नई दिल्ली। NCP चीफ और देश के कृषि मंत्री रह चुके शरद पवार ने केंद्र सरकार को किसानों के मुद्दे को गंभीरता से लेने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार बिना राज्यों से मशविरा किए तीनों नए कृषि कानून थोप रही है। सरकार दिल्ली में बैठकर खेती-किसानी चलाना चाहती है, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता।
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने दावा किया था कि मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली UPA सरकार में कृषि मंत्री रहते हुए शरद पवार भी कृषि सुधार चाहते थे, लेकिन सियासी दबाव के कारण नहीं कर पाए। इस पर पवार ने कहा वे कृषि सुधार करना चाहते थे, लेकिन इस तरह नहीं जैसे यह सरकार कर रही है। पवार ने बताया कि बुधवार को सरकार और किसानों की 40 यूनियनों के साथ इस मसले पर बातचीत होनी है। अगर यह बैठक भी नाकाम रहती है तो विपक्षी दल उस हिसाब से आगे की रणनीति बनाएंगे।
‘राज्यों से सलाह लेते तो ऐसे हालात नहीं बनते’
न्यूज एजेंसी PTI को दिए इंटरव्यू में पवार ने मंगलवार को कहा कि मैं और मनमोहन सिंह कृषि क्षेत्र में कुछ सुधार लाना चाहते थे। उस समय कृषि मंत्रालय ने सभी राज्यों के कृषि मंत्रियों और सेक्टर के एक्सपर्ट्स के साथ प्रस्तावित सुधारों पर काफी समय तक बात की। कुछ राज्यों के इस बारे में कुछ मजबूत ऑब्जेक्शन थे। आखिरी फैसला लेने से पहले कृषि मंत्रालय ने फिर से राज्य सरकारों से उनकी राय मांगी थी।
पवार ने आरोप लगाया कि इस बार केंद्र ने न तो राज्यों से सलाह ली और न ही इन बिलों को तैयार करने से पहले राज्य के कृषि मंत्रियों के साथ बैठक की। उन्होंने संसद में अपनी ताकत के बल पर बिलों को पारित कर लिया इसीलिए ये सभी समस्याएं शुरू हुई हैं। अगर राज्य सरकारों को भरोसे में लिया गया होता तो ऐसे हालात नहीं बनते। किसान परेशान हैं कि ये कानून MSP सिस्टम को खत्म कर देंगे। सरकार को इन चिंताओं को दूर करने के लिए कुछ करने की जरूरत है।
‘सरकार खेती-किसानों की समझ रखने वाले मंत्रियों को बातचीत करने भेजे’
पवार ने किसानों से बातचीत कर रहे तीन मंत्रियों के ग्रुप पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि सरकार को ऐसे लोगों को आगे करना चाहिए जो खेती और किसानों के मुद्दों को गहराई से समझते हों। उन्होंने कहा कि मैं कोई नाम नहीं लेना चाहता, लेकिन सरकार में कुछ लोग हैं, जो इन मसलों को बेहतर तरीके से समझते हैं।