार और केंद्र सरकार के को-ऑर्डिनेशन में यात्रा निकालें, लेकिन लोगों की सेहत से समझौता नहीं होना चाहिए। अगर हालात बेकाबू होते दिखें तो ओडिशा सरकार यात्रा को रोक सकती है। साथ ही कहा कि पुरी के अलावा ओडिशा में कहीं और यात्रा नहीं निकाली जाएगी।

पांच बजे मुख्यमंत्री नवीन पटनायक यात्रा की तैयारियों को लेकर मीटिंग करेंगे। इसमें रथ यात्रा के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रॉसिजर (एसओपी) तय किया जाएगा।

केंद्र ने कहा था- इस साल यात्रा नहीं निकली तो फिर 12 साल नहीं निकलेगी
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 18 जून को यात्रा पर रोक के आदेश दिए थे। इस पर केंद्र सरकार ने रिव्यू पिटीशन दायर कर कहा था कि श्रद्धालुओं को शामिल किए बिना यात्रा निकाली जा सकती है। सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि रथयात्रा करोड़ों लोगों की आस्था का मामला है। भगवान जगन्नाथ कल बाहर नहीं आ पाए तो फिर 12 साल तक नहीं निकल पाएंगे, क्योंकि रथयात्रा की यही परंपरा है।

सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि एक दिन का कर्फ्यू लगाकर यात्रा निकाली जा सकती है। ओडिशा सरकार ने भी इसका समर्थन किया था कि कुछ शर्तों के साथ आयोजन हो सकता है। इस मामले में सरकार की याचिका से पहले भी 6 रिव्यू पिटीशन लग चुकी थीं।

परंपरा तोड़ना ठीक नहीं: पुरी पीठ के शंकराचार्य 
स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की थी कि इस मामले में दोबारा विचार करें। उन्होंने पुरी मठ से जारी बयान में कहा- ‘किसी की यह भावना हो सकती है कि अगर इस संकट में रथयात्रा की परमिशन दी जाए तो भगवान जगन्नाथ कभी माफ नहीं करेंगे, लेकिन सदियों पुरानी परंपरा तोड़ी तो क्या भगवान माफ कर देंगे।’

कोर्ट ने कहा था- लोगों की हिफाजत के लिए यात्रा नहीं होनी चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने 18 जून को रथयात्रा पर रोक के फैसले में कहा था कि कोरोना महामारी के समय यात्रा की परमिशन दी तो भगवान जगन्नाथ हमें कभी माफ नहीं करेंगे। कोर्ट ने कहा था कि जब महामारी फैली हो, तो ऐसी यात्रा की इजाजत नहीं दी जा सकती, जिसमें भारी भीड़ आती हो। लोगों की सेहत और उनकी हिफाजत के लिए इस साल यात्रा नहीं होनी चाहिए। चीफ जस्टिस की बेंच ने ओडिशा सरकार से कहा कि इस साल राज्य में कहीं भी रथ यात्रा से जुड़े जुलूस या कार्यक्रमों की इजाजत न दी जाए।

पिछली बार मुगलों ने यात्रा रोकी थी
पिछली बार मुगलों के दौर में 285 साल पहले यह यात्रा रोकी गई थी। इस बार रथयात्रा पर असमंजस कोरोना महामारी की वजह से बना। इसके चलते ही मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।

भगवान जगन्नाथ 7 दिन मौसी के घर रुकते हैं
जगन्नाथ रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से शुरू होती है। यह मुख्य मंदिर से शुरू होकर 2.5 किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मंदिर में जाती है। यह भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है। जहां भगवान 7 दिन तक आराम करते हैं और आषाढ़ शुक्ल दशमी को रथयात्रा फिर जगन्नाथ के मुख्य मंदिर पहुंचती है। यह बहुड़ा यात्रा कहलाती है। स्कंदपुराण में लिखा है कि आषाढ़ मास में पुरी तीर्थ में स्नान करने से सभी तीर्थों के दर्शन का फल मिलता है और भक्तों को शिवलोक की प्राप्ति होती है।

रथयात्रा से 15 दिन पहले ज्येष्ठ पूर्णिमा पर भगवान को स्नान कराया जाता है। इसके बाद भगवान जगन्नाथ बीमार होते हैं। इस वजह से उन्हें 15 दिन तक एकांतवास में रखा जाता है। इस दौरान कुछ पुजारी ही उनके पास होते हैं। उन्हें औषधियों और हल्के आहार का ही भोग लगाया जाता है। रथयात्रा से एक दिन पहले ही भगवान का एकांतवास खत्म होता है।

Leave A Reply

Your email address will not be published.