‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ इस सत्र में पेश हो सकता है:चर्चा के लिए JPC के पास भेजा जाएगा बिल; केंद्रीय कैबिनेट प्रस्ताव को मंजूरी दे चुका

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केंद्र सरकार संसद के मौजूदा सत्र में ही ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ बिल पेश कर सकती है। सूत्रों के मुताबिक, सरकार इस बिल पर आम सहमति बनाना चाहती है, लिहाजा संसद से बिल को चर्चा के लिए जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (JPC) के पास भेजा जाएगा।

JPC इस बिल पर सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा करेगी। इसके अलावा सभी राज्यों की विधानसभाओं के स्पीकर और देशभर के बुद्धिजीवियों और अन्य स्टेकहोल्डर्स को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा। आम लोगों की भी राय ली जाएगी।

इससे पहले सितंबर में केंद्रीय कैबिनेट ने वन नेशन-वन इलेक्शन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी। कैबिनेट मीटिंग के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा था कि ‘पहले फेज में विधानसभा और लोकसभा चुनाव साथ होंगे। इसके बाद 100 दिन के भीतर दूसरे फेज में निकाय चुनाव साथ कराए जाएं।

वन नेशन वन इलेक्शन पर विचार के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 2 सितंबर 2023 को एक पैनल बनाया गया था। इस पैनल ने स्टेकहोल्डर्स-एक्सपर्ट्स से चर्चा के बाद 191 दिन की रिसर्च के बाद 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।

यह तस्वीर मार्च 2024 की है। राष्ट्रपति मुर्मू को सौंपी गई 18 हजार 626 पन्नों की रिपोर्ट में कमेटी ने सभी विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक करने का सुझाव दिया है।
यह तस्वीर मार्च 2024 की है। राष्ट्रपति मुर्मू को सौंपी गई 18 हजार 626 पन्नों की रिपोर्ट में कमेटी ने सभी विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक करने का सुझाव दिया है।

सिफारिश में कोविंद पैनल के 5 सुझाव…

  1. सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाया जाए।
  2. हंग असेंबली (किसी को बहुमत नहीं), नो कॉन्फिडेंस मोशन होने पर बाकी 5 साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं।
  3. पहले फेज में लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं, उसके बाद दूसरे फेज में 100 दिनों के भीतर लोकल बॉडी के इलेक्शन कराए जा सकते हैं।
  4. चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आईडी कार्ड तैयार करेगा।
  5. कोविंद पैनल ने एक साथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों, जनशक्ति और सुरक्षा बलों की एडवांस प्लानिंग की सिफारिश की है।

क्या बिल को कानून बनाने में कोई अड़चन आएगी

  1. कोविंद कमेटी ने 18 संवैधानिक बदलावों का सुझाव दिया है, इनमें से ज्यादातर में राज्यों की विधानसभाओं के सहमति की जरूरत नहीं है।
  2. कुछ संवैधानिक बदलावों के लिए बिलों को संसद में पास कराना जरूरी होगा।
  3. सिंगल इलेक्टोरल रोल और सिंगल वोटर आईडी कार्ड के लिए आधे से ज्यादा राज्यों की मंजूरी जरूरी होगी।
  4. संभव है कि कोविंद कमेटी की रिपोर्ट पर लॉ कमीशन भी अपनी रिपोर्ट पेश करे।
  5. सूत्रों का कहना है कि लॉ कमीशन 2029 में लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकायों और पंचायत चुनाव एक साथ कराने का सुझाव दे।
  6. इसके अलावा लॉ कमीशन गठबंधन सरकार और हंग असेंबली जैसी स्थिति आने पर नियम की मांग करे।

अभी ऐसी है वन नेशन-वन इलेक्शन की संभावना एक देश-एक चुनाव लागू करने के लिए कई राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल घटेगा। जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव 2023 के आखिर में हुए हैं, उनका कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि विधि आयोग के प्रस्ताव पर सभी दल सहमत हुए तो यह 2029 से ही लागू होगा। साथ ही इसके लिए दिसंबर 2026 तक 25 राज्यों में विधानसभा चुनाव कराने होंगे।

पहला चरणः 6 राज्य, वोटिंगः नवंबर 2025 में

  • बिहारः मौजूदा कार्यकाल पूरा होगा। बाद का साढ़े तीन साल ही रहेगा।
  • असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी मौजूदा कार्यकाल 3 साल 7 महीने घटेगा। उसके बाद का कार्यकाल भी साढ़े 3 साल होगा।

दूसरा चरणः 11 राज्य, वोटिंगः दिसंबर 2026 में

  • उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, पंजाब और उत्तराखंडः मौजूदा कार्यकाल 3 से 5 महीने घटेगा। उसके बाद सवा दो साल रहेगा।
  • गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुराः मौजूदा कार्यकाल 13 से 17 माह घटेगा। बाद का सवा दो साल रहेगा।

इन दो चरणों के बाद देश की सभी विधानसभाओं का कार्यकाल जून 2029 में समाप्त होगा। सूत्रों के अनुसार, कोविंद कमेटी विधि आयोग से एक और प्रस्ताव मांगेगी, जिसमें स्थानीय निकायों के चुनावों को भी शामिल करने की बात कही जाएगी।

क्या है वन नेशन वन इलेक्शन भारत में फिलहाल राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि पूरे देश में एकसाथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हों। यानी मतदाता लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट डालेंगे।

आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एकसाथ ही हुए थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।

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