मोदी बोले- पाकिस्तान ने हमेशा धोखा दिया:अमेरिकन AI रिसर्चर के पॉडकास्ट में कहा- नवाज को न्योता दिया, बदले में दुश्मनी मिली; ट्रम्प साहसी लीडर
मैं आसपास के लोगों को देखता हूं तो लगता है ये मेरे से ज्यादा काम करते हैं। किसान को देखता हूं कि दिन-रात खेती में लगे रहते हैं। हमारे देश के जवान बॉर्डर पर, पहाड़ों पर, हर मौसम में सुरक्षा करते हैं। घर की महिलाएं सुबह से शाम तक परिवार की जिम्मेदारी उठाती हैं। मेरी जिम्मेदारी मुझे आगे बढ़ाती है। जो जिम्मेदारी देशवासियों ने मुझे दी है, मुझे हमेशा लगता है कि मैं पद पर मौज मस्ती के लिए नहीं आया हूं। मेरे प्रयास में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए। चुनाव के दौरान मैं कहता हूं कि मैं कभी भी परिश्रम करने से पीछे नहीं हटूंगा। अपने लिए कुछ नहीं करूंगा। ये मेरी कसौटियां हैं, इन्हीं पर खुद को तोलता हूं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अमेरिकन AI रिसर्चर लेक्स फ्रिडमैन के साथ 3 घंटे का पॉडकास्ट (इंटरव्यू) रिलीज किया। PM ने पाकिस्तान, चीन, ट्रम्प, विश्व राजनीति, खेल, राजनीति और RSS समेत निजी जीवन से जुड़े सवालों के जवाब दिए। PM ने पाकिस्तान को लेकर कहा कि वहां से हमेशा धोखा ही मिला।
उन्होंने कहा कि शपथ समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को बुलाया था, लेकिन शांति की हर कोशिश के बदले दुश्मनी ही मिली। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के लोग शांति चाहते हैं। हम आशा करते हैं कि पाकिस्तान को एक दिन सद्बुद्धि आएगी और वह शांति का रास्ता अपनाएगा।
मोदी का इंटरव्यू लेने वाले फ्रिडमैन इलेक्ट्रिकल, कंप्यूटर इंजीनियर और AI रिसर्चर

लेक्स फ्रिडमैन का जन्म रूस के चकालोव्स्क में 15 अगस्त 1983 को हुआ था। सोवियत संघ के बिखरने के बाद उनका परिवार अमेरिका के शिकागो आ गया था। उन्होंने अमेरिका में ही इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर इंजीनियरिंग में पीएचडी की है। वे AI रिसर्चर हैं।
फ्रिडमैन अपने पॉडकास्ट में अमेरिकन प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प, टेस्ला CEO इलॉन मस्क, मेटा CEO मार्क जुकरबर्ग, अमेजन CEO जेफ बेजोस, ओपन AI CEO सेम ऑल्टमैन, यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदीमीर जेलेंस्की और इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के इंटरव्यू कर चुके हैं।
10 पॉइंट में जानिए पीएम मोदी ने पाकिस्तान, चीन, ट्रम्प पर क्या कहा
पाकिस्तान पर पाकिस्तान के लोग आतंक में रहने से थक गए होंगे 2014 में मैं जब पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाला था तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को विशेष रूप से आमंत्रित किया था। उम्मीद थी कि दोनों देश एक नया अध्याय शुरू करेंगे।
हालांकि शांति का हर नेक प्रयास का सामना दुश्मनी और विश्वासघात से हुआ। पाकिस्तान के लोग शांति चाहते हैं। वे भी संघर्ष, अशांति और निरंतर आतंक में रहने से थक गए होंगे।
चीन पर भारत-चीन को प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए, टकराव नहीं राष्ट्रपति शी के साथ मेरी बैठक के बाद हमने सीमा पर सामान्य स्थिति की वापसी देखी है। हम 2020 से पहले के स्तर पर स्थितियों को बहाल करने के लिए काम कर रहे हैं। विश्वास में समय लगेगा, लेकिन हम बातचीत के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने संघर्ष के बजाय स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की आवश्यकता पर भी जोर दिया। 21वीं सदी एशिया की सदी है। भारत और चीन को स्वाभाविक रूप से प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए, टकराव नहीं।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर मोदी बोले- संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठन विफल कोविड ने हर देश की सीमाओं को उजागर किया है। इससे सीखने के बजाय दुनिया और अधिक विखंडित हो गई है। वैश्विक नियमों को लागू करने में संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन विफल रहे। स्थिरता बनाए रखने के लिए बनाई गई संस्थाएं प्रासंगिकता खो रही हैं। जो लोग कानूनों की अनदेखी करते हैं, उन्हें कोई परिणाम नहीं भुगतना पड़ता।
गुजरात दंगों पर अब राज्य में स्थायी शांति बनी है 24 फरवरी 2002 को मैं पहली बार निर्वाचित प्रतिनिधि बना और 27 फरवरी, 2002 को गोधरा कांड हुआ, जिसने प्रदेश में हिंसा भड़का दी। गुजरात में 2002 से पहले भी 250 से अधिक दंगे हो चुके थे। 1969 का दंगा छह महीने तक चला था। 2002 के दंगे दुखद थे, लेकिन उसके बाद राज्य में स्थायी शांति बनी। सरकार के खिलाफ कई आरोप लगाए गए, लेकिन न्यायपालिका ने दो बार जांच के बाद उन्हें निर्दोष करार दिया।
RSS पर RSS ने देश के लिए जीना सिखाया RSS में हमें जो मूल्य सिखाया गया, उनमें से एक यह था कि आप जो भी करें, उसे उद्देश्यपूर्ण तरीके से करें। आप पढ़ाई करते हैं, तो राष्ट्र के लिए योगदान देने के लिए पर्याप्त सीखने के लक्ष्य के साथ पढ़ाई करें।
आप व्यायाम करते हैं, तो राष्ट्र की सेवा करने के लिए अपने शरीर को मजबूत बनाने के उद्देश्य से करें। यही हमें सिखाया गया था।
सवाल- आप RSS में कैसे शामिल हुए
मोदी ने कहा, हमारे गांव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा थी, जहां हम खेलते थे और देशभक्ति के गीत गाते थे। उन गीतों की कुछ बातें मुझे बहुत छू गईं। उन्होंने मेरे अंदर कुछ हलचल पैदा कर दी और इस तरह मैं आखिरकार RSS का हिस्सा बन गया।
RSS में हमें जो मूल्य सिखाया गया, उनमें से एक यह था कि आप जो भी करें, उसे उद्देश्यपूर्ण तरीके से करें। यहां तक कि जब आप पढ़ाई करते हैं, तो राष्ट्र के लिए योगदान देने के लिए पर्याप्त सीखने के लक्ष्य के साथ पढ़ाई करें।
यहां तक कि जब आप व्यायाम करते हैं, तो राष्ट्र की सेवा करने के लिए अपने शरीर को मजबूत बनाने के उद्देश्य से करें। यही हमें सिखाया गया था। और आज, RSS एक विशाल संगठन है। यह अब अपनी 100वीं वर्षगांठ के करीब है। ऐसा विशाल स्वयंसेवी संगठन शायद ही दुनिया में कहीं और मौजूद हो।
लाखों लोग इससे जुड़े हुए हैं, लेकिन RSS को समझना इतना आसान नहीं है। इसके काम की प्रकृति को सही मायने में समझने के लिए प्रयास करना चाहिए। किसी भी चीज से ज्यादा, RSS आपको एक स्पष्ट दिशा प्रदान करता है, जिसे वास्तव में जीवन में उद्देश्य कहा जा सकता है। दूसरा- राष्ट्र ही सब कुछ है, और लोगों की सेवा करना भगवान की सेवा करने के समान है।
सवाल: आप 8 साल की उम्र में RSS से जुड़े, जो हिंदू राष्ट्रवाद के विचार का समर्थन करता है। RSS का आप पर क्या प्रभाव पड़ा?
जवाब: बचपन में कुछ न कुछ करते रहना मेरा स्वभाव था। मुझे याद है कि मेरे यहां एक माकोसी थे, मुझे नाम ठीक से याद नहीं। वे सेवादल के हुआ करते थे। वे अपने पास एक डफली रखते थे और देशभक्ति के गीत गाते थे। मैं पागल की तरह उनको सुनता था। मुझे मजा आता था, क्यों आता था पता नहीं। ये मेरे मन को छूता था। इसके बाद हम संघ में आ गए। संघ एक बहुत बड़ा संगठन है, दुनिया में इतना बड़ा स्वंयसेवी संगठन कहीं और होगा, मैंने नहीं सुना। करोड़ों लोग इसके साथ जुड़े हैं। संघ को समझना इतना सरल नहीं है। देश ही सबकुछ है, जनसेवा ही प्रभुसेवा है, ये बातें संघ के लोग ही कहते हैं। मेरा सौभाग्य है कि ऐसे पवित्र संगठन से मुझे संस्कार मिले।
महात्मा गांधी पर बापू सिर्फ 20वीं सदी नहीं, हर सदी के महान नेता हैं महात्मा गांधी सिर्फ 20वीं सदी नहीं हर सदी के महान नेता हैं। जहां तक मोदी का सवाल है मेरे पास एक दायित्व है। लेकिन दायित्व इतना बड़ा नहीं है जितना देश बड़ा है। मेरी ताकत मोदी नहीं, 140 करोड़ देशवासी हैं। मैं जहां भी जाता हूं, वहां मोदी नहीं जाता वहां 140 करोड़ लोगों का विश्वास जाता है। इसलिए मैं दुनिया के किसी नेता से हाथ मिलाता हूं तो मोदी हाथ नहीं मिलाता है। 140 करोड़ लोगों का हाथ होता है। ये सामर्थय मोदी का नहीं भारत का है।
ट्रम्प पर ट्रम्प साहसी, वो अपने फैसले खुद लेते हैं ह्यूस्टन में एक प्रोग्राम था हाउडी मोदी। मैं और राष्ट्रपति ट्रम्प दोनों वहां थे और स्टेडियम पूरा भरा हुआ था। अमेरिका में इतनी बड़ी भीड़ का इकट्ठा होना ही एक बहुत बड़ा मौका था। मैं भाषण दे रहा था। ट्रम्प नीचे बैठकर सुन रहे थे। यह उनका बड़प्पन है। अमेरिका का राष्ट्रपति स्टेडियम में भीड़ के बीच नीचे बैठकर सुन रहा है। मैं भाषण दे रहा हूं। मैं भाषण देने के बाद ट्र्म्प के पास गया और ऐसे ही उनसे कहा कि क्यों न हम दोनों एक साथ इस स्टेडियम का एक चक्कर लगाएं। बहुत सारे लोग हैं यहां चलते हैं और उन्हें धन्यवाद देते हैं। अमेरिकी जीवन में ये बात आपके लिए असंभव सी है कि राष्ट्रपति हजारों की भीड़ में चले, लेकिन ट्रम्प बिना एक पल भी इंतजार किए मेरे साथ चल पड़े। ट्रम्प के पास साहस है और वो अपने फैसले खुद लेते हैं।
खुद के बारे में नकारात्मकता मेरे सॉफ्टवेयर में नहीं मैं स्वभाव से ही बहुत आशावादी व्यक्ति हूं। निराशावाद और नकारात्मकता मेरे सॉफ्टवेयर में नहीं है। बचपन में मेरे घर में कोई खिड़की भी नहीं थी। हमने कभी गरीबी का बोझ फील नहीं किया।
मेरे मामा ने मुझे कैनवास के जूते खरीदकर दिए थे। उस पर दाग लग जाते थे। स्कूल से चॉक के टुकड़े लाकर उन्हें घोलकर सफेद जूतों पर पॉलिश कर लेता था।
मुझे कपड़े वगैरह भी ढंग से पहनने की आदत है। हमारे पास प्रेस कराने के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी। मैं तांबे के लोटे में गर्म पानी करके उसे चिमटे से पकड़कर कपड़ों में प्रेस कर लेता था।
मैं कभी अकेलापन महसूस नहीं करता हूं। क्योंकि मैं हमेशा 1+1 की थ्योरी को मानता हूं। ये थ्योरी मेरा सात्विक समर्थन करती है। कोई पूछेगा कि यह 1+1 क्या है। इसमें पहला वन मोदी है और दूसरा वन ईश्वर है। मैं अकेला कभी नहीं होता, वो हमेशा मेरे साथ रहता है। मैं हमेशा उसी भाव से काम करता हूं। नर सेवा ही नारायण सेवा है।
सवाल: अपनी आध्यात्मिकता में, अपने शांत पलों में जब आप ईश्वर के साथ होते हैं। तो आपका मन कहां जाता है। जब आप उपवास कर रहे होते हैं जब आप बस अपने आप में अकेले होते हैं?
जवाब: ध्यान काफी भारी शब्द बन गया है। मैं लोगों को समझाता हूं कि इसका सीधा मतलब है खुद को व्याकुलता से मुक्त करना। उदाहरण के लिए जब आप क्लास में होते हैं तो आपका मन खेल पर होता है। मतलब आपका ध्यान कहीं और है। इसे सही जगह लाना है। यही मेडिटेशन है। हिमालय में एक संत ने मुझे टेक्नीक सिखाई। हिमालय में झरने बहते हैं, पत्ते की प्लेट का एक टुकड़ा झरने में लगा दिया नीचे बर्तन लगा दिया। पानी टप टप करके गिरने लगा। उन्होंने कहा कि तुम पानी की आवाज पर फोकस करो। धीरे-धीरे मेरा दिमाग ट्रेंड हो गया। मेरा ध्यान लगने लगा। वो मेरा मेडिटेशन बन गया था।
क्रिकेट पर भारत-पाक मैच रिजल्ट ने बताया कौन बेहतर अगर आप खेल की तकनीक के बारे में कहेंगे तो मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हूं। ये बात वही बता सकते हैं जो तकनीक के बारे में जानते हैं। वही बता सकते हैं कि किस प्लेयर की तकनीक अच्छी है और किसकी खराब, लेकिन कई बार परिणाम उस खिलाड़ी के बारे में बोलते हैं। कुछ दिन पहले भारत और पाकिस्तान के बीच एक मैच हुआ था। नतीजे इस बात को बता देते हैं कि कौन सी टीम बेहतर है। इससे हमें पता चलता है कौन बेहतर है।
फुटबॉल पर MP के शहडोल में मिनी ब्राजील मध्य प्रदेश का शहडोल आदिवासी जिला है। मैं वहां गया तो करीब 80 से 100 युवाओं ने स्पोर्ट्स यूनिफॉर्म पहनी थी। इनमें कुछ बूढ़े थे। मैं उनके पास गया और पूछा कि आप लोग कहां से हैं तो उन्होंने मुझसे कहा कि हम मिनी ब्राजील से हैं। मैं आश्चर्यचकित रह गया।
मैंने उनसे पूछा कि ये मिनी ब्राजील क्या है। उन्होंने बताया कि हम अपने गांव को मिनी ब्राजील कहते हैं। हमारे गांव में चार-पांच पीढ़ियों से लोग फुटबॉल खेल रहे हैं। करीब 80 नेशनल प्लेयर्स हमारे गांव से निकले हैं। हमारा पूरा गांव फुटबॉल को समर्पित है। जब हमारे यहां राष्ट्रीय फुटबॉल समारोह होता है तो आसपास के गांव से करीब 20-25 हजार लोग मैच देखने आते हैं।
सवाल- हां फुटबॉल एक ऐसा खेल है जो न सिर्फ इंडिया बल्कि पूरी दुनिया को जोड़ता है। ये दिखाता है कि खेल की ताकत क्या होती है। आपने हाल ही में अमेरिका का दौरा किया और ट्रम्प के साथ अपनी दोस्ती को एक बार फिर मजबूत किया। एक दोस्त और एक नेता को तौर पर आपको डोनाल्ड ट्रम्प की क्या बात अच्छी लगती है?
जवाब- मैं एक घटना आपके साथ शेयर करना चाहूंगा। शायद आप उसके जरिये यह समझ पाएंगे कि मैं क्या कहना चाह रहा हूं। ह्यूस्टन में एक प्रोग्राम था हाउडी मोदी। मैं और राष्ट्रपति ट्रम्प दोनों वहां थे और स्टेडियम पूरा भरा हुआ था। अमेरिका में इतनी बड़ी भीड़ का इकट्ठा होना ही एक बहुत बड़ा मौका था। खेल कूद में ऐसा होता है लेकिन किसी राजनीतिक रैली में होना बड़ी बात थी। भारतीय प्रवासी बड़ी संख्या में वहां पर मौजूद थे। हम दोनों ही भाषण दे रहे थे और ट्रम्प नीचे बैठकर हमें सुन रहे थे। यह उनका बड़प्पन है। अमेरिका का राष्ट्रपति स्टेडियम में भीड़ के बीच नीचे बैठकर सुन रहा है। मैं भाषण दे रहा हूं और वह वहां सुन रहे हैं। यह वाकई उनका बड़प्पन है। मैं भाषण देकर नीचे गया और सभी जानते हैं कि अमेरिका में सुरक्षा कितनी कड़ी होती है। कितने तरह की जांच होती है। मैं भाषण देने के बाद ट्र्म्प के पास गया और ऐसे ही उनसे कहा कि क्यों न हम दोनों एकसाथ इस स्टेडियम का एक चक्कर लगाएं। बहुत सारे लोग हैं यहां चलते हैं और उन्हें धन्यवाद देते हैं। अमेरिकी जीवन में ये बात आपके लिए असंभव सी है कि राष्ट्रपति हजारों की भीड़ में चले। लेकिन ट्रम्प बिना एक पल भी इंतजार किए मेरे साथ चल पड़े। उनकी सुरक्षा व्यवस्था में जो लगे थे, उनमें खलबली मच गई। मुझे उस पल ने छू लिया। इस पल ने मुझे दिखा दिया कि ट्रम्प के पास साहस है और वो अपने फैसले खुद लेते हैं। दूसरी बात ये कि उन्हें मोदी पर भरोसा है। अगर वो साथ चलने को कह रहे हैं तो चलिए चलते हैं। यह आपसी विश्वास का भाव था, यह बता रहा था कि हम दोनों के बीच मजबूत संबंध है। उस दिन मुझे यह दिखाई दिया। उस दिन मैंने राष्ट्रपति ट्रम्प का जो रूप देखा। अपनी सिक्योरिटी से पूछे बिना हजारों की भीड़ में मेरे साथ चल देना, वह शानदार था।
इस चुनाव प्रचार में जब ट्रम्प पर गोली चली तो मुझे वही डोनाल्ड ट्रम्प नजर आए। हिम्मत वाले और दृढ़ निश्चयी ट्रम्प जो उस दिन मेरा हाथ पकड़कर स्टेडियम में चले धे। गोली लगने के बाद भी अमेरिका के लिए जीना, उनकी जिंदगी अमेरिका के लिए है, उनका दृढ़ निश्चय है कि अमेरिका फर्स्ट. यही भावना उनके भीतर है। मेरे लिए भी देश पहले है, इंडिया फर्स्ट है। इसिलए हम दोनों की जोड़ी जम जाती है। हम इतनी अच्छी तरह से घुलमिल जाते हैं। यही वो चीजें है जो मुझे अपील करती है। दुनियाभर में राजनेताओं के बारे में इतना कुछ छपता है। हर आदमी एक-दूसरे को मीडिया के जरिए आंकता है। ज्यादातर लोग एकदूसरे से मिलकर एक दूसरे को नहीं जान पाते और न ही पहचान पाते हैं। दरअसल आपकी तनाव का कारण भी यही है कि जब तीसरा पक्ष दखलंदाजी करता है।
जब मैं पहली बार व्हाइट हाउस में उनसे मिलने गया, तब प्रेसिडेंट ट्रम्प के बारे में मीडिया में बहुत कुछ छपता था। तब वे नए-नए आए थे। दुनिया में उनकी अलग ही छवि बनी हुई थी। मुझे भी तरह-तरह की बातें बताई गई थीं। मैं व्हाइट हाउस पहुंचा तो पहले ही मिनट में उन्होंने प्रोटोकॉल की सारी दीवारें तोड़ दीं। इसके बाद वे खुद मुझे पूरा व्हाइट हाउस घुमाने ले गए। जब वे मुझे चीजें बता रहे थे तो मैंने देखा कि उनके हाथ में कोई नोट या कागज नहीं था। उनके साथ कोई व्यक्ति नहीं था। और. वे मुझे बता रहे थे कि अब्राहम लिंकन यहां रहते थे। इस टेबल पर इस राष्ट्रपति ने दस्तखत किए थे. ये कमरा इतना बड़ा क्यों है। मेरे लिए यह बहुत प्रभावशाली था कि वे इस संस्थान का कितना सम्मान करते हैं। वे अमेरिका के इतिहास के साथ कितने सम्मानपूर्ण और गहराई से उनका जुड़ाव है। मैं यह महसूस कर रहा था और वे मुझसे खुलकर बात कर रहे थे। यह मेरी उनसे पहली मुलाकात का अनुभव था। मैंने देखा कि पहले कार्यकाल के बाद जब बाइडेन चुनाव जीत गए और यह चार साल का समय बीत गया। इस बीच हम दोनों को जानने वाला कोई भी उनसे मिलता था तो उन्होंने पचासों बार कहा होगा कि मोदी मेरे दोस्त हैं और उन्हें मेरी शुभकामनाएं देना। आमतौर पर ऐसा कम ही होता है। हम आमने सामने भले ही न मिलें. हमारा डायरेक्ट और इनडायरेक्ट कनेक्शन होता रहता है। हमारे बीच का विश्वास अटूट रहा है।
सवाल: भविष्य के बारे में आपको क्या उम्मीद है, सिर्फ भारत का ही नहीं बल्कि पूरी मानव सभ्यता का?
जवाब: मैं स्वभाव से ही बहुत आशावादी व्यक्ति हूं। निराशावाद और नकारात्मकता मेरी सॉफ्टवेयर में नहीं है। अगर हम मानव जाति के इतिहास पर एक पल विचार करें तो कितने बड़े संकटों को पार करते हुए मानव जाति आगे निकली है। समय के साथ कितने बदलाव स्वीकार किए हैं।
सवाल: आपकी छवि एक फैसला लेने वाले नेता की है। आप फैसले कैसे लेते हैं, उसका क्या प्रोसेस है?
जवाब: इसके पीछे बहुत सी बातें हैं। एक शायद हिंदुस्तान में मै ऐसा नेता हूं जो मेरे देश के 90 प्रतिशत जिलों में रात्रि विश्राम कर चुका हूं। यह मैं अपने शुरुआती जीवन की बात कर रहा हूं। उस दौरान मैंने जो पाया, सीखा उसे अमल में लाता हूं। ये किसी से पूछा हुआ, जाना हुआ या सिर्फ किताओं से पाया हुआ ज्ञान नहीं है। शासन की दृष्टि से देखें तो मेरे पास कोई बोझ नहीं है। निर्णय करने में मेरा एक तराजू है कि मेरा देश सबसे पहले। हमारे यहां महात्मा गांधी जी कहते थे कि, अगर आपको कोई निर्णय लेना है तो गरीब का चेहरा याद कर लो। वो निर्णय उसके काम का है या नहीं। मुझे अपनी सरकार में इंफॉर्मेशन मिल जाती है, मेरे पास बहुत सोर्स हैं। सिर्फ अफसरों की नहीं सुनता, उनसे सवाल भी करता हूं। कभी-कभी मैं वकील बनकर उलटे सवाल करने लगता हूं। ऐसा इसलिए ताकि बातचीत से सही फैसला निकले।
कोरोना के समय कैसे निर्णय लिए। बड़े-बड़े अर्थशास्त्री कहते थे कि दुनिया ने ये किया आप भी कर दो। पॉलिटिकल पार्टियां प्रेशर डालती थीं कि पैसे दे दो। मैं कुछ नहीं करता था, मैं सिर्फ सोचता था। फिर मैंने अपने देश की परिस्थिति के हिसाब से निर्णय लिए। मैं गरीब को भूखा नहीं सोने दूंगा। रोजमर्रा की जरूरतों के लिए सामाजिक तनाव पैदा नहीं होने दूंगा। ऐसे विचार मेरे मन में आए। दुनिया लॉकडाउन में पड़ी थी। मैंने एक्सपर्ट की राय सुनी, लेकिन मैंने अपने अनुभवों से एक व्यवस्था खड़ी की। कोविड के बाद दुनिया ने जो मंदी झेली, मेरे देश ने नहीं झेली। मैंने दुनिया भर की थ्योरी को लागू करने के मोह में पड़े बिना, अखबार वालों को अच्छा लगेगा, या बुरा लगेगा, क्या छपेगा। इन सब बातों से ऊपर उठकर मैंने बेसिक फंडामेंटल पर फोकस करते हुए काम किया।
मेरी जोखिम लेने की क्षमता बहुत है। मैं ये नहीं सोचता कि मेरा क्या नुकसान होगा। जो मेरे देश के लोगों के लिए सही है, वहां मैं जोखिम लेने को तैयार रहता हूं। अगर कुछ गलत हो जाए तो खुद उसका जिम्मा लेता हूं।
सवाल: मैंने कई लोगों से सुना है कि जितने लोगों को वे जानते हैं, उनमें आप सबसे ज्यादा मेहनती हैं। आप हर दिन कई घंटे काम करते हैं क्या आप थकते नहीं हैं? आपके धैर्य और ताकत का सोर्स क्या है?
जवाब: मैं आसपास के लोगों को देखता हूं तो लगता है ये मेरे से ज्यादा काम करते हैं। किसान को देखता हूं कि दिन-रात खेती में लगे रहते हैं। हमारे देश के जवान बॉर्डर पर, पहाड़ों पर, हर मौसम में सुरक्षा करते हैं। घर की महिलाएं सुबह से शाम तक परिवार की जिम्मेदारी उठाती हैं। मेरी जिम्मेदारी मुझे आगे बढ़ाती है। जो जिम्मेदारी देशवासियों ने मुझे दी है, मुझे हमेशा लगता है कि मैं पद पर मौज मस्ती के लिए नहीं आया हूं। मेरे प्रयास में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए। चुनाव के दौरान मैं कहता हूं कि मैं कभी भी परिश्रम करने से पीछे नहीं हटूंगा। अपने लिए कुछ नहीं करूंगा। ये मेरी कसौटियां हैं, इन्हीं पर खुद को तोलता हूं।
सवाल: आपने इस बारे में बात की है आपके पास दुनिया में शांति स्थापित करने का कौशल है, अनुभव है, जियो पॉलिटिकल दबदबा है। आज दुनिया में कई वॉर चल रही हैं। आप शांति की स्थापना कैसे करेंगे। दो देशों के बीच शांति बनाने के लिए क्या कर सकते हैं, उदाहरण के लिए रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा वॉर?
जवाब: मैं उस देश का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं जो भगवान बुद्ध की भूमि है, जो महात्मा गांधी की भूमि है। ये ऐसे महापुरुष हैं जिनके उपदेश, व्यवहार शांति को समर्पित है। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से हमारा बैकग्राउंड इतना मजबूत है कि जब हम शांति की बात करते हैं तो विश्व हमें सुनता है। हम संघर्ष के पक्ष में नहीं है। हम शांति चाहते हैं। इसमें अगर कोई भूमिका अदा कर सकते हैं तो हम करते हैं। मेरा रूस और यूक्रेन दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध है। मैं राष्ट्रपति पुतिन के सामने बैठकर मीडिया से कह सकता हूं कि ये वॉर का समय नहीं है। मैं जेलेंस्की को भी एक मित्रभाव से उनको कहता हूं कि भाई दुनिया कितनी ही आपके साथ खड़ी क्यों न हो जाए। परिणाम युद्ध भूमि पर नहीं बातचीत से ही निकलने वाला है। युद्ध के चलते पूरी दुनिया को नुकसान हुआ है। मैं न्यूट्रल नहीं हूं, मेरा पक्ष शांति का है।
पीएम बोले- महात्मा गांधी की गो-रक्षा की इच्छा थी
हमारे यहां महात्मा गांधी की गो-रक्षा की इच्छा थी। उसको लेकर आंदोलन चल रहा था। उस समय पूरे देश में एक दिन का व्रत करने का कार्यक्रम था। हम तो बच्चे थे, प्राइमरी स्कूल से निकला था। मुझे भी व्रत रखना था। उस उम्र में मुझे नई एनर्जी मिल रही थी। मुझे लगा कि ये कोई साइंस है। धीरे-धीरे इसके बारे में और समझता गया। मैंने देखा है कि उपवास के दौरान मुझे अगर कहीं अपने विचारों को व्यक्त करना है। तो मैं हैरान हो जाता हूं कि ये विचार कहां से आते हैं। कैसे निकलते हैं।
सवाल: मैंने पिछले 45 घंटे से व्रत रखा है। खाना नहीं खा रहा, सिर्फ पानी पी रहा। मैंने सुना है आप काफी उपवास रखते हैं, क्या उपवास रखने का कारण बताएंगे?
PM का जवाब: मेरे लिए आश्चर्य की बात है कि आपने व्रत रखा। भारत में जो धार्मिक परंपराएं हैं। वो दरअसल जीवनशैली हैं और हमारी सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू धर्म की बहुत बढ़िया व्याख्या की है। हिंदू धर्म में सिर्फ पूजा करना नहीं है। यह जीवन जीने की कला है। हमारे शास्त्रों में शरीर, मन, आत्मा को ऊंचाई पर ले जाने के रास्ते हैं, परंपराएं हैं। उसमें एक व्रत भी है। मैं सामान्य भाषा में बात करूं तो जीवन को अंदर और बाहर दोनों तरह के अनुशासन में यह काम आता है।
2018 में पहला पॉडकास्ट किया, 2020 में नाम बदला
MIT में रिसर्च साइंटिस्ट के रूप में काम करते हुए फ्रिडमैन ने 2018 में अपना पॉडकास्ट शुरू किया। शुरुआत में इसका नाम द आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पॉडकास्ट रखा। बाद में 2020 में इसका नाम बदलकर द लेक्स फ्रिडमैन पॉडकास्ट कर दिया गया। 2025 में, इस चैनल के 45 लाख से ज्यादा सब्सक्राइबर हो गए।