सुप्रीम कोर्ट / अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्षकारों को लिखित नोट रिकॉर्ड कराने की अनुमति

अयोध्या भूमि विवाद मामले में 40 दिन तक चली सुनवाई 16 अक्टूबर को पूरी हुई थी। तब 5 जजों की संविधान पीठ ने सभी पक्षकारों से तीन दिन के भीतर ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ पर लिखित नोट देने के लिए कहा था। ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ यानी मालिकाना हक किसी एक या दो पक्ष को मिल जाए तो बचे हुए पक्षों को क्या वैकल्पिक राहत मिल सकती है।

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  • चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच के सामने मुस्लिम पक्षकार ने ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ को लेकर लिखित नोट रिकॉर्ड कराने की अनुमति मांगी थी
  • संविधान पीठ ने सभी पक्षकारों से 3 दिन के भीतर ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ पर लिखित नोट देने के लिए कहा था
  • अयोध्या विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 40 दिन चली सुनवाई 16 अक्टूबर को पूरी हुई थी

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में सोमवार को उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड समेत मुस्लिम पार्टियों को लिखित नोट रिकॉर्ड कराने की अनुमति दे दी है। इसमें कहा गया है कि कोर्ट का फैसला देश की शासन व्यवस्था को प्रभावित करेगा।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच के सामने मुस्लिम पक्षकारों के वकील ने कहा कि उन्हें ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ को लेकर लिखित नोट रिकॉर्ड कराने की अनुमति दी जाए। वकील ने कहा- शनिवार को मुस्लिम पक्ष ने सील बंद लिफाफे में ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ दाखिल किया था, जिस पर हिंदू पक्षकारों ने आपत्ति जताई थी। इसके बाद हमने रविवार को सभी पक्षों के सामने याचिका सार्वजनिक कर दी थी।

अयोध्या भूमि विवाद मामले में 40 दिन तक चली सुनवाई 16 अक्टूबर को पूरी हुई थी। तब 5 जजों की संविधान पीठ ने सभी पक्षकारों से तीन दिन के भीतर ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ पर लिखित नोट देने के लिए कहा था। ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ यानी मालिकाना हक किसी एक या दो पक्ष को मिल जाए तो बचे हुए पक्षों को क्या वैकल्पिक राहत मिल सकती है।

मोल्डिंग ऑफ रिलीफ के मायने

  • सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 और सीपीसी (सिविल प्रोसिजर कोड) की धारा 151 के तहत इस अधिकार का इस्तेमाल करता है। खासतौर पर संपत्ति के मालिकाना हक यानी टाइटल सूट डिक्री के मामलों में ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ का प्रावधान है। इसमें तय किया जाता है कि याचिकाकर्ता ने कोर्ट से जिस संपत्ति की मांग की है। अगर कोर्ट अपने फैसले में उसे नहीं देता है तो विकल्प के तौर पर उसे क्या दिया जा सकता है।
  • अयोध्या के मामले को देखें, तो एक से अधिक दावेदारों वाली जमीन का मालिकाना हक किसी एक पक्ष को मिलने पर अन्य पक्षों को इसके बदले क्या मिलेगा, मोल्डिंग ऑफ रिलीफ के जरिए इस बारे में लिखित नोट फाइल कराए गए हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमीन को 3 हिस्सों में बांटने के लिए कहा था

2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या का 2.77 एकड़ का क्षेत्र तीन हिस्सों में समान बांट दिया जाए। एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड, दूसरा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा रामलला विराजमान को मिले। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दाखिल की गई थीं।

अयोध्या विवाद में 2 अगस्त से लगातार चली सुनवाई के बाद, 16 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। संविधान पीठ इस मामले पर 23 दिन के भीतर फैसला सुनाएगी। संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर होंगे।

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